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केवल संकल्प लेने वाले नहीं, बल्कि उसे पूरा कर दिखाने वाले ही बनते हैं सिकंदर...

एक और नया साल सामने है। इसके स्‍वागत के लिए आप सभी भी उमंग में होंगे। क्‍या आप भी नई योजनाओं और संकल्प के बारे में सोच रहे हैं?

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 28 Dec 2019 11:18 AM (IST)Updated: Sat, 28 Dec 2019 11:25 AM (IST)
केवल संकल्प लेने वाले नहीं, बल्कि उसे पूरा कर दिखाने वाले ही बनते हैं सिकंदर...
केवल संकल्प लेने वाले नहीं, बल्कि उसे पूरा कर दिखाने वाले ही बनते हैं सिकंदर...

नई दिल्‍ली, सीमा झा। क्रिसमस के रंगारंग उत्सव के बाद अब नये साल का सेलिब्रेशन करीब है। नये साल पर नई योजनाएं, संकल्प का दस्तूर भी निभाने का भी वक्त है ये। पर तमाम किशोर-युवा दोस्तों को देखें तो उनके लिए यह एक ऐसी रीत है जिसे हर साल पर निभा रहे हैं वे। पर इससे लाभ होता है या नहीं, यह भी तो सोचना चाहिए।

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जैसा कि दसवीं कक्षा में पढऩे वाले अंकित से जब यह पूछा गया कि नए साल पर उनकी क्या योजनाएं हैं, तो उन्होंने कहा, ' मुझे नए साल पर कुछ नया नहीं लगता। यह नया तब होगा जब मैं कुछ नया हासिल करूंगा। कोई भी अचीवमेंट संकल्प से अधिक उसे पूरा करने की जिद से मिलता है।' जाहिर है ऐसे किशोरों-युवाओं की संख्या कम नहीं जो केवल संकल्प लेने और बड़े वादे करने में वक्त जाया नहीं करते, बल्कि नये साल को भी बीते साल की एक कड़ी मानते हैं और अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित होकर रोज एक नया मुकाम हासिल कर रहे हैं।

कमजोरी को बना ली ताकत

संगीता विश्नोई ने कहा कि जब मुझसे भी बुरी स्थिति में रहने वाले लोग आगे जा सकते हैं तो मैं क्यों नहीं। यही बात मैं अपने प्रशंसकों और युवा साथियों से कहती हूं। बचपन में करंट लगने के बाद एक हाथ और एक पैर गंवा देने के बाद यदि पांचवीं कक्षा की लड़की ओलंपिक में स्वर्ण जीत सकती है तो कोई भी अपने सपनों को हासिल कर सकता है। मुझे आज भी याद है जब 2003 में लंदन पैराओलंपिक में मैंने स्वर्ण जीता तो लोगों को मानना पड़ा कि जीतने के लिए मानसिक रूप से मजबूत होना पहली शर्त है। उस उपलब्धि के बाद तत्‍कालीन राष्ट्रपति डॉक्टर कलाम ने मुझे पुरस्कृत किया। इसने मेरे संकल्प को और धार दी। दरअसल, छोटी उम्र से भी मुझे दौडऩे का शौक था लेकिन जल्द ही मेरा शौक मेरा जुनून बन गया। इसमें मेरे पिताजी का बड़ा योगदान है। कहते तो सभी हैं कि मैं सक्षम हूं पर वास्तव में करके दिखाने वाले वही हैं जो तमाम मुश्किलों के बाद भी चलते रहने में यकीन रखते हैं।

जोधपुर, पैराओलंपियन और इंफ्लूएंसर, बिगो लाइव

बनें खुद के पक्के साथी

अनमोल रोड्रीक्वीज ने कहा कि जब मुझे पहली एसिड अटैक सरवाइवर मॉडल कहा जाता है तो फख्र होता है खुद पर। इंस्टाग्राम पर एक लाख से अधिक फॉलोअर हैं और लाइकी पर हजारों फैंस जब मेरी बात सुनते हैं तो यही लगता है कि मेरी कहानी उन सबको प्रेरणा दे रही है जो विपरीत परिस्थितियों के बावजूद हौसला नहीं खोते। दो माह की थी जब एसिड प्रहार ने मेरे शरीर की वे चीजें छीन लीं जो आमतौर पर सामान्य व्यक्ति के लिए जरूरी मानी जाती हैं। एक आंख चली गई, लेकिन जो रहा वह मेरा हौसला था।

चेहरे को देखकर लोग डरते थे लेकिन उसी चेहरे के साथ मैं मॉडलिंग कर रही हूं। अनाथ आश्रम में जिंदगी बसर की लेकिन कभी खुद को कमजोर नहीं पडऩे दिया। मैंने बीसीए किया है और इंटरनेट ने मुझे प्लेटफॉर्म दिया तो जान गई कि कोई साथ दे न दे, आप यादि खुद के पक्के साथी हैं तो दुनिया एक दिन जरूर सलाम करती है। इस उम्र में बहुत सारी चीजें लुभाती हैं। कभी लगेगा यह कर लें तो बेहतर होगा तो कभी लगेगा अमुक चीज भी तो सही है। पर आप वही करें जो आपके दिल को सबसे अधिक भाए। जैसा कि मेरी टीचर ने कहा था कि कुछ मत सोचो कि लोगों को क्या अच्छा लगेगा जो तुम्हें करना है उस पर फोकस करो। उनकी बात मानी, इसलिए आज खुश हूं।

मॉडल, इंफलूएंसर, लाइकी

ऐसे रह सकेंगे एकाग्र

  • टास्क के साथ तारतम्य टूटना नहीं चाहिए। रेगुलर ब्रेक लें। थकान हावी न होने दें।
  • ऐसी दिनचर्या बनाएं, ऐसी आदत विकसित करें कि हर काम ऑटोमेटिक यानी होता चला जाए।
  • अपने टास्क को विजुलाइज करें यानी उन्हें मन में देखना शुरू करें। खुद को उसका हिस्सा बनाएं।
  • आपको क्या चाहिए, यह स्पष्ट करें। पूरी पक्रिया तय करें। एक सूची बनाएं, जो काम का नहीं उन्हें नियमित रूप से बाहर करते रहें।
  • मल्टीटास्किंग से बचने का प्रयास करें ताकि आपकी ऊर्जा बाकी दूसरी चीजों में जाया न हो। एक महत्वपूर्ण टास्क को चुनें और उसमें पूरी तरह जुट जाएं।
  • याद रहे, छोटी-छोटी ध्यान भटकाने वाली चीजें आपको बड़ा नुकसान पहुंचा सकती है। माहौल को मददगार बनाना आपके हाथ है। मोबाइल फोन, ईमेल या सोशल मीडिया इन दिनों एकाग्रता का बड़ा दुश्मन बनकर उभर रही हैं। यह आप पर है कि इन चीजों को कैसे मैनेज करते हैं।

मुड़कर देखने की आदत नहीं

हरियाणा में पहलवानों का बड़ा क्रेज है। मुझे भी बॉडी बनाने का बड़ा शौक था। पढऩे में भी ठीक-ठाक था लेकिन अच्छी बॉडी बनाने के शौक के आगे सब बातें फीकी थीं। गुडग़ांव से कुछ किमी. दूर फर्रुखनगर से हूं। घर के लोग पढ़ाई की सलाह देते थक जाते तो मैं खेतों में चला जाता और वहां व्यायाम करता। घरवालों की बात मानकर पढ़ाई की, पुलिस की सरकारी नौकरी में चयनित भी हुआ लेकिन मन से तैयार न होने के कारण मैंने उसे छोड़ दिया। दिल्ली में बॉक्सिंग भी की। रेसलिंग की। दोबारा घर आया और सोचा कि जो मैं हूं वैसा ही और भी दोस्तों को लगता होगा। क्यों न उन लोगों की मदद की जाए, इंटरनेट की मदद ली जाए। शुरू में कुछ रिस्पांस नहीं मिला, लेकिन मन में हमेशा कुछ करना है वाली बात गूंजती रहती थी।

आज मेरा यूट्यब चैनल है जिसके लाखों सब्सक्राइबर हैं, जो मेरे देसी जिम वाले आइडिया से प्रभावित हैं। अभी तक हरियाणा के सात-आठ जिलों में देसी जिम चल रहा है। इस जिम में आधुनिक उपकरण नहीं होते बल्कि रस्से और सीमेंट के डंबल, लकड़ी के उपकरण होते हैं। देशभर में ऐसे जिम के सपने देख रहा हूं। मैं आज अपनी कमाई तीस से चालीस प्रतिशत इसी में लगाता हूं। फसल से भी जो मिलता है, इसी में खर्च करता हूं। मैं अपने साथियों से भी यही कहूंगा कि आपको अपनी भीतर केवल इच्छा ही नहीं, बल्कि हर चीज को साथ लेकर चलने का हुनर पैदा करना चाहिए। कभी पीछे मुड़कर देखें भी तो कुछ सीख लेने के लिए, पर आगे चलना बहुत जरूरी है।

विपिन यादव, पूर्व मिस्टर नॉर्थ इंडिया, फिटनेस इंफ्लुएंसर

कमियों पर काम करें

लेफ्टिनेंट शिवांगी, इंडियन नेवी में पहिला महिला पायलट

मैंने बचपन से ही नेवी में जाने का सपना देखा था और इसी सपने पर टिकी रही। उसके अलावा मैं कुछ नहीं सोचती थी। यदि आप लक्ष्य सेट करते हैं तो उसे पूरा होते देखने के लिए अपना सौ प्रतिशत देना होगा। इसके अलावा और कोई विकल्प नहीं हो सकता।

गीतिका कपूर, मनोवैज्ञानिक और स्कूल काउंसलर

खुद से वादा करना और उसे पूरा कर लेना दोनों अलग-अलग चीजें हैं। आप यदि उन्हें पूरा नहीं कर पा रहे हैं तो कारण भी कहीं न कहीं हमसे जुड़ा है। यदि उन्हें जान सकें और दूर करने की कोशिश की तो यह आत्मविश्वास को और बढ़ाएगा। आप कदम दर कदम खुद को लक्ष्य की तरफ बढ़ाते जाएंगे। वैसे, हर स्टूडेंट को पता होता है कि उनकी कमी क्या है। यह अलग बात है कि कुछ अनदेखी कर देते हैं तो कुछ लोग ईमानदारी से उन पर काम करते हैं।

परिणाम पर नहीं, प्रक्रिया पर फोकस रहें

एमएस धौनी, पूर्व क्रिकेट कप्तान (अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 15 साल पूरे होने पर दिए गए एक इंटरव्यू में)

जीत मिलेगी या हार, इसे लेकर मैंने कभी माथापच्ची नहीं की। जो टास्क सामने है, मेरा ध्यान हर वक्त उसी पर रहा है। मैं टास्क को किस तरह से बेहतर करूं कि परिणाम भी अच्छा आए, मेरे दिमाग में यही बातें चलती रहती हैं। अपने युवा दोस्तों से भी यही कहना है कि प्रक्रिया पर फोकस रहने का फायदा है। यह आपको लक्ष्य से भटकने नहीं देता।


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