क्या राज्य अपने स्तर पर पूर्ण रूप से समान नागरिक संहिता लागू कर सकते हैं?
One Nation One Law छद्म पंथ-निरपेक्षता के भाव को दूर करने के लिए राज्यों द्वारा समान नागरिक संहिता यानी एक देश एक कानून को लागू कराने वाले संवैधानिक प्रविधानों की पड़ताल आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।
नई दिल्ली, जेएनएन। संविधान सभा की बैठक में यूनिफार्म सिविल कोड (यूसीसी) पर की गई चर्चा के 73 साल बीत गए। आज हम आजादी के 75 साल पर अमृत महोत्सव मना रहे हैं, लेकिन यूसीसी को लागू नहीं कराया जा सका। संविधान का अनुच्छेद 37 कहता है कि नीति निर्देशक तत्वों को लागू कराना सरकार का मूल दायित्व है। किसी भी पंथ निरपेक्ष देश में धार्मिक आधार पर अलग-अलग कानून नहीं होने चाहिए। लेकिन यहां अलग-अलग पंथों के मैरिज एक्ट लागू हैं। जब तक समान नागरिक संहिता लागू नहीं होती है, तब तक संविधान में उल्लिखित देश के पंथ-निरपेक्ष भाव के मायने अस्पष्ट हैं।
आजादी के बाद पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने यूसीसी लागू करने की दिशा में कदम उठाया लेकिन हिंदू कोड बिल ही लागू करा सके। संविधान निर्माता भीमराव आंबेडकर भी समान नागरिक संहिता के पक्षधर थे, लेकिन जब उनकी सरकार यह काम न कर सकी तो उन्होंने पद छोड़ दिया। इससे पहले संविधान सभा में जब आंबेडकर ने यूनीफॉर्म कोड अपनाने की बात रखी तो कुछ सदस्यों ने उग्र विरोध किया, लिहाजा मसले को संविधान के अनुच्छेद 44 में नीति-निर्देशक तत्वों के तहत रख दिया गया। इसे लागू कराने को लेकर विधि आयोग पहले से ही काम कर रहा है। कई बार इसे लागू कराने को लेकर सुप्रीम कोर्ट सरकार से सवाल-जबाव कर चुका है, लेकिन अभी कोई ठोस नतीजा नहीं निकला है।
अब एक बार यह प्रविधान फिर से आम और खास की चर्चा के केंद्र में है। उत्तराखंड के बाद हिमाचल प्रदेश ने भी कहा है कि वे अपने बलबूते राज्य में समान नागरिक संहिता लागू करेंगे। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी कह चुके हैं कि भाजपा शासित सभी प्रदेशों में यह कानून लागू किया जाएगा। निश्चित तौर पर इसकी जरूरत पर तो कोई सवाल ही नहीं है, लेकिन लोगों के जेहन में प्रश्न तैर रहा है कि क्या राज्य अपने स्तर पर पूर्ण रूप से समान नागरिक संहिता लागू कर सकते हैं?
कानून एक लाभ अनेक
भारतीय दंड संहिता की तर्ज पर देश के सभी नागरिकों के लिए एक भारतीय नागरिक संहिता (वन नेशन-वन सिविल कोड) लागू होने से देश और समाज को सैकड़ों जटिल, बेकार और पुराने कानूनों से मुक्ति मिलेगी।
- वर्तमान समय में अलग-अलग धर्म के लिए लागू अलग-अलग ब्रिटिश कानूनों से सबके मन में हीनभावना व्याप्त है। सभी नागरिकों के लिए एक ‘भारतीय नागरिक संहिता’ लागू होने से हीनभावना से मुक्ति मिलेगी।
- एक पति-एक पत्नी’ की अवधारणा सभी पर समान रूप से लागू होगी और बांझपन या नपुंसकता जैसे अपवाद का लाभ एक समान रूप से मिलेगा।
- विवाह-विच्छेद का एक सामान्य नियम सबके लिए लागू होगा। विशेष परिस्थितियों में मौखिक तरीके से विवाह विच्छेद की अनुमति भी सभी को होगी।
- पैतृक संपत्ति में पुत्र-पुत्री तथा बेटा-बहू को समान अधिकार प्राप्त होगा।
- विवाह-विच्छेद की स्थिति में विवाहोपरांत अर्जित संपत्ति में पति-पत्नी को समान अधिकार होगा।
- वसीयत, दान, बंटवारा, गोद लेने के संबंध में सभी पर एक समान कानून लागू होगा।
- राष्ट्रीय स्तर पर एक समग्र एवं एकीकृत कानून मिल सकेगा और सभी नागरिकों के लिए समान रूप से लागू होगा।
- जाति, धर्म और क्षेत्र के आधार पर अलग-अलग कानून होने से पैदा होने वाली अलगाववादी मानसिकता समाप्त होगी और एक अखंड राष्ट्र के निर्माण की दिशा में हम तेजी से आगे बढ़ सकेंगे।
- अलग-अलग धर्मो के लिए भिन्न-भिन्न कानून होने के कारण अनावश्यक मुकदमों में उलझना पड़ता है। सबके लिए एक नागरिक संहिता होने से न्यायालय का बहुमूल्य समय बचेगा।
- भारतीय नागरिक संहिता लागू होने से रूढ़िवाद, कट्टरवाद, जातिवाद, संप्रदायवाद, क्षेत्रवाद और भाषावाद समाप्त होगा। वैज्ञानिक सोच विकसित होगी।