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नक्सलियों का फन कुचलने को उन इलाकों में पहुंची सेना, जहां कोई बाहरी व्यक्ति नहीं पहुंच पाया

डीजी नक्सल ऑपरेशन डीएम अवस्थी ने बताया कि इंटेलिजेंस बेस्ड सूचना के आधार पर नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन मानसून को प्लान किया गया।

By Nancy BajpaiEdited By: Published: Tue, 07 Aug 2018 01:05 PM (IST)Updated: Tue, 07 Aug 2018 01:22 PM (IST)
नक्सलियों का फन कुचलने को उन इलाकों में पहुंची सेना, जहां कोई बाहरी व्यक्ति नहीं पहुंच पाया
नक्सलियों का फन कुचलने को उन इलाकों में पहुंची सेना, जहां कोई बाहरी व्यक्ति नहीं पहुंच पाया

रायपुर (नईदुनिया)। सुकमा से 100 किलोमीटर अंदर जंगलों में पहली बार फोर्स की धमक दिखाई दी। नक्सल विरोधी ऑपरेशन में अब तक फोर्स इन इलाकों में पहुंची नहीं थी। डीजी नक्सल ऑपरेशन डीएम अवस्थी ने बताया कि इंटेलिजेंस की बेस्ड सूचना के आधार पर इस ऑपरेशन को प्लान किया गया। नक्सली आराम से अपने कैंप में सोये हुए थे और डीआरजी के जवानों ने धावा बोल दिया।

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200 जवानों की टीम ने बोला हमला
अवस्थी ने बताया कि सोमवार सुबह छह से सात बजे के बीच कोंटा के नलकटोंग गांव में 200 जवानों की टीम ने हमला किया। उस समय नक्सली कैंप में ही थे। अचानक हुई फायरिंग के बाद नक्सलियों ने फोर्स पर जवाबी हमला करने की कोशिश की, लेकिन मुस्तैद जवानों ने हमले को विफल करते हुए बड़ी सफलता अर्जित की। 

पिछले तीन साल में खुले 14 नये कैंप
एसआइबी के आला अधिकारियों ने बताया कि पिछले तीन साल में इस दुर्गम इलाके में 14 नये कैंप खोले गए। इन कैंपों से जवान अब आगे जंगलों की ओर बढ़ रहे हैं। गृह मंत्रालय के सुरक्षा सलाहकार विजयकुमार की रणनीति का असर अब दिखाई देने लगा है। केंद्र सरकार ने सुकमा, बीजापुर और दंतेवाड़ा में नक्सलियों को समेटने की कार्य योजना बनाई थी। गोलापल्ली के बारे में अधिकारियों ने बताया कि यह नक्सलियों का सेफ जोन माना जाता है। पिछले 30 साल से फोर्स इस इलाके में घुसने की कोशिश कर रही थी, लेकिन सफलता नहीं मिल रही थी।

बड़े नक्सली कमांडर की है मौजूदगी
डीजी अवस्थी ने बताया कि सुकमा में एक और ऑपरेशन चल रहा है। यहां नक्सलियों के बड़े कमांडर की मौजूदगी की सूचना मिली थी, जिसके बाद ऑपरेशन प्लान किया गया। पिछले दो दिन से 200 से ज्यादा जवानों की टुकड़ी जंगल में डेरा डाले हुए है। यहां भी पुलिस और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ चल रही है। हालांकि वहां की पूरी रिपोर्ट अभी तक नहीं आ पाई है।

कोंटा से गोलापल्ली तक नक्सलियों ने मचा रखी थी दहशत, अब फोर्स ने दिखाया दम
कोंटा से करीब 80 किलोमीटर दूर स्थित गोलापल्ली तक सीधी सड़क नक्शे पर दिखती है, लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है। कोंटा से बंडा तक ही रास्ता चालू है। इसके आगे नक्सलियों की दहशत है। सड़क जगह-जगह उड़ा दी गई है। तीन दशकों से इस मार्ग को दोबारा शुरू करने की कोशिश तक नहीं हो पाई थी। अब हालात बदल रहे हैं। गोलापल्ली कभी वन विभाग का बड़ा डिपो होता था। यहां साप्ताहिक बाजार में वनोपज की भरमार होती थी। नक्सलवाद ने बाजार और डिपो सब खत्म कर दिया। गोलापल्ली थाने में जवान सीआरपीएफ की सुरक्षा में रहते हैं। गोलीबारी की घटना यहां आम है। ऐसे बीहड़ में घुसकर डीआरजी जवानों ने जो हिम्मत दिखाई है वह काबिले तारीफ है। इस घटना के बाद कोंटा से गोलापल्ली के बीच नक्सलियों की दहशत कम होगी।

भरी बरसात में जवान उन जंगलों में घुसे, जहां दुनिया ने कदम नहीं रखा
बस्तर आइजी विवेकानंद ने बताया कि चार अगस्त से ही फोर्स नक्सलियों की तलाश में जंगल का चप्पा-चप्पा छान रही थी। भरी बरसात में जवान उन जंगलों में घूम रहे होंगे, जहां बाहरी दुनिया के कदम नहीं पड़ते यह नक्सलियों ने कल्पना भी नहीं की थी। शहीदी सप्ताह के दौरान 28 जुलाई से तीन अगस्त तक फोर्स ने लगातार इस इलाके में गश्त की। अंदर ही इनपुट मिला कि नकुलतोंग गांव में नक्सलियों ने कैंप लगा रखा है। इसके बाद जल्दबाजी नहीं की गई। ऑपरेशन प्लान किया गया। कोंटा और भेज्जी से डीआरजी जवानों को दबे पांव उस इलाके में रवाना किया गया। जहां मुठभेड़ हुई है, उसके नजदीक मुरलीगुड़ा में सीआरपीएफ का कैंप है।

मुठभेड़ के पहले तक मुरलीगुड़ा के जवानों को भी इस ऑपरेशन की भनक नहीं लग पाई। ऑपरेशन खत्म होने के बाद जब शव निकालने की बारी आई तब रोड ओपनिंग के लिए सपोर्ट पार्टी के रूप में मुरलीगुड़ा से फोर्स बुलाई गई। आइजी विवेकानंद ने कहा, हम लगातार अंदर घुस रहे हैं। बरसात में उन इलाकों में अभियान चलाया जा रहा है, जो पहुंच विहीन कहे जाते हैं। इसी का नतीजा है यह बड़ी सफलता। कोंटा-गोलापल्ली मार्ग पर स्थित बंडा गांव में नगा बटालियन ने कैंप बनाया था। 2008 में इसी रास्ते पर नक्सलियों ने बारूदी सुरंग के विस्फोट से नगा जवानों की गाड़ी उड़ा दी थी। घटना में दस जवान मारे गए। इसके बाद बंडा का कैंप बंद कर दिया गया। हाल के दिनों में फोर्स अंदर पहुंची है। इसके बाद वहां से आगे मुरलीगुड़ा में कैंप बनाया गया है।


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