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श्रावण के पहले सोमवार पर करें महाकाल की सवारी के सभी रूपों के दर्शन

श्रावण-भादौ मास में भगवान महाकाल हर सोमवार को शाम करीब 4 बजे विभिन्‍न रूपों में विविध वाहनों पर सवार होकर भक्तों को दर्शन देने निकलते हैं। भक्त इन रूपों की एक झलक पाकर ही निहाल हो जाते हैं। शहर भ्रमण के बाद रात में महाकाल वापस मंदिर लौटते हैं।

By anand rajEdited By: Published: Mon, 03 Aug 2015 08:12 AM (IST)Updated: Mon, 03 Aug 2015 10:38 AM (IST)
श्रावण के पहले सोमवार पर करें महाकाल की सवारी के सभी रूपों के दर्शन

उज्जैन (ब्यूरो)। श्रावण-भादौ मास में भगवान महाकाल हर सोमवार को शाम करीब 4 बजे विभिन्न रूपों में विविध वाहनों पर सवार होकर भक्तों को दर्शन देने निकलते हैं। भक्त इन रूपों की एक झलक पाकर ही निहाल हो जाते हैं। शहर भ्रमण के बाद रात में महाकाल वापस मंदिर लौटते हैं। जानिए इनके बारे में-

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ये मुखौटे किए जाते हैं शामिल

पहले सोमवार को पालकी में मनमहेश निकलते हैं। दूसरी सवारी में चंद्रमौलेश्वर हाथी पर और पालकी में मनमहेश। इसके बाद क्रमश: नंदी पर उमा-महेश, गरुड़ पर शिव-तांडव, बैल जोड़ी पर होलकर, जटाशंकर रूप में दर्शन देते हैं।

अनादिकाल से जारी परंपरा

पालकी में भगवान के नगर भ्रमण की परंपरा अनादिकाल से मानी गई है। सिंधिया स्टेट के समय अन्य रूपों को सवारी में शामिल किया गया।

उद्देश्य-हर भक्त को दर्शन देना

माना जाता है कि महाकाल की सवारी इसलिए निकाली जाती है ताकि भगवान हर भक्त तक सभी रूपों में पहुंच सकें। सवारी से पहले पुजारी मुखौटे सम्मुख रख महाकाल से इनमें विराजित होने का आह्वान करते हैं। ऐसा इसलिए ताकि हर रूप में हर भक्त भगवान के दर्शन कर सके। खासकर वे जो किसी कारण से मंदिर नहीं आ सकते।

लौटने पर ही होती है संध्या आरती

यही वजह है कि श्रावण-भादौ मास में जब तक सवारी लौटकर नहीं आती, महाकाल की संध्या आरती नहीं होती। ऐसा माना जाता है कि प्रभु मुखौटे में विराजित हो नगर भ्रमण पर गए हैं।


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