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मुंह खोलकर सोना महज आदत नहीं बल्कि है बड़े खतरे का संकेत, यहां पढ़ें पूरी खबर

एक अध्ययन में आगाह किया गया है कि ओएसए विकार से पीड़ित महिलाओं में कैंसर का खतरा ज्यादा रहता है। खर्राटे नींद की गड़बड़ी और थकान इस विकार के सामान्य लक्षण हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 22 May 2019 02:19 PM (IST)Updated: Thu, 23 May 2019 12:33 PM (IST)
मुंह खोलकर सोना महज आदत नहीं बल्कि है बड़े खतरे का संकेत, यहां पढ़ें पूरी खबर
मुंह खोलकर सोना महज आदत नहीं बल्कि है बड़े खतरे का संकेत, यहां पढ़ें पूरी खबर

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एप्निया (ओएसए) नामक रोग में सोते समय अक्सर सांस लेने की प्रक्रिया कुछ पलों के लिए रुक जाती है और इसके बाद यह फिर शुरू हो जाती है। लोगों को यह जानकारी नहीं है कि यह एक बीमारी है। नींद के दौरान प्रर्याप्त ऑक्सीजन शरीर में नहीं जाता। एक अध्ययन में आगाह किया गया है कि ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एप्निया (ओएसए) विकार से पीड़ित महिलाओं में कैंसर का खतरा ज्यादा रहता है। खर्राटे, नींद की गड़बड़ी और थकान इस विकार के सामान्य लक्षण हैं।

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ग्रीस की थेसालोनिकी यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता अथानेसिया पटका ने कहा, ‘19 हजार से ज्यादा लोगों पर किए गए अध्ययन से जाहिर होता है कि ओएसए का कैंसर से जुड़ाव हो सकता है। पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं से इसका गहरा जुड़ाव पाया गया है। अध्ययन से जाहिर होता है कि महिलाओं में ओएसए की गंभीरता कैंसर का संकेत हो सकता है।’ शोधकर्ताओं ने यह निष्कर्ष अध्ययन में शामिल किए गए 19 हजार से ज्यादा महिलाओं और पुरुषों के डाटा के विश्लेषण के आधार पर निकाला है।

अभिभावक रहें सजग
अगर आपका बच्चा सोते वक्त मुंह खोलकर सोता है, नाक की बजाय मुंह से सांस लेता है तो सचेत हो जाइये। मुंह खोलकर सोने से ऑक्सीजन का संचार सही तरीके से ब्रेन तक नहीं होता, जिससे बच्चे का मानसिक विकास अवरूद्ध होने लगता है। बच्चा स्कूल में पिछडऩे लगता है। उसके मुंह खोलकर सोने के पीछे का कारण ट्रॉसिल भी हो सकता है। इसमें दर्द न होने से अभिभावक को इसकी जानकारी नहीं मिल पाती। जिससे इलाज शुरू होने में काफी देर हो जाता है।

बीमारी के लक्षण
इन्सोम्निया में नींद नहीं आती और रात करवटें बदलते गुजर जाती है, जबकि स्लीप एप्निया में नींद आती तो है, मगर रात में झटके से कई-कई बार खुलती है। अब्स्ट्रक्टिव स्लीप एप्निया में मरीजसांस लेने में परेशानी का अनुभव करता है, जिससे रात में उसकी नींद खुलती रहती है। सुबह जागने पर ताजगी महसूस नहीं होती और दिन भर थकान महसूस होती है।

  • सोते समय बीच-बीच में सांस रुकना
  • इतनी जोर से खर्राटे लेना कि अन्य लोगों की नींद में खलल पड़े
  • सोते हुए बीच-बीच में अचानक सांस नहीं आना, जिससे अक्सर पीड़ित व्यक्ति नींद से उठ जाता है
  • दिन भर सुस्ती छाई रहना, जिससे व्यक्ति काम के दौरान, टेलीविजन देखते हुए या वाहन चलाते हुए सो सकता है

किन लोगों को है जोखिम

  • मोटापे से ग्रस्त लोगों को ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एप्निया होनी की आशंकाएं ज्यादा होती हैं
  • ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एप्निया होने की संभावना उन लोगों में दोगुनी हो जाती है, जिन्हें रात में अक्सर नाक बंद होने की समस्या रहती है
  • गर्दन के मोटा होने से सांस मार्ग छोटा हो सकता है और यह स्थिति मोटापे का संकेत हो सकती है। पुरुषों के लिए गर्दन की माप 17 इंच और महिलाओं के लिए 16 इंच से अधिक नहीं होनी चाहिए। इससे अधिक होने पर ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एप्निया का जोखिम बढ़ जाता है

जटिलताएं
इलाज न होने पर ओएसए से कई स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं..

कार्डियो-वैस्क्युलर समस्याएं
ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एप्निया के दौरान रक्त के ऑक्सीजन स्तर में अचानक कमी आना, ब्लड प्रेशर बढ़ना और कार्डियो-वैस्क्युलर सिस्टम पर दबाव बढ़ना सरीखी समस्याएं पैदा हो जाती हैं। इस रोग से ग्रस्त कई लोगों में उच्च रक्तचाप की समस्या होती है, जिससे हृदय संबंधी रोग होने की आशंका बढ़ जाती है। ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एप्निया जितना गंभीर होगा, कोरोनरी आर्टरी डिजीज, दिल का दौरा पड़ना, हृदय की धड़कन रुक जाना और स्ट्रोक होने का जोखिम उतना ही बढ़ जाता है।

दूसरों की नींद पूरी नहीं होना: तेज खर्राटों के कारण आपके आसपास के लोगों को भी सही तरीके से आराम नहीं मिल पाता। इसका असर आपके संबंधों पर भी पड़ने लगता है।

जांच: स्लीप स्टडी या पॉलीसोम्नोग्राफी की जाती है। इसके अंतर्गत पल्स ऑक्सीमेट्री (ऑक्सीजन), मस्तिष्क की तरंगें (ईईजी), दिल की धड़कन (ईकेजी), सीने और आंखों की स्थिति का अध्ययन किया जाता है।

आधुनिक जांच प्रक्रिया: आधुनिक तकनीक की मदद से आप इस रोग से संबंधित परीक्षणों को अपने घर में करा सकते हैं ताकि आपको अस्पताल में रात बिताने की जरूरत न पड़े। घड़ी की तरह दिखने वाली इस डिवाइस को आपकी उंगलियों के पौरों और बाजुओं पर लगा दिया जाता है, जिससे आपकी सोने की स्थितियों और आंखों की हरकतों पर नजर रखी जा सके।

इलाज के तरीके
इसके लिए स्लीप स्टडी या पॉलीसोम्नोग्राफी टेस्ट किया जाता है, जिसके अंतर्गत पल्स ऑक्सीमेट्री (ऑक्सीजन), मस्तिष्क की तरंगें (ईईजी), दिल की धड़कन (ईकेजी), सीने और आंखों की पूरी जांच की जाती है। कई स्तरों पर मरीजकी जांच कर उसके स्लीपिंग पैटर्न को समझने की कोशिश की जाती है। यदि सही समय पर समस्या को पहचान लिया जाए तो इलाज से काफी हद तक काबू पाया जा सकता है।

  • निरंतर हवा का सकारात्मक दबाव बने रहना (सीपीएपी): यह एक छोटा पोर्टेबल मैकेनिकल डिवाइस है। इस डिवाइस में एक पंखा लगा होता है, जो नींद के दौरान लगातार हवा देकर आपके सांस मार्ग को खुला रखता है
  • कुछ ऐसे प्लास्टिक डिवाइस होते हैं, जिन्हें मुंह में पहना जाता है। दिखने में ये ऑर्थोडॉन्टिक रिटेनर्स या स्पोर्ट माउथ गा‌र्ड्स की ही तरह होते हैं। ये ओरल डिवाइस सांस मार्ग को चिपकने से रोकते हैं
  • सर्जिकल इलाज के अंतर्गत नाक, तालू, जीभ, जबड़ा, गर्दन और कई अन्य जगहों की समस्याओं को दूर किया जाता है। सबसे लोकप्रिय सर्जरी लेजर प्रक्रिया है, जो खर्राटे भरने और सोते वक्त सांस की समस्या को दूर करने में सक्षम हैं

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