प्राइम टीम, नई दिल्ली। क्या गैस चूल्हा भी सेहत के लिए नुकसानदायक हो सकता है? अमेरिका में एक स्टडी में यह बात सामने आई है और अब वहां घरों में गैस चूल्हे पर रोक लगाने पर विचार हो रहा है। गैस चूल्हा घरों में प्रदूषण का स्तर बढ़ाते हैं। इनसे नाइट्रोजन ऑक्साइड, मीथेन, कार्बन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी गैसें तथा पार्टिकुलेट मैटर निकलते हैं। यह बच्चों में दमे की बीमारी की बड़ी वजह बनता जा रहा है। इसकी वजह से लोगों में सांस की अन्य बीमारियां भी हो रही हैं।

सीएनएन की एक खबर के अनुसार अमेरिका के कंज्यूमर प्रोडक्ट सेफ्टी कमिश्नर (सीपीएससी) रिचर्ड ट्रुमका जूनियर ने गैस चूल्हे को छिपा हुआ खतरा बताया है। उन्होंने यह भी कहा है कि जिस प्रोडक्ट को हम सुरक्षित नहीं कर सकते, उस पर रोक लगा सकते हैं।

6.5 लाख अमेरिकी बच्चों को गैस चूल्हे के कारण अस्थमा

इंटरनेशनल जर्नल आफ एनवायरमेंटल रिसर्च एंड पब्लिक हेल्थ में दिसंबर 2022 में एक स्टडी रिपोर्ट प्रकाशित हुई। स्टडी के अनुसार अमेरिका में बच्चों में जो दमे की बीमारी बढ़ रही है, उसमें 12.7% के लिए गैस चूल्हा जिम्मेदार है। कुल 6.5 लाख अमेरिकी बच्चों में अस्थमा गैस चूल्हे के कारण हुआ है। वहां 35% परिवार गैस चूल्हे का इस्तेमाल करते हैं। कैलिफोर्निया और न्यूजर्सी जैसे राज्यों में यह अनुपात 70% तक है।

दिल्ली मेडिकल काउंसिल की साइंटिफिक कमेटी के चेयरमैन डॉ. नरेंद्र सैनी ने जागरण प्राइम से बातचीत में कहा, “अस्थमा का मुख्य कारण एलर्जी है। अमेरिका में आम तौर पर एलर्जी के मामले ज्यादा पाए जाते हैं। संभव है कि वहां रसोई में इस्तेमाल की जाने वाली गैस से लोगों को ज्यादा एलर्जी होती है। भारत में धूल कण और पराली जलाने से एलर्जी ज्यादा होती है।”

अमेरिकी सांसदों ने लिखा पत्र

कुछ अमेरिकी सांसदों ने कंज्यूमर प्रोडक्ट सेफ्टी कमीशन के चेयरमैन एलेक्जैंडर होएन-सारिच को इस बारे में पत्र भी लिखा है। पत्र में कहा गया है कि जिन बच्चों को दमा है, कुछ समय तक नाइट्रोजन ऑक्साइड के संपर्क में आने से उनकी स्थिति बिगड़ रही है। जिन बच्चों में यह बीमारी नहीं है, वे भी लंबे समय तक नाइट्रोजन ऑक्साइड के संपर्क में आने से दमे का शिकार हो रहे हैं। गरीब परिवार के बच्चों के लिए खतरा अधिक बताया गया है क्योंकि उनकी रसोई में हवा आने-जाने की उचित व्यवस्था नहीं होती है।

फिलहाल सीपीएससी गैस चूल्हे के खतरों पर सार्वजनिक टिप्पणी मंगवाने और गैस चूल्हे से होने वाले नुकसान का आंकड़ा एकत्रित करने पर विचार कर रहा है। इस पर प्रतिबंध के अलावा जो अन्य विकल्प हैं उनमें चूल्हे से निकलने वाले उत्सर्जन का मानक तय करना भी शामिल है। उचित वेंटिलेशन भी एक विकल्प है, जिसके अभाव में घरों में प्रदूषण फैलाने वाले तत्वों का स्तर खतरनाक हो जाता है।

कई शहरों में पहले ही रोक

अमेरिका के कई शहरों में नई इमारतों में प्राकृतिक गैस का इस्तेमाल पहले ही प्रतिबंधित कर दिया गया है, ताकि ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम किया जा सके। बर्कले में 2019 में, सैन फ्रांसिस्को में 2020 में, न्यूयॉर्क सिटी में 2021 में इस पर रोक लगाई गई है। हालांकि वहां 50 में से 20 राज्यों में प्राकृतिक गैस पर रोक लगाने के खिलाफ कानून भी लागू किए गए हैं।

गैस चूल्हा बनाने वाली इंडस्ट्री प्रतिबंध लगाने के खिलाफ तर्क दे रही है। अमेरिका की एसोसिएशन ऑफ होम अप्लायंसेज मैन्युफैक्चरर्स ने कहा है कि प्रतिबंध से 40% से ज्यादा घरों में सस्ते ईंधन का विकल्प खत्म हो जाएगा। प्रतिबंध से प्रदूषण की समस्या से भी निजात नहीं मिलेगी, क्योंकि चूल्हा चाहे जैसा भी हो, अधिक तापमान पर उसमें से प्रदूषण फैलाने वाले तत्व निकलते ही हैं। अमेरिकन गैस एसोसिएशन का तर्क है कि गैस को छोड़कर बिजली का विकल्प अपनाना काफी महंगा पड़ेगा।

स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने पिछले साल एक अध्ययन में पाया कि अमेरिकी घरों में गैस चूल्हे से निकलने वाला उत्सर्जन पांच लाख पेट्रोल कारों के बराबर है। प्राकृतिक गैस में मीथेन की काफी मात्रा होती है और ग्लोबल वार्मिंग में मीथेन का बड़ा योगदान है। वैज्ञानिकों के अनुसार शॉर्ट टर्म में यह कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 80 गुना अधिक प्रभावशाली है। गैस चूल्हा जलाने पर 0.8% से 1.3% प्राकृतिक गैस बिना जले वातावरण में चली जाती है। वैज्ञानिकों के अनुसार वातावरण में मीथेन का मौजूदा स्तर पिछले आठ लाख साल में सबसे ज्यादा है।

छोटी रसोई में समस्या अधिक

स्टैनफोर्ड की स्टडी में यह भी पाया गया कि अगर रसोईघर छोटा है तो गैस चूल्हा जलाने के बाद कुछ मिनटों में ही रसोई में जहरीली नाइट्रोजन ऑक्साइड का स्तर खतरनाक हो जाता है। अध्ययन में यह भी पता चला कि गैस चूल्हा जितनी देर अथवा जितना तेज जलता है, नाइट्रोजन ऑक्साइड का स्तर उतना अधिक होता है।

स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में जितने घरों के गैस चूल्हे की जांच की, उन सब में गैस लीकेज की समस्या थी। चूल्हा बंद होने पर भी गैस लीक हो रहा था। चूल्हे से जितनी मीथेन गैस का उत्सर्जन होता है, उसका 76% लीकेज की वजह से ही था। मीथेन एक प्रमुख ग्रीन हाउस गैस है।

प्राकृतिक गैस को कोयले की तुलना में बेहतर ईंधन माना जाता है, क्योंकि इसमें कार्बन डाई ऑक्साइड गैस का उत्सर्जन कम होता है। लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि इस आकलन में गैस लीकेज तथा बिना जली हुई मीथेन के वातावरण में जाने को शामिल नहीं किया गया है, जो ग्लोबल वार्मिंग में बड़ा योगदान कर रही हैं।

एलपीजी बेहतर, पर पूरी तरह सुरक्षित नहीं

ग्रेटर नोएडा स्थित शारदा अस्पताल में रेस्पिरेटरी मेडिसिन के प्रोफेसर और प्रमुख डॉ. देवेंद्र कुमार सिंह कहते हैं, “सांस की बीमारियां मुख्य रूप से प्रदूषक तत्वों, बायोमास ईंधन और धुएं से होती हैं। इसलिए घर में खाना बनाने के लिए एलपीजी को बेहतर माना गया क्योंकि इससे प्रदूषण कम फैलता है। लेकिन हमें यह समझना होगा कि एलपीजी भी पूरी तरह सुरक्षित नहीं है।”

डॉ. सिंह के अनुसार कोयला और लकड़ी जैसे बायोमास ईंधन की तुलना में प्रोपेन गैस से कम पार्टिकल मैटर निकलता है, लेकिन इससे निकलने वाली कार्बन मोनो ऑक्साइड और नाइट्रिक डाइऑक्साइड जैसी गैसें फेफड़े को नुकसान पहुंचा सकती हैं। नाइट्रिक ऑक्साइड से क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी- सांस की बीमारी) हो सकती है। हालांकि अगर रसोईघर हवादार है तो उसमें जहरीली गैस जमा नहीं होगी। लेकिन लंबे समय तक एलपीजी के संपर्क में रहने के असर को समझने के लिए और अध्ययन की जरूरत है।

दुनिया में 20 लाख बच्चों को नाइट्रोजन ऑक्साइड से दमा

हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की वेबसाइट पर मैसाचुसेट्स जनरल हॉस्पीटल की एमडी डॉ. वेन अर्मांड ने एक लेख में लिखा है कि गैस स्टोव पर खाना बनाने से नाइट्रोजन डाइऑक्साइड गैस के अलावा फेफड़ों को प्रभावित करने वाला पीएम 2.5 प्रदूषक तत्व भी निकलता है। नाइट्रोजन डाइऑक्साइड से बच्चों में दमे की बीमारी हो रही है। 2019 में दुनिया भर में 20 लाख बच्चों को नाइट्रोजन ऑक्साइड के कारण दमे की बीमारी हुई। गैस चूल्हा इस्तेमाल करने वाले घरों के बच्चों में दमे का खतरा 42% अधिक होता है। नाइट्रोजन ऑक्साइड का स्तर बढ़ने पर दमे के लक्षण बढ़ने के भी संकेत मिले हैं।

हार्वर्ड टी.एच. चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के एक अध्ययन में पाया गया कि गैस अप्लायंसेज घरों में अन्य जहरीले रसायन भी फैलाते हैं। इस अध्ययन में बेंजीन और टॉलुइन जैसे पदार्थ भी घर में पाए गए। इनसे अस्थमा, कैंसर और अन्य बीमारियों का खतरा रहता है।

भारत में अब भी लकड़ी-कोयले का इस्तेमाल ज्यादा

भारत में अब भी आधे परिवार खाना बनाने के लिए लकड़ियों, झाड़, फसलों के अवशेष जैसे बायोमास का प्रयोग करते हैं। इनसे प्राकृतिक गैस की तुलना में अधिक प्रदूषण और बीमारियां फैलती हैं। इसलिए फिलहाल सरकार रसोई गैस के इस्तेमाल को बढ़ावा दे रही है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2019-2021 के अनुसार शहरों में अभी 8.9% और गांवों में 54.6% परिवार खाना बनाने के लिए बायोमास का इस्तेमाल करते हैं। पूरे देश के स्तर पर यह अनुपात 43.3 प्रतिशत है। शहरों में 88.6% परिवार एलपीजी या पीएनजी (पाइप्ड नेचुरल गैस) का इस्तेमाल करते हैं। ग्रामीण इलाकों में सिर्फ 42% परिवारों के पास एलपीजी कनेक्शन है। देश स्तर पर यह अनुपात 56.2% है।

भारत में एलपीजी चूल्हे का चलन 1970 के दशक में शुरू हुआ। 1977 में देश में सिर्फ 32 लाख एलपीजी कनेक्शन थे। अर्थात सिर्फ ढाई प्रतिशत परिवारों के पास गैस कनेक्शन था। 1990 में कनेक्शन की संख्या 2 करोड़ के आसपास पहुंच गई। पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल (पीपीएसी) के अनुसार 1 जुलाई 2022 को देश में 30.95 करोड़ सक्रिय एलपीजी ग्राहक थे।