महाराष्ट्र में कांग्रेस की मजबूती बढ़ाएगी भाजपा का दम
महाराष्ट्र में पहली बार हो रहे चतुष्कोणीय मुकाबले में यूं तो नंबर वन आने का मुकाबला है, लेकिन चर्चा नंबर दो की भी हो रही है। खासकर भाजपा कार्यकर्ताओं का अपना सर्वे उनका हौसला बढ़ा रहा है जिसमें भाजपा के बाद नंबर दो के रूप में कांग्रेस का आकलन किया जा रहा है। पार्टी इसे राज्य में सत्ता के साथ साथ विस्त
महाराष्ट्र से लौटकर [आशुतोष झा]। महाराष्ट्र में पहली बार हो रहे चतुष्कोणीय मुकाबले में यूं तो नंबर वन आने का मुकाबला है, लेकिन चर्चा नंबर दो की भी हो रही है। खासकर भाजपा कार्यकर्ताओं का अपना सर्वे उनका हौसला बढ़ा रहा है जिसमें भाजपा के बाद नंबर दो के रूप में कांग्रेस का आकलन किया जा रहा है। पार्टी इसे राज्य में सत्ता के साथ साथ विस्तार के रूप में देख रही है जो जाहिर तौर से शिवसेना के लिए खतरनाक हो सकता है।
महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार अपने चरम पर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत भाजपा के दूसरे केंद्रीय नेताओं की रोजाना औसतन दस रैलियां महाराष्ट्र में हो रही है। रैलियों में जुटने वाली भीड़ को आकलन का एक आधार माना जाए तो यह भी लगभग दिखने लगा है कि 288 सीटों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बन सकती है। लेकिन भाजपा कार्यकर्ताओं की खुशी का एक कारण और है। सूत्रों के अनुसार पार्टी के सर्वे में कांग्रेस भाजपा की संख्या से काफी कम है लेकिन उसके नंबर दो रहने की संभावना है। चंद्रपुर के भद्रावती विधानसभा क्षेत्र के एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा- 'मैं जितने ज्यादा दौरे कर रहा हूं उतना विश्वास बढ़ता जा रहा है कि शिवसेना कांग्रेस से पीछे रहेगी। कांग्रेस का आधार अभी पूरी तरह ध्वस्त नहीं हुआ है।' एक दूसरे नेता हालांकि कांग्रेस की इस मजबूती का आधार पैसे को मानते हैं लेकिन वह भी सहमत हैं कि कांग्रेस दूसरे नंबर पर हो सकती है। पंद्रह साल तक सत्ता में रहने और भ्रष्टाचार के कई आरोपों के बावजूद इस चतुष्कोणीय मुकाबले में कांग्रेस का नंबर दो रहना दो लिहाज से भाजपा को रास आता है। दरअसल यह नतीजा हमेशा के लिए तय कर देगा कि भाजपा का विकासवाद शिवसेना के मराठावाद पर भारी है। यहीं से भाजपा का विस्तार शुरू होगा और शिवसेना को भाजपा की शर्तो पर राजग के साथ आना पड़ सकता है जो अब तक राज्य में खुद को बड़ी पार्टी और भाजपा को छोटी पार्टी का ओहदा देती रही थी। गौरतलब है कि पिछले दिनों में मोदी व राजनाथ सिंह सरीखे वरिष्ठ भाजपा नेता शिवसेना के पूर्व प्रमुख बाला साहेब ठाकरे का सम्मान के साथ नाम लेने से कहीं नहीं चूके। वहीं शिवसेना की ओर से भी अब तक स्पष्ट तौर पर भाजपा से रिश्ता न बनाने की बात नहीं कही गई है। ऐसे में शिवसेना पर दबाव भी होगा कि जरूरत पड़ने पर वह भाजपा सरकार के साथ आए। लेकिन एक छोटी पार्टी के रूप में। वरना इस आशंका को भी खारिज करना मुश्किल होगा कि शिवसेना में टूट के आसार बनने लगें। यह तभी संभव होगा जब सत्ताविरोधी लहर के बावजूद कांग्रेस शिवसेना से ऊपर रहे।