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झारखंड के इस गांव में अब रक्तदान से नहीं डरते ग्रामीण

बदलाव: नक्सल प्रभावित इलाके में एक क्लर्क ने बदली सोच, मामला झारखंड का, साइकिल यात्रा कर फैला रहे जागरूकता...

By Srishti VermaEdited By: Published: Fri, 03 Nov 2017 10:02 AM (IST)Updated: Fri, 03 Nov 2017 10:02 AM (IST)
झारखंड के इस गांव में अब रक्तदान से नहीं डरते ग्रामीण
झारखंड के इस गांव में अब रक्तदान से नहीं डरते ग्रामीण

जमशेदपुर (अमित तिवारी)। झारखंड के कोल्हान इलाके में रक्तदान को लेकर व्याप्त भ्रांतियां अब टूट चुकी हैं। यहां के नक्सल प्रभावित 40 गांवों में अब ग्रामीणजन स्वेच्छा से रक्तदान करते हैं। उन्हें इसकी अहमियत का अहसास हो चला है। पहले वे इससे डरते थे। परिजनों को भी यदि रक्त की जरूरत पड़ जाए तो वे कतराते थे। उनके मन में रक्तदान को लेकर अनेक भ्रांतियां थीं, जबकि यहां आए दिन हत्या, मारपीट व अपहरण की घटनाओं के कारण घायलों को रक्त की जरूरत पड़ती रहती थी। यह पूरा क्षेत्र खून खराबे के लिए काफी बदनाम रहा है। समय पर खून न मिलने के कारण कई लोगों की जान भी गई। लेकिन अब इन 40 गांवों में हर शख्स रक्तदान के लिए तैयार रहता है। ग्रामीणों की भ्रांति को तोड़ने में सुनील कुमार डे ने बड़ी भूमिका निभाई।

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पेशे से क्लर्क हैं : सुनील पेशे से बीएसएनएल (भारत संचार निगम लिमिटेड) में क्लर्क हैं। गांवों में साइकिल यात्रा
कर उन्होंने लोगों को रक्तदान के लिए जागरूक किया। जागरूक हो चुके लोगों को साथ लेकर दूसरे गांवों में रैलियां निकालने लगे। उनका यह प्रयास अब क्षेत्र के 40 गांवों में रंग ला रहा है। सुनील को लोग किसी मसीहा से कम नहीं मानते। खून के अभाव में होने वाली मौतों का आंकड़ा देखते हुए उन्होंने 1997 में सुदूर गांवों में रक्तदान कराने का बीड़ा उठाया। शुरुआत अपने गांव नुआग्राम में साइकिल रैली निकाल कर की। फिर तो सिलसिला चल
पड़ा। हर रविवार व छुट्टी के दिनों में कोल्हान के गांवों में साइकिल रैली निकाल कर घूमने लगे। 40 गांवों में गए। रक्तदान के महत्व को समझाया। इस दौरान विरोध का सामना भी करना पड़ा।

ऐसे तोड़ा भ्रम : ग्रामीणजन रक्तदान के खिलाफ थे। उनके मन में भ्रांतियां थीं। लगता था कि खून देने से कमजोरी आती है, मौत तक हो सकती है। सुनील को गांवों में घुसने तक नहीं दिया जाता था। साइकिल रैली रोक दी जाती थी, लेकिन सुनील ने हार नहीं मानी। उन्होंने परिवार संग गांवों में पहुंच कर लोगों के सामने रक्तदान करना शुरू कर दिया। इससे लोगों का भ्रम टूटने लगा। पहले गांव में खोजने पर भी कोई व्यक्ति ऐसा नहीं मिलता था, जिसने कभी रक्तदान किया हो। लेकिन अब सभी रक्तदान करते हैं। सुनील बताते हैं कि रक्तदान शिविर में एकत्रित हुए खून को शहर के ब्लड डोनर्स एसोसिएशन को दे दिया जाता है। वहां से यह रेडक्रॉस के ब्लड बैंक समेत अन्य अस्पतालों को उपलब्ध कराया जाता है। यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। सुनील को इस काम के लिए अनेक सम्मान प्रदान किए जा चुके हैं। जमशेदपुर स्थित ब्लड डोनर्स एसोसिएशन के सचिव एसके सिंह कहते हैं कि सुनील ग्रामीण क्षेत्रों में रक्तदान मुहिम के जनक हैं। उनके प्रयास से ग्रामीणों की सोच बदल चुकी है। इसके लिए वह 20 वर्षों से जी-जान से जुटे हैं। वह अब भी गांवों में जाते हैं और रक्तदान के प्रति लोगों को जागरूक करते हैं।

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