सीएए एक कानून है जबकि एनआरसी एक प्रस्तावित प्रक्रिया, एेसे समझें- कहां है भ्रम की स्थिति
सीएए एक कानून है तो एनआरसी प्रस्तावित प्रक्रिया। जिसे पूरे देश में लागू किये जाने संबंधी नियम-कानून अभी बनाए जाने हैं। इन दोनों को लेकर एक बड़े तबके के बीच भ्रम की स्थिति है।
नई दिल्ली, जागरण स्पेशल। पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक उत्पीड़न के शिकार हिंदू सहित छह अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता की राह प्रशस्त करने के लिए नागरिकता संशोधन कानून लाया गया है। जबकि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर भारतीय नागरिकों का संवैधानिक रिकॉर्ड है। यह दोनों प्रावधान एक दूसरे से एकदम अलहदा हैं। सीएए एक कानून है तो एनआरसी प्रस्तावित प्रक्रिया। जिसे पूरे देश में लागू किये जाने संबंधी नियम-कानून अभी बनाए जाने हैं। अभी यह सिर्फ असम में लागू है। इन दोनों को लेकर एक बड़े तबके के बीच भ्रम की स्थिति है। पेश है एक नजर:
राष्ट्रीय एनआरसी का प्रस्ताव
असम में एनआरसी के बाद इसके राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने की मांग उठ रही है। भाजपा के कई शीर्ष नेताओं जिनमें गृह मंत्री अमित शाह भी शामिल हैं ने एनआरसी को देश के अन्य हिस्सों में कराने का प्रस्ताव किया है। यह एक ऐसा कानून लाने का सुझाव देता है जिससे देश में अवैध रूप से रह रहे घुसपैठियों की पहचान कर जहां से वे आए हैं, वहां उन्हें वापस भेजा जा सके।
असम में एनआरसी
यह जातीय विशिष्टता को बचाए रखने के लिए राज्य आधारित कार्य है। 2013 में असम लोक निर्माण और असम सनमिलिता महासंघ व अन्य ने सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दाखिल कर असम की मतदाता सूचियों से अवैध नागरिकों के नाम हटाने की मांग की। 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने असम के सभी इलाकों में एनआरसी को नागरिकता कानून 1955 और नागरिकता नियम 2003 के तहत अपडेट करने का आदेश दिया था। यह प्रक्रिया औपचारिक रूप से 2015 में शुरू हुई और एनआरसी की मुख्य सूची 31 अगस्त को जारी हुई। करीब 19 लाख लोग इस सूची में बाहर हो गए। इस सूची से बाहर रहे कर्ई हिंदुओं के विरोध प्रदर्शन के बाद गृह मंत्री ने घोषणा की कि असम में फिर से एनआरसी होगी।
असम से भिन्न राष्ट्रीय एनआरसी
सरकार ने अभी तक एनआरसी को देश भर में लागू करने को लेकर कोई आधिकारिक कदम नहीं उठाया है। इसे लेकर प्रक्रिया अभी तक साफ नहीं है। असम में जब एनआरसी हुई थी तो नागरिकों को उनकी नागरिकता का प्रमाण राज्य भर के एनआरसी सेवा केंद्रों पर देने के लिए कहा गया था। यह अभी तक साफ नहीं है कि देशभर में यह किस तरह से अपनाया जाएगा। इसके अतिरिक्त असम एनआरसी को नागरिकता अधिनियम 2003 में राज्य के लिए एक विशेष अपवाद के माध्यम से अनिवार्य किया गया था। पूरे मामले को सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में अंजाम दिया गया। फिलहाल देशव्यापी एनआरसी के लिए कोई निर्देश नहीं है। यदि देशव्यापी एनआरसी की भी जाती है तो यह केंद्र सरकार के निर्देशन में होगी।
एनआरसी से अलग सीएए
देशव्यापी प्रस्तावित एनआरसी फिलहाल एक प्रस्ताव के रूप में है। यदि यह लागू किया जाता है तो इसके निशाने पर अवैध घुसपैठिए होंगे। हालांकि इससे पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आर्ए हिंदू, जैन, बौद्ध, पारसी, सिख और ईसाई प्रभावित नहीं होंगे, यदि वे दावा करते हैं कि वे भारत में धार्मिक उत्पीड़न के कारण पहुंचे हैं। बहुत से लोगों को यह भी डर सता रहा है कि यदि मुस्लिम नागरिकता के उचित दस्तावेज पेश नहीं कर सके तो उन्हें अवैध अप्रवासी माना जा सकता है। हालांकि सरकार ने उनकी इस आशंका को दूर करते हुए बताया है कि आसान प्रपत्रों को पेश करके वे अपनी उम्मीदवारी साबित कर सकेंगे।
भारतीय नागरिकों का दस्तावेज है एनआरसी
एनआरसी उन लोगों का एक आधिकारिक रिकॉर्ड है जो वैधानिक रूप से भारतीय नागरिक हैं। इसमें उन सभी लोगों की जनसांख्यिकी सूचना शामिल होती है जो नागरिकता कानून, 1955 के अनुसार भारतीय नागरिक हैं। यह रजिस्टर पहली बार 1951 की जनगणना के बाद बना और उसके बाद अब तक इसे अपडेट नहीं किया गया है। अब तक इस डेटाबेस को सिर्फ असम में बनाया गया है।
ये हैं भारतीय नागरिक
नागरिकता कानून, 1955 के अनुसार भारत में जन्म लेने वाला हर व्यक्ति:
1. 26 जनवरी 1950 को या उसके बाद लेकिन एक जुलाई 1987 से पहले
2. एक जुलाई 1987 के पहले दिन पर या उसके बाद, लेकिन नागरिकता
(संशोधन) अधिनियम, 2003 के शुरू होने से पहले और जिनके माता-पिता भारत के नागरिक हैं
उनके जन्म के समय
3. नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2003 के प्रारंभ होने के बाद या, जहां-
(अ) उसके माता-पिता दोनों भारत के नागरिक हैं, या
(ब) जिनके माता-पिता भारत के नागरिक हैं और दूसरे उनके जन्म के समय अवैध प्रवासी नहीं हैं, वे जन्म से
भारत के नागरिक होंगे।