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एक समय CJI पर खुद ही सवाल उठा चुके हैं जस्टिस रंजन गोगोई; जानें क्या था पूरा मामला

सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई के खिलाफ यौन शोषण के मामले में सुनवाई हुई। जस्टिस गोगोई भी तत्कालीन CJI दीपक मिश्रा के खिलाफ प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चुके हैं।

By Digpal SinghEdited By: Published: Sat, 20 Apr 2019 02:05 PM (IST)Updated: Sat, 20 Apr 2019 03:04 PM (IST)
एक समय CJI पर खुद ही सवाल उठा चुके हैं जस्टिस रंजन गोगोई; जानें क्या था पूरा मामला
एक समय CJI पर खुद ही सवाल उठा चुके हैं जस्टिस रंजन गोगोई; जानें क्या था पूरा मामला

नई दिल्ली, [जागरण स्पेशल]। सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने न्यायपालिका के इतिहास में पहली बार 12 जनवरी 2018 को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। यह पहला मौका था जब सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने देश के सामने आकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही कथित अनियमितताओं को लेकर प्रेस कांफ्रेंस की। उस वक्त सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ जज जस्टिस चेलमेश्वर के अलावा जस्टिस रंजन गोगोई (मौजूदा मुख्य न्यायाधीश), जस्टिस जोसेफ और जस्टिस मदन लोकूर ने मीडिया से बात की। 

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जस्टिस दीपक मिश्रा पर क्या था आरोप
सुप्रीम कोर्ट के 4 वरिष्ठ न्यायाधीशों जस्टिस चेलमेश्वर, जस्टिस मदन लोकुर, जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस रंजन गोगोई ने मीडिया से मुखातिब होकर प्रशासनिक अनियमितताओं के आरोप लगाए थे। इन चारों जजों का आरोप था कि मुख्य न्यायाधीश केस आवंटित करने का काम न्यायसंगत तरीके से नहीं कर रहे हैं। इन चारों न्यायाधीशों ने अपनी शिकायत सार्वजनिक करने के साथ ही एक लंबी-चौड़ी चिट्ठी भी जारी की। 

यह भी पढ़ें : CJI जस्टिस गोगोई ने यौन शोषण के आरोपों को खारिज किया, बोले - न्यायपालिका खतरे में

जस्टिस चेलमेश्वर ने मीडिया से बात करते हुए कहा, 'करीब दो महीने पहले हम 4 जजों ने चीफ जस्टिस को पत्र लिखा और मुलाकात की। हमने उनसे बताया कि जो कुछ भी हो रहा है, वह सही नहीं है। प्रशासन ठीक से नहीं चल रहा है। यह मामला एक केस के असाइनमेंट को लेकर था।' उन्होंने कहा - हम चीफ जस्टिस को अपनी बात समझाने में असफल रहे। इसलिए हमने राष्ट्र के समक्ष पूरी बात रखने का फैसला किया। 

आमतौर पर मीडिया से दूर रहते हैं जज 
शीर्ष अदालत के जजों की यह प्रेस कॉन्फ्रेंस अपने आप में बेहद खास और ऐतिहासिक थी। आमतौर पर जज मीडिया से दूरी बनाकर रखते हैं और सार्वजनिक तौर पर न्यायपालिका का पक्ष रखने की जिम्मेदारी चीफ जस्टिस की ही होती है। उस वक्त चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और दूसरे नंबर के सीनियर जज जस्टिस चेलमेश्वर के बीच कई मुद्दों को लेकर मतभेद की खबरें थीं 

आइए जानते हैं प्रेस कांफ्रेंस करने वाले ये चार न्यायाधीशों के बारे में...

जस्टिस चलमेश्वर

जस्टिस चलमेश्र्वर का जन्म 23 जून 1953 को आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में हुआ था। उन्होंने 12वीं तक की शिक्षा वहीं के हिंदू हाई स्कूल से ली। इसके बाद चेन्नई के प्रतिष्ठित लोयोला कॉलेज से साइंस में स्नातक किया। 1976 में आंध्र यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई पूरी की। वह 1995 में एडिशनल एडवोकेट जनरल बने। 1997 में आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में एडिशनल जज और 2007 में गुवाहाटी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे। वह 2010 में केरल हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बनाए गए। फिर 10 अक्टूबर 2011 को सुप्रीम कोर्ट में जज बने। 64 वर्षीय जस्टिस चलमेश्र्वर सर्वोच्च न्यायालय में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के बाद दूसरे सबसे वरिष्ठ जज थे। वह जस्टिस दीपक मिश्रा के पहले ही सेवानिवृत्त हो गए थे।

महत्वपूर्ण फैसले:अभिव्यक्ति की आजादी और आधार कार्ड पर फैसले दिए। उन्होंने निजता को मूलभूत अधिकार माना। वह जजों की नियुक्ति के लिए बने कोलेजियम सिस्टम का विरोध करते रहे हैं। इसके लिए उन्होंने नेशनल जूडिशियल एप्वांयटमेंट कमीशन का समर्थन किया। वह एनजेएसी को 2015 में असंवैधानिक घोषित करने वाली बेंच में शामिल थे लेकिन बहुमत के फैसले के साथ नहीं थे। यानी उन्होंने एनजेएसी के पक्ष में अपनी राय रखी थी।

जस्टिस रंजन गोगोई:

जस्टिस गोगोई का जन्म 18 नवंबर 1954 को हुआ था। वह 1978 में बार के सदस्य बने। उन्होंने गुवाहाटी में वकालत की। 2001 में गुवाहाटी हाईकोर्ट के जज बने। 2010 में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के जज बनाए गए। 2011 में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बने और अप्रैल 2012 में सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में नियुक्त हुए। असम के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. केसी गोगाई के पुत्र 63 वर्षीय जस्टिस रंजन गोगोई सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश हैं। जस्टिस दीपक मिश्रा के बाद उन्हें मुख्य न्यायाधीश बनाया गया।

महत्वपूर्ण फैसले: सौम्या मर्डर केस में ब्लॉग लिखने वाले जस्टिस काटजू को अदालत में बुला लिया था। वह उस बेंच का हिस्सा थे जिसने लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ने वालों के लिए संपत्ति, शैक्षणिक योग्यता और मुकदमों की जानकारी देना अनिवार्य किया था। जस्टिस कर्णन को सजा सुनाने के साथ जाटों को मिले ओबीसी कोटा को खत्म करने वाली बेंच में भी शामिल थे।

जस्टिस कुरियन जोसेफ:

जस्टिस कुरियन जोसेफ का जन्म 30 नवंबर 1953 को हुआ था। उन्होंने 1979 में केरल हाईकोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की। वह 1994 से 1996 तक एडिशनल एडवोकेट जनरल रहे। साल 2000 में केरल हाईकोर्ट के जज बने। 2006 से 2008 तक केरल जूडिशियल एकेडमी के अध्यक्ष रहे। दो बार केरल हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रहने के बाद 2013 में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और 2013 में माननीय सुप्रीम कोर्ट के जज बने। जस्टिस जोसेफ भी अब रिटायर हो चुके हैं।

महत्वपूर्ण फैसले: बहुचर्चित तीन तालाक मामले में फैसला सुनाने वाली बेंच के सदस्य थे। नेशनल जूडिशियल एप्वांयटमेंट कमीशन को अस्वीकार्य करने वाली बेंच में भी थे।

जस्टिस एमबी लोकुर:

जस्टिस मदन भीमराव लोकुर का जन्म 31 दिसंबर 1953 को हुआ था। उन्होंने अपनी पढ़ाई दिल्ली के प्रतिष्ठित मॉर्डन स्कूल से की। 1974 में सेंट स्टीफेंस कॉलेज से ग्रेजुएशन और दिल्ली लॉ फैकल्टी से 1977 में एलएलबी की शिक्षा पूरी की। वह 1981 में सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड बने। 1998 में एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया रहे। 1999 में दिल्ली हाईकोर्ट के जज बने। 2010 में दिल्ली हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस रहे। इसके बाद गुवाहाटी हाईकोर्ट व आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के भी मुख्य न्यायाधीश रहे। 2012 में सुप्रीम कोर्ट के जज बने। जस्टिस लोकुर पिछले साल दिसंबर में सेवानिवृत्त हो चुके हैं।

महत्वपूर्ण फैसले: उन्होंने खनन घोटाला मामले में फैसला दिया था। नाबालिग पत्‍‌नी के साथ यौन संबंध को बलात्कार बताते हुए भी फैसला सुनाया था।

यह भी पढ़ें: पढ़िए वह चिट्टी जो चार न्यायधीशों ने लिखी थी मुख्य न्यायधीश के नाम


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