अब भूख से लड़ाई नहीं, मन भर पढ़ाई, इस एप से भी रखी जा रही निगरानी
डिंपी देवी बताती हैं कि हमारा काम तो अब यह हो गया है कि शिक्षकों की उपस्थिति पर नजर रखें। तो इससे पढ़ाई अच्छी हुई है। हम अब निजी स्कूलों को टक्कर दे रहे।
पटना [अरविंद शर्मा]। बिहार में मिड डे मील शुरू होने के बाद जब स्कूलों में बच्चों की भीड़ बढ़ी, तो विपक्ष के कई नेता मजाक उड़ाते थे कि किताबों की जगह बच्चे थाली लेकर स्कूल जाते हैं। स्लेट की जगह कटोरा थमा दिया गया है। मास्टर साहब पढ़ाई पर कम, कड़ाही पर ज्यादा ध्यान देते हैं। अब विद्यालयों की वर्तमान स्थिति का जायजा लें, तो वहां की पढ़ाई और मिड डे मील की व्यवस्था ऐसा आरोप लगाने वाले नेताओं का मजाक उड़ाती दिखती है। स्कूलों में खाना बनाने के लिए ‘कुक’ नियुक्त की गई हैं।
शिक्षा समिति भोजन की गुणवत्ता और पढ़ाई दोनों की निगरानी करती हैं। मास्टर साहब की संख्या बढ़ी है। लिहाजा, एक शिक्षक अगर मिड डे मील की गुणवत्ता और प्रबंधन पर ध्यान देने का कर्तव्य निभाते दिखते हैं, तो कई शिक्षक कक्षाओं में बच्चों को ककहरा और पहाड़ा रटाते रहते हैं।
तो अंतिम घंटी तक रहते हैं बच्चे गया के खिजरसराय के सहबाजपुर गांव के विद्यालय में कुछ वर्ष पहले तक बहुत कम बच्चे आते थे, किंतु मध्याह्न भोजन के कारण साल दर साल बच्चों की संख्या बढ़ने लगी है। प्राचार्य राकेश रंजन श्रीवास्तव कहते हैं कि मिड-डे मील पर सवाल वैसी गलियों से उठाए जाते हैं, जहां भूख से दो-चार नहीं होना पड़ता। खास बात यह है कि अब बच्चे दोपहर के भोजन के बाद अचानक स्कूल से गायब नहीं हो जाते, बल्कि अंतिम घंटी तक रहते हैं। अब प्रखंड शिक्षा अधिकारी स्कूलों का औचक निरीक्षण करते हैं।
बिहार इजी स्कूल ट्रैकिंग (बेस्ट) एप से भी निगरानी रखी जा रही। विद्यालय शिक्षा समिति की अध्यक्ष डिंपी देवी बताती हैं कि हमारा काम तो अब यह हो गया है कि शिक्षकों की उपस्थिति पर नजर रखें। तो इससे पढ़ाई अच्छी हुई है। हम अब निजी स्कूलों को टक्कर दे रहे।