यहां भी फांसी से बचने के लिए हाथ-पैर मार रहे कई 'निर्भया' के हत्यारे, देश में सिर्फ दो जल्लाद
छत्तीसगढ़ में भी चार से अधिक निर्भया के दोषी फांसी से बचे हुए हैं। राज्य की जेलों में एक महिला समेत कुल नौ बंदी ऐसे हैं जिन्हें फांसी की सजा हुई है।
संजीत कुमार, रायपुर। छत्तीसगढ़ में भी चार से अधिक 'निर्भया" के दोषी फांसी से बचे हुए हैं। राज्य की जेलों में एक महिला समेत कुल नौ बंदी ऐसे हैं जिन्हें फांसी की सजा हुई है। इसमें से छह तो मासूमों के गुनहगार हैं। चार पर मासूम बच्चियों से दुष्कर्म के बाद हत्या का आरोप सिद्ध हुआ है। वहीं, एक दंपती अबोध बच्चे की बलि चढ़ाने का दोषी है। इस दंपती की फांसी की सजा पर इसी वर्ष अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट ने भी मुहर ला दी है। इस मामले के साथ ही बाकी प्रकरण भी फिलहाल कानूनी प्रक्रिया में फंसे हुए हैं। वहीं फांसी की सजा पाने वाले मुजरिमों को फांसी पर लटकाने के लिए अगर जल्लादों की बात की जाए तो इस वक्त देश में सिर्फ दो ही पंजीकृत जल्लाद मौजूद हैं।
22 दिन में आया फैसला
फरवरी 2016 को छत्तीसगढ़ के रायगढ़ के बजरंग पारा में रहने वाली तीन वर्ष की मासूम के साथ दुष्कर्म के बाद हत्या करने वाले लोचन श्रीवास को कोर्ट ने 22 दिन में फांसी की सजा सुना दी थी। हाई कोर्ट से भी उसकी फांसी की पुष्टि हो चुकी है।
दुष्कर्म और हत्या के बाद जंगल में फेंका था शव
बालोद जिला कोर्ट ने फरवरी 2019 में झग्गर यादव को 11 वर्षीय बच्ची के साथ दुष्कर्म और हत्या का दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई। जून 2017 की घटना थी। बच्ची की लाश दो दिन बाद जंगल में मिली थी।
मूक- बधिर बच्ची को बनाया शिकार
दुर्ग जिला कोर्ट ने अगस्त 2018 में पांच साल की मूक-बधिर बच्ची के साथ दुष्कर्म कर उसकी हत्या के आरोपी खुर्सीपार निवासी राम सोना को फांसी की सजा सुनाई थी। घटना 2015 की थी।
रिश्तेदार की चार वर्ष की मासूम की कर दी थी हत्या
कांकेर में भानुप्रतापपुर कोर्ट ने अक्टूबर 2018 मदनलाल को फांसी की सजा सुनाई। घटना मार्च 2015 की थी। कोर्ट ने मदनलाल को अपने ही रिश्तेदार की चार वर्षीय बच्ची के साथ दुष्कर्म के बाद हत्या दोषी माना था।
मासूम की दी थी बलि, सुप्रीम कोर्ट से भी नहीं मिली राहत
फांसी की सजा पाने वालों में दुर्ग का दंपती ईश्वर लाल यादव और किरण बाई भी शामिल हैं। इन लोगों पर 2011 में तंत्र साधना के लिए एक दो वर्ष के मासूम का अपहरण कर बलि देने का आरोप सिद्ध हुआ है। इस मामले में दुर्ग कोर्ट ने सात लोगों को सजा सुनाई थी। इसमें यादव दंपती को फांसी की सजा शामिल है। इसी वर्ष अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट ने भी दोनों की फांसी सजा को बरकरार रखा है।
आम लोगों ने भी देखा था बैजू को फांसी पर लटकते
छत्तीसगढ़ में पांच वर्ष पहले निचली अदालत के आदेश पर सोनू सरदार नामक व्यक्ति को फांसी देने की तैयारी थी। राज्य में एक भी जल्लाद नहीं है, ऐसे में जेल विभाग ने देशभर से जानकारी जुटाई। इसमें पता चला कि देश में केवल दो ही पेशेवर पंजीकृत जल्लाद हैं। इनमें उत्तर प्रदेश के मेरठ का रहने वाला पवन और पश्चिम बंगाल का बाबू अहमद शामिल थे। रायपुर केंद्रीय जेल में करीब 41 वर्ष पहले 25 अक्टूबर 1978 को बैजू नामक कैदी को यहां फांसी दी गई थी। बैजू को फांसी पर लटकते देखेन के लिए पहली बार बाहरी लोगों को भी जेल के अंदर आने की इजाजत मिली थी। राज्य में एक मात्र रायपुर केंद्रीय जेल ही ऐसा हैं जहां फांसी देने की व्यवस्था है।