Move to Jagran APP

पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है

आरा, शमशाद 'प्रेम'। 'मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है/पंख से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है।' इस शेर को पूर्व राष्ट्रीय खिलाड़ी अरुणिमा सिन्हा ने अपनी कामयाबी का मूलमंत्र बनाया है। एक पैर होने के बावजूद माउंट एवरेस्ट पर फतेह करने वाली अरुणिमा विश्व की सात अन्य चोटियों पर अपने क

By Edited By: Published: Tue, 10 Sep 2013 03:51 AM (IST)Updated: Tue, 10 Sep 2013 04:14 AM (IST)
पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है

आरा, शमशाद 'प्रेम'। 'मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है/पंख से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है।' इस शेर को पूर्व राष्ट्रीय खिलाड़ी अरुणिमा सिन्हा ने अपनी कामयाबी का मूलमंत्र बनाया है। एक पैर होने के बावजूद माउंट एवरेस्ट पर फतेह करने वाली अरुणिमा विश्व की सात अन्य चोटियों पर अपने कदम रखना चाहती है। फिलवक्त वह अफ्रीका की किलीमअंजारो चोटी पर फतह की तैयारी कर रही है। उसकी इच्छा विकलांग व गरीब बच्चों के लिए नेशनल स्पोटर््स अकादमी बनाने की भी है।

loksabha election banner

रविवार को रोहतास के विक्रमगंज में अपने सम्मान समारोह में जाने के क्रम में अरुणिमा आरा में कुछ देर रुकीं तो उनसे बातचीत की गई। उन्हें द डीपीएस स्कूल ने 51 हजार का चेक व स्मृति चिन्ह भेंट कर किया सम्मानित किया।

मत मानो जिंदगी से हार : अरुणिमा के अनुसार व्यक्ति दिमाग से विकलांग होता है। यदि घटना के बाद यह सोचने लगे कि मेरे पास तो यह अंग नहीं है, अब मैं कुछ नहीं कर सकता। समझिए वह वहीं जिन्दगी से हार जायेगा। लेकिन दिल व दिमाग में यह बात लाये कि अब भी मैं बहुत कुछ कर सकता हूं तो वह कठिन से कठिन लक्ष्य प्राप्त कर लेगा।

बचपन से ही खेलों से लगाव : अरुणिमा बोलीं कि 19 जून 1986 को उत्तर प्रदेश के शहजादपुर(अंबेडकरनगर) में मेरा जन्म हुआ। समाज शास्त्र और अंग्रेजी में एम.ए के अलावा एलएलबी की पढ़ाई की है। लेकिन बचपन से ही वॉलीबाल और फुटबॉल से लगाव था। इंटरनेशनल गेम में भारत के लिए गोल्ड लाने का सपना था, जो पूरा नहीं हो सका।

मत याद दिलाइये घटना : सवाल पर बोलीं कि नौकरी के सिलसिले में 11 अप्रैल 2011 को वह पदमावत एक्सप्रेस से दिल्ली जा रहीं थीं, ट्रेन में लूटपाट का विरोध करने पर बदमाशों ने उन्हें धक्का दे दिया, वह ट्रैक पर गिर गईं, जिसमें बायां पैर चला गया।

ऐसे की एवरेस्ट फतह : माउंट एवरेस्ट फतेह करने का ख्याल कैसे आया, पूछने पर बोलीं कि एक्सीडेंट के बाद बेड पर थी और लाइफ को लेकर परेशान थी। लोगों की तरह-तरह बातें सुनने को मिलती थी। साई ने तो मेरे नेशनल खिलाड़ी होने पर ही सवाल खड़ा कर दिया। तब मैंने सोचा कि ऐसा काम करूंगी, जिससे लोगों के बीच मिसाल बन सकूं। अखबार में पर्वतारोहियों के बारे में पढ़ा और एवरेस्ट फतेह करने का फैसला किया। मेरे इस निर्णय पर सभी ने सहयोग किया। ट्रैकिंग की ट्रेनिंग के दौरान मेरे पैर से बार-बार ब्लड आ जाता था, जूता खोलकर देखती तो नर्वस हो जाती थी। लेकिन ब्लड की चिंता किये बिना लगातार प्रैक्टिस की।

युवाओं को संदेश : जीवन में एक लक्ष्य निर्धारित करें और उसे प्राप्त करने के लिए निरंतर ईमानदारीपूर्वक प्रयासरत रहें, सफलता अवश्य मिलेगी।

मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.