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तेजी से बढ़ रहा महासागरों का तापमान, सदी के आखिर तक समुद्र का जलस्तर 80 सेंटीमीटर तक बढ़ने का खतरा

महासागरों की अंदरूनी सतह की तापमान वृद्धि और ग्लेशियरों के पिघलने से भी सागरों का स्तर बढ़ेगा। इस तरह देखा जाए तो सदी के आखिर तक समुद्र का जलस्तर 50 से 80 सेंटीमीटर तक बढ़ सकता है। इससे कई तटीय इलाकों के डूबने का खतरा रहेगा।

By TaniskEdited By: Published: Thu, 16 Sep 2021 08:14 PM (IST)Updated: Thu, 16 Sep 2021 08:14 PM (IST)
तेजी से बढ़ रहा महासागरों का तापमान, सदी के आखिर तक समुद्र का जलस्तर 80 सेंटीमीटर तक बढ़ने का खतरा
तेजी से बढ़ रहा महासागरों का तापमान।

नई दिल्ली, जेएनएन। भविष्य में जलवायु परिवर्तन की स्थिति को समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि इस सदी के आखिर तक समुद्र का स्तर कितना बढ़ेगा। इसमें बड़ी मुश्किल यह है कि अब तक के अनुमानों में बहुत अंतर पाया गया है। अब सीएसआइआरओ के केवी ल्यू व जुबिन झेंग और यूनिवर्सिटी आफ न्यू साउथ वेल्स के जान चर्च ने इस अनिश्चितता को दूर कराने की दिशा में बड़ी उपलब्धि हासिल की है। उन्होंने अपने शोध में इन अनुमानों को काफी सटीक तरीके से प्रस्तुत किया है। इसे विज्ञान पत्रिका नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित किया गया है। 15 साल के अध्ययन के आधार इस शोध में यह बताने की कोशिश की गई है कि हमारे महासागरों का तापमान कितना बढ़ेगा और इससे समुद्र के स्तर पर कितना प्रभाव पड़ेगा।

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ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम नहीं हुआ तो..

ऐसी स्थिति में महासागरों की ऊपरी 2,000 मीटर की सतह का तापमान बढ़ेगा। 2005-19 के दौरान तापमान जितना बढ़ा था, उसकी तुलना में 11 से 15 गुना ज्यादा वृद्धि होगी। तापमान बढ़ने से पानी का आयतन बढ़ता है। महासागरों की ऊपरी सतह के तापमान में इस वृद्धि से सागरों का स्तर 17 से 26 सेंटीमीटर तक बढ़ सकता है। यह स्तर में कुल वृद्धि का तिहाई है। महासागरों की अंदरूनी सतह की तापमान वृद्धि और ग्लेशियरों के पिघलने से भी सागरों का स्तर बढ़ेगा। इस तरह देखा जाए तो सदी के आखिर तक समुद्र का जलस्तर 50 से 80 सेंटीमीटर तक बढ़ सकता है। इससे कई तटीय इलाकों के डूबने का खतरा रहेगा।

महासागर सोख रहे हैं गर्मी

पिछले 50 साल में ग्रीनहाउस गैसों के कारण जो अतिरिक्त ऊर्जा वातावरण में मुक्त हुई है, उसमें से 90 फीसद से ज्यादा को महासागरों ने अपने अंदर समेटा हुआ है। यह समुद्र का जलस्तर बढ़ने का कारण बन रहा है। साथ ही सागरों की पारिस्थितिकी भी प्रभावित हो रही है। इसी प्रभाव के कारण कोरल (मूंगा) का रंग फीका हो रहा है। ट्रापिकल साइक्लोन के निर्माण में भी इनकी भूमिका है। महासागरों के तापमान को मापने की शुरुआत 19वीं सदी में ही हो गई थी। हालांकि वैश्विक स्तर पर व्यापक डाटा जुटाने की शुरुआत करीब पांच दशक पहले हुई।

बढ़ाया गया अध्ययन का दायरा

1970 और उसके बाद के वर्षो में महासागरों की सतह के तापमान बढ़ने की बात सामने आई थी। हालांकि आंकड़े कुछ सीमित जगहों से जुटाए गए थे और महासागर की सतह के मात्र 700 मीटर नीचे तक के थे। 21वीं सदी की शुरुआत में इसे व्यापकता देने के लिए पूरी दुनिया से डाटा जुटाने की कवायद शुरू की गई। इसमें सतह के 2000 मीटर नीचे तक डाटा जुटाया गया। सेटेलाइट के माध्यम से डाटा विश्लेषण केंद्रों तक भेजे गए और निष्कर्ष निकाला गया। इस सदी की शुरुआत में वातावरण के तापमान में हल्की गिरावट के बावजूद महासागरों के तापमान में कोई गिरावट नहीं आई, क्योंकि वातावरण में हर साल होने वाले कुछ अस्थायी बदलावों से महासागरों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

सतर्कता से ही निकलेगी राह

कंप्यूटर माडल के जरिये शोधकर्ताओं ने बताया कि अगर ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन नियंत्रित किया गया और वैश्विक तापमान में वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस के दायरे में रोका जा सका, तो महासागरों के तापमान में होने वाली वृद्धि आधी रह सकती है। इससे सागरों का स्तर आठ से 14 सेंटीमीटर तक बढ़ेगा। अगर पेरिस समझौते को देखते हुए वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री तक रोका जा सका, तो सागरों के स्तर में वृद्धि और कम रह सकती है। अध्ययन में यह भी जोर दिया गया है कि जितनी जल्दी वैश्विक तापमान में वृद्धि को थामा जाएगा, उतना ज्यादा लाभ होगा।


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