संक्रमण का जोखिम बढ़ा रहा ओमिक्रोन, महामारी से निपटने की सामूहिक जिम्मदारी
कोविड रोधी टीकाकरण कार्यक्रम की बदौलत यह उम्मीद जग रही थी कि 2021 के अंत तक यह महामारी किसी आम फ्लू (खांसी-जुकाम) की तरह ही रह जाएगी लेकिन अफ्रीका में इसके नए प्रतिरूप ओमिक्रोन ने हमारी सांसें एक बार फिर अटका दी हैं।
अभिषेक कुमार सिंह। कोरोना वायरस का एक नया प्रतिरूप सामने आया है। हालांकि अभी कोई नहीं जानता कि कोरोना का यह नया चेहरा क्या रंग दिखाएगा, लेकिन सावधानी के तौर पर कई देशों ने पहले की तरह ही पाबंदियां लागू कर दी हैं। इस मोड़ पर आकर कई आशंकाएं हर स्तर पर कायम हैं। भारत में भी पूछा जा रहा है कि कोविड वैक्सीन की दो खुराकें लेने के बावजूद क्या हम खुद को कोरोना के हमले से सुरक्षित मान सकते हैं। एक अहम सवाल यह भी है कि आखिर वह दवा या वैक्सीन क्यों नहीं बन पा रही है जो हर किस्म के कोरोना संक्रमण से हमें बचा सके। या फिर जिस हर्ड इम्युनिटी की बात कही जाती रही है, वह कब और कैसे हमारे देश और दुनिया के दूसरे देशों में आएगी, ताकि जीवन पहले की तरह हो सके।
असल में चिकित्सा बिरादरी इस संबंध में पहले से आगाह करती रही है कि कोरोना जैसी संक्रामक बीमारियों की कई लहरें आती हैं और हर बार नया संक्रमण बचाव के लिए अपनाए गए इंतजामों को धता बता देती हैं। शायद इस बात पर आज बहुत से लोग हैरानी जताएं, पर यह सच है कि मार्च-अप्रैल 2021 में जब भारत समेत दुनिया के कई देश कोरोना की दूसरी लहर का भयावह प्रकोप ङोल रहे थे, विशेषज्ञों ने कोरोना के नए बदलाव यानी म्युटेशन (उत्पर्तिन) की चेतावनी दे दी थी।
विश्व के 28 देशों के 77 महामारी विज्ञानियों, वायरोलाजिस्ट और संक्रामक रोग विशेषज्ञों वाले इस अलायंस में शामिल विज्ञानियों में से दो-तिहाई का कहना था कि कोविड रोधी वैक्सीन एक साल या उससे भी कम समय में निष्प्रभावी हो सकता है। इस अलायंस ने यह कहते हुए दुनिया की चिंता बढ़ाई थी कि अगले एक साल में गरीब देशों में केवल 10 प्रतिशत लोगों को ही कोविड से बचाव का टीका लगाया जा सकेगा। हालांकि भारत ने 50 प्रतिशत आबादी को कोरोना वैक्सीन की दो खुराकें देकर साफ किया है कि मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति के बल पर मुश्किल लक्ष्य भी हासिल किए जा सकते हैं, लेकिन कोरोना के नए संक्रामक रूप ने उसकी चुनौतियों को भी बढ़ा दिया है।
एक बड़ी चुनौती यह है कि अगर किसी देश में पूरी आबादी को वैक्सीन नहीं लगे यानी वैक्सीन कवरेज कम रहे, तो इस वजह से कोरोना वायरस में रेसिस्टेंट म्युटेशन हो सकता है। इसलिए विशेषज्ञ चेता चुके हैं कि दुनियाभर में वैक्सीन कवरेज बढ़ाया जाए, ताकि एक निश्चित आबादी में हर्ड इम्युनिटी विकसित की जा सके। हर्ड इम्युनिटी के लिए कम से कम 70 प्रतिशत आबादी का टीकाकरण जरूरी समझा जाता है। असल में वायरस जितनी तेजी से फैलेगा, उसमें म्युटेशन भी उतनी ही तेजी से होने का जोखिम है। ऐसे में वे म्युटेशन टीकों को एक साल या उससे भी कम समय में निष्प्रभावी बना सकते हैं। चूंकि ओमिक्रोन को सबसे तेज फैलने वाले संक्रामक वायरस की श्रेणी में रखा गया है और विश्व स्वास्थ्य संगठन भी इसे चिंताजनक वायरस प्रकार (वैरिएंट आफ कंसर्न) कह चुका है, इसलिए टीकाकरण बढ़ाने की जरूरत है ताकि अधिकतम लोगों को संक्रमण से बचाव मिल सके।
हैरान करने वाला वायरस : आज इस बात से बहुत से चिकित्सा विज्ञानी सहमत हैं कि सामान्यत: वायरस में जिस तरह के बदलाव होते हैं और जिनकी उम्मीद होती है, उनके हिसाब से कोरोना वायरस बहुत तेजी से बदल रहा है। हालांकि अभी ओमिक्रोन के अंतिम प्रभाव के बारे में ठोस रूप से कुछ भी कहने से बचा जा रहा है। लेकिन नया वैरिएंट मिलने की सूचना से इस बारे में एक राय अवश्य बन गई है कि कोविड संक्रमण का खतरा अभी टला नहीं है, क्योंकि कोविड रोधी वैक्सीन अभी भी इस बीमारी की गंभीरता को रोकने में पूरी तरह कारगर साबित नहीं हो सकती है। नोवल कोरोना वायरस की जिस विशिष्टता ने चिकित्सकों और विज्ञानियों को हैरान किया है, वह इसके तेज म्युटेशन की प्रवृत्ति है। ओमिक्रोन में ही अब तक कुल मिलाकर 50 म्युटेशन हुए हैं, जिनमें से 30 से ज्यादा म्युटेशन स्पाइक प्रोटीन में हुए हैं। इसमें भी यदि वायरस के हमारे शरीर की कोशिकाओं से संपर्क बनाने वाले हिस्से की बात करें तो इसमें 10 म्युटेशन हुए हैं।
क्या बला है म्युटेशन : एक जीव के रूप में देखें, तो कहा जा सकता है कि खुद इंसान भी सदियों पहले के मनुष्य के मुकाबले एक नया और म्यूटेंट (उत्परिवर्तित) रूप में मौजूद है। असल में, खुद को प्रतिकूल स्थितियों के हिसाब से ढालने की प्रवृत्ति हमारे भीतर बदलाव लाती है। यह काम इस जीवजगत में प्राय: हर कोशिकीय जीव करता है। यही वजह है कि जब हम एंटीबायोटिक दवाओं या वैक्सीनों के बल पर किसी वायरस के खिलाफ प्रतिरोधी क्षमता विकसित करते हैं, तो वह वायरस भी बदले हुए हालात से मुकाबला करने के लिए अपने अंदर नई ताकत विकसित करता है। आम तौर पर सामान्य वायरस में यह खूबी देर से विकसित होती है, तो दवाओं और वैक्सीनों के बल पर उससे लड़ाई आसान हो जाती है। लेकिन कोरोना वायरस में यह बदलाव बहुत तेजी से हो रहा है, इसलिए टीकाकरण का पूरा अभियान ही संकट में आ गया है। उत्परिवर्तन मतलब वायरस के आनुवंशिक अनुक्रम में परिवर्तन से है। इस तरह म्युटेशन का अर्थ उस अनुक्रम में बदलाव से है, जिसमें उसके अणु व्यवस्थित होते हैं।
ध्यान रहे कि सार्स-कोव-2 एक राइबोन्यूक्लिक एसिड (आरएनए) वायरस है। इसमें आरएनए एक जैविक अणु है जो सभी जीव कोशिकाओं में मौजूद होता है। दूसरे चरण में यह अणु डीआक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड के निर्देशों से संचालित होता है और प्रोटीन संश्लेषण करता है। डीएनए नामक कार्बनिक रसायन ही आनुवांशिक जानकारी और प्रोटीन संश्लेषण को सहेजने का काम करता है। ऐसे में यदि किसी बाह्य वायरस का हमला प्रोटीन संश्लेषण की इस प्रक्रिया में घुसपैठ कर उसे बदल देता है, तो जीवन रक्षा का मामला जटिल हो जाता है। इसी तरह यदि वैक्सीन से एक प्रकार के वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाने के बाद उत्परिवर्तन/ म्यूटेशन से उस वायरस की प्रोटीन संरचना में कोई महत्वपूर्ण बदलाव आ जाता है, तो इससे बीमारी के प्रकार में ही परिवर्तन हो जाता है। यह बदलाव वायरस के व्यवहार को प्रभावित कर सकता है जिसमें वायरस की संक्रमण क्षमता, गंभीर बीमारी के लिए उत्तरदायी होना अथवा टीकों द्वारा विकसित प्रतिरक्षा प्रक्रिया को निष्प्रभावी करना शामिल है।
वैसे तो उत्परिवर्तनों की कोई निश्चित दिशा नहीं होती, वे किसी भी रूप में विकसित हो सकते हैं। लेकिन कोरोना के म्युटेशन प्राय: आनुवांशिक रूप से एक दूसरे के समान होते हैं। चूंकि कोरोना वायरस के विभिन्न टीके इस प्रकार विकसित किए गए हैं, ताकि वे मानव शरीर में स्पाइक प्रोटीन को लक्षित करने में सक्षम एंटीबाडी का निर्माण कर सकें। उल्लेखनीय है कि टीके स्पाइक प्रोटीन के कई क्षेत्रों को एक साथ लक्षित करते हैं, जबकि उत्परिवर्तन किसी एक बिंदु पर होने वाले परिवर्तन तक सीमित रहता है। ऐसे में केवल एक उत्परिवर्तन का यह मतलब नहीं निकलता है कि टीके काम नहीं करेंगे। यही नहीं, वायरस का एक अलग रूप या कहें कि स्ट्रेन अधिक संक्रामक हो सकता है, लेकिन यह जरूरी नहीं है कि उससे बीमारियां भी बहुत अधिक हों।
अनुभव बताते हैं कि वायरसों के कुछ उत्परिवर्तन (म्युटेशन) ऐसे होते हैं जो दवाओं और टीकों के बल पर शरीर में बनी एंटीबाडी के लिए वायरस को पहचानना मुश्किल बना देते हैं। इससे वैक्सीन का प्रभाव कम हो जाता है, जबकि कुछ म्युटेशन बिल्कुल अलग तरह के होते हैं। जैसे कुछ उत्परिवर्तनों के प्रभाव से वायरस की एक से दूसरे व्यक्ति में फैलने की क्षमता बढ़ सकती है। यही बदलाव ओमिक्रोन के रूप में देखा गया है। लेकिन उत्परिवर्तन के बाद कुछ वायरसों के वैरिएंट ऐसे भी पाए गए हैं, जो ऊपरी तौर पर बेहद खौफनाक लगते हैं, लेकिन कुछ खास असर नहीं होता है। इस साल के आरंभ में कोरोना के बीटा वैरिएंट से यही साबित हुआ था। यह वैरिएंट प्रतिरक्षा तंत्र से बच निकलने में माहिर था, लेकिन संक्रामक होने के बावजूद यह ज्यादा संहारक नहीं था। इसकी बजाय डेल्टा वैरिएंट पूरी दुनिया में फैल गया और बड़ी तबाही मचाई।
इसी तरह ओमिक्रोन यदि ज्यादा संक्रामक होने के बाद भी कम प्रभाव छोड़ता है, तो ज्यादा चिंता नहीं होगी। लेकिन यह सब कुछ सरकार की चौकसी, तैयारियों और जनता की सावधानियों पर निर्भर करता है। सरकार के तौर पर हम अपेक्षा करते हैं कि इस बार ज्यादा जिम्मेदारी दिखाई जाए। अगले साल (2022 में) पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर देखना होगा कि चुनाव किस प्रकार संपन्न कराए जाते हैं और रैलियों व भीड़ को कैसे संभाला जाता है। कुछ उपाय सरकारों को अभी से आजमाने चाहिए। जैसे सरकार स्वतंत्र विशेषज्ञों का एक पैनल बनाकर अलग-अलग राज्यों में कोविड से निपटने की कोशिशों का आकलन करे और इस बारे में सजग करे।
हालांकि कोरोना काल में अस्पतालों की दशा सुधरी है, लेकिन संक्रामक बीमारियों से निपटने के लिए देश के हेल्थ सिस्टम को और मजबूत बनाया जाए। इसी तरह देश के नीति-नियंताओं, चिकित्सा व तकनीकी विशेषज्ञों को इस बारे में प्रशिक्षित किया जाए कि वे अफवाहों की रोकथाम करें और हर मामले में जागरूकता बढ़ाएं। इनमें सबसे ज्यादा जरूरी है कि सरकार व जनता के स्तर पर हर किस्म की लापरवाही को रोका जाए। कोरोना की रफ्तार थोड़ी मंद पड़ते ही देखा गया कि वैक्सीन की एक खुराक ले चुके लोगों ने दूसरी डोज लेने की जरूरत नहीं समझी। उनके मुंह से मास्क गायब हो गए, शारीरिक दूरी घटती गई और शादी समारोहों व बाजारों में पहले जैसी भीड़ लगने लगी। यदि यह रवैया नहीं बदला तो कोरोना ही क्या, किसी भी संक्रामक बीमारी की रोकथाम करना हमेशा ही चुनौतीपूर्ण रहेगा।
[एफआइएस ग्लोबल से संबद्ध]