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दुर्लभ प्रजातियों का धड़ल्ले से हो रही खरीद-फरोख्त, जानें- मानव जीवन पर क्या पड़ेगा असर

एक अध्‍ययन में पाया गया है कि धरती पर मौजूद 18 फीसदी वन्‍य जीवों का विश्व स्तर पर कारोबार किया जाता है। इससे कई जीवों के अस्‍त‍ित्‍व पर संकट मंडराने लगा है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Tue, 08 Oct 2019 08:58 AM (IST)Updated: Tue, 08 Oct 2019 12:04 PM (IST)
दुर्लभ प्रजातियों का धड़ल्ले से हो रही खरीद-फरोख्त, जानें- मानव जीवन पर क्या पड़ेगा असर
दुर्लभ प्रजातियों का धड़ल्ले से हो रही खरीद-फरोख्त, जानें- मानव जीवन पर क्या पड़ेगा असर

नई दिल्ली [जागरण स्‍पेशल]। दुनियाभर में वन्य जीवों का व्यापार लगातार बढ़ता जा रहा है। विश्व में मौजूद पक्षियों, स्तनधारियों, सरीसृपों और उभयचरों की पांच प्रजातियों में से लगभग एक को वन्य जीव बाजार में खरीदा-बेचा जा रहा है। शोधकर्ताओं का कहना है कि भविष्य में यह व्यापार 3000 से अधिक नई प्रजातियों को प्रभावित करेगा, जिससे कई प्रजातियां या तो विलुप्त हो जाएंगी या विलुप्त होने के कगार पर पहुंच जाएंगी।

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18 फीसदी का होता है कारोबार 

एक नए अध्ययन में सामने आया है कि पृथ्वी पर मौजूद 31,745 कशेरुकी प्रजातियों में से, 5579 यानी 18 फीसदी का विश्व स्तर पर कारोबार किया जाता है। इसका मतलब यह है कि पक्षियों, स्तनधारियों, उभयचरों और सरीसृपों की प्रत्येक पांच प्रजातियों में लगभग एक को वन्य जीव बाजार में खरीदा और बेचा जाता है। यह आकलन पिछले अनुमानों की तुलना में 40-60 प्रतिशत अधिक है।

हैरान करते हैं आंकड़े

वन्य जीवों के होने वाले व्यापार में स्तनपायी प्रजातियों का 27 प्रतिशत (1,441), पक्षियों की प्रजातियों का 23 प्रतिशत (2,345), उभयचर प्रजातियों का 10 प्रतिशत (609) और सरीसृपों का 12 प्रतिशत (1,184) हिस्सा होता है।अध्ययन के शोधकर्ताओं का अनुमान है कि भविष्य में यह व्यापार 3000 से अधिक अतिरिक्त प्रजातियों (अभी जो प्रजातियां प्रभावित हो रही हैं उनके अलावा) को प्रभावित करेगा।

व्यापार के दायरे में 8700 प्रजातियां

फ्लोरिडा यूनिवर्सिटी और शेफील्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया यह अध्ययन साइंस नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया है। व्यापार के दायरे में 8700 प्रजातियां आ जाएंगी। उन्होंने बताया कि भविष्य में जल्द ही वन्य जीव व्यापार उद्योग आठ अरब डॉलर से बढ़कर 21 अरब डॉलर का हो जाएगा, इससे वन्य जीवों की कई प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर आ जाएंगी।

ये हैं व्‍यापार की वजहें

वन्य जीवों के व्यापार का मुख्य कारण विलासिता पूर्ण भोजन, इनको पालना और औषधीय जरूरतें हैं। 45 फीसद से अधिक पक्षी की प्रजातियों और 51 प्रतिशत उभयचर प्रजातियों का व्यापार पालतू जानवरों के रूप में किया जाता है। दूसरी ओर, 90 प्रतिशत स्तनधारी और 63 प्रतिशत से अधिक पक्षी प्रजातियों का व्यापार विभिन्न प्रकार के उत्पाद तैयार करने के लिए किया जाता है।

44 फीसदी का व्‍यापार पालतू पशुओं के रूप में

पैंगोलिन का शिकार मांस और उसकी खाल दोनों के लिए किया जाता है, जबकि गैंडे का शिकार उसके सींग के लिए किया जाता है। अध्ययन में पाया गया कि कुल मिलाकर कशेरुकी प्राणियों में 44 प्रतिशत का व्यापार पालतू जानवरों के रूप में और 60 प्रतिशत का व्यापार उत्पादों को बनाने के लिए किया जाता है। स्तनपायी जानवरों के व्यापार के प्रमुख केंद्र अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया हैं, जबकि ऑस्ट्रेलिया और मेडागास्कर सरीसृपों के व्यापार के मुख्य केंद्र हैं।

बढ़ता जा रहा जीवों का व्‍यापार

दुनियाभर में वन्य जीवों का व्यापार लगातार बढ़ता जा रहा है। विश्व में मौजूद पक्षियों, स्तनधारियों, सरीसृपों और उभयचरों की पांच प्रजातियों में से लगभग एक को वन्य जीव बाजार में खरीदा-बेचा जा रहा है। शोधकर्ताओं का कहना है कि भविष्य में यह व्यापार 3000 से अधिक नई प्रजातियों को प्रभावित करेगा, जिससे कई प्रजातियां या तो विलुप्त हो जाएंगी या विलुप्त होने के कगार पर पहुंच जाएंगी।

...तो बढ़ जाएगी ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा 

अध्‍ययनों में पाया गया है कि वन्‍य जीव पारिस्थिक तंत्र की एक अहम कड़ी हैं। इन दुर्लभ जीवों के नहीं रहने से वातावरण जहरीला होने लगेगा जिससे इंसानों का जीवन में खतरे में पड़ जाएगा। नेचर जियोसाइंस (Nature Geoscience) में प्रकाशित एक अध्‍ययन में यह भी कहा गया है कि यदि अफ्रीका के जंगलों से केवल हाथी ही विलुप्‍त हो जाएं तो हमारे वातावरण में हानिकारक ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा सात फीसद बढ़ जाएगी। यही नहीं इससे ओजोन की परत को भारी नुकसान पहुंचेगा जिसकी भरपाई में बड़ी मुश्किल पेश आएगी। 

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