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गैर हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी को लेकर बढ़ता विरोध

केंद्र सरकार द्वारा हिंदी को बढ़ावा दिए जाने को लेकर गैर हिंदी भाषी क्षेत्रों में इसका मुखर विरोध हुआ। दक्षिण के कई राज्यों ने सरकार के हिंदी में काम काज को लेकर जारी किए गए आदेश के खिलाफ हमेशा से ही नाखुशी जाहिर की है। वर्ष 2014 में केंद्र में नई

By Sachin BajpaiEdited By: Published: Wed, 09 Sep 2015 05:45 PM (IST)Updated: Thu, 10 Sep 2015 06:35 AM (IST)
गैर हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी को लेकर बढ़ता विरोध

नई दिल्ली । केंद्र सरकार द्वारा हिंदी को बढ़ावा दिए जाने को लेकर गैर हिंदी भाषी क्षेत्रों में इसका मुखर विरोध हुआ। दक्षिण के कई राज्यों ने सरकार के हिंदी में काम काज को लेकर जारी किए गए आदेश के खिलाफ हमेशा से ही नाखुशी जाहिर की है।

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वर्ष 2014 में केंद्र में नई सरकार ने सरकारी विभागों और सोशल साइट्स पर सरकारी कामकाज में हिंदी के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के आदेश दिए। लेकिन इस फैसले पर तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और ओडिशा से विरोध के स्वर उठने लगे। तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे जयललिता और डीएमके अध्यक्ष एम करुणानिधि नाराज हो गए।

1960 के दशक में तमिलनाडु में हिंदी के खिलाफ आंदोलन चला चुके करुणानिधि ने इस कदम को हिंदी थोपे जाने की शुरुआत करार दिया। वहीं जयललिता ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर गृह मंत्रालय के हिंदी इस्तेमाल करने के आदेश पर आपत्ति जताई। राज्य में एनडीए की सहयोगी पीएमके और जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी केंद्र सरकार की ऐसी कोशिशों का विरोध किया है। वहीं विवाद बढ़ता देख सरकार की ओर से भी सफाई दी गई। बीच राजभाषा ने हिंदी के इस्तेमाल पर जारी किए निर्देश की चिट्ठी फिर जारी की है।

जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्ममंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी इसका विरोध करते हुए कहा कि उर्दू और अंग्रेजी जम्मू कश्मीर की आधिकारिक भाषाएं हैं। इसके अलावा जिसको जो भाषा उपयोग करना है, वो करे। किसी पर कोई भाषा थोपी नहीं जा सकती। बीसपी सुप्रीमो मायावती ने कहा कि हिंदी को बढ़ावा देना अच्छी बात है लेकिन हमें अपने देश की समृद्ध विरासत और विविधता को भूलना नहीं चाहिए।

द्रमुक मुखिया एम करुणानिधि ने हिंदी का विरोध करते हुए कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि ये किसी की इच्छा के विरुद्ध उसपर हिंदी थोपने की शुरुआत है। इसे गैर हिंदी भाषियों को दोयम दर्जे के नागरिक समझने की कोशिश के तौर पर देखा जाएगा।

उत्तर-पूर्व के राज्यों में भी हिंदी के विरोध को लेकर आवाजें उठती रही हैं। हालांकि केंद्र सरकार द्वारा उत्तर-पूर्व के विकास के लिए तमाम कार्ययोजनाएं लागू की गईं। मणिपुर, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में लोगों ने हिंदी को आंशिक रुप से स्वीकार किया है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि देश के बड़े हिस्से से हिंदी भाषी पर्यटक इन राज्यों की ओर रुख कर रहे हैं जिसके चलते इन्हें बड़ी तादाद में रोजगार मिला। लेकिन हिंदी स्वीकार्यता की सहमति को बड़ेे स्तर तक पहुंचना बाकी है।

हिंदी के विरोध में तमिलनाडु में हुआ था हिंसक आंदोलन

आजादी से पहले तमिलनाडु को एक हिंसक विरोध प्रदर्शन ने हिलाकर रख दिया था। इस घटना ने भारत की सोच बदली और दुनिया ने उसे देखने की अपनी नज़र भी बदली। यह विरोध प्रदर्शन हिंदी को थोपे जाने के खिलाफ था और इसके बाद भारत ने अपनी भाषा नीति बदलकर अंग्रेज़ी को सहायक भाषा का दर्जा दिया।

हालांकि पहले के माहौल और वर्तमान दौर में काफी अंतर आ चुका है। कभी संस्कृत या हिंदी को लाने की हल्की सी कोशिश की जाती है तमिलनाडु में विरोध भड़क जाता है। लेकिन हिंदी को थोपे जाने पर अब पहले जैसा डर का माहौल नहीं है.

तमिलनाडु में हिंदी को लेकर विरोध 1937 से ही है, जब चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की सरकार ने मद्रास प्रांत में हिंदी को लाने का समर्थन किया था पर द्रविड़ कषगम (डीके) ने इसका विरोध किया था। तब विरोध ने हिंसक झड़पों का स्वरूप ले लिया था और इसमें दो लोगों की मौत भी हुई थी। लेकिन साल 1965 में दूसरी बार जब हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने की कोशिश की गई तो एक बार फिर से ग़ैर हिंदी भाषी राज्यों में पारा चढ़ गया था।


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