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नाऊ गंगा इज जस्ट रिवर

इसे विडंबना नहीं तो और क्या कहेंगे। जो जीवनदायिनी युगों से हमारे लिए अमृततुल्य थी वह आज उपेक्षित है। काशी आने वाले विदेशी टूरिस्ट भी अब इसे महज एक नदी मानते हैं। आए दिन काशी के घाट किनारे विदेशी पर्यटक अक्सर कहते मिल जाते हैं कि 'नाऊ गंगा इज जस्ट रिवर'। यह एक लाइन हमारी गंगा को ि

By Edited By: Published: Sun, 06 Jul 2014 10:46 PM (IST)Updated: Mon, 07 Jul 2014 09:26 AM (IST)
नाऊ गंगा इज जस्ट रिवर

वाराणसी, [राकेश पाण्डेय]। इसे विडंबना नहीं तो और क्या कहेंगे। जो जीवनदायिनी युगों से हमारे लिए अमृततुल्य थी वह आज उपेक्षित है। काशी आने वाले विदेशी टूरिस्ट भी अब इसे महज एक नदी मानते हैं। आए दिन काशी के घाट किनारे विदेशी पर्यटक अक्सर कहते मिल जाते हैं कि 'नाऊ गंगा इज जस्ट रिवर'। यह एक लाइन हमारी गंगा को कितना अपमानित करती है। इसका अंदाजा एक गंगा प्रेमी ही लगा सकता है।

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कोई भी विदेशी टूरिस्ट यदि भारत रुख करता है तो उसकी पर्यटन लिस्ट में गंगा पहले नंबर पर होती है। लिहाजा वह गूगल यह फिर अन्य माध्यम से गंगा के बारे में जानकारी जुटाता है। जिसमें उसे गंगा को देवी का दर्जा देखने को मिलता है। जिसे भारतीय जनमानस मां के रूप में मानता है। लेकिन इन्ही जानकारियों के साथ जब टूरिस्ट गंगा किनारे पहुंचता है तो वह उसकी दुर्दशा देखकर हक्का-बक्का रह जाता है। खासकर काशी के घाटों पर तो वह गंदगी देखकर उसे बस यही लाइन याद आती है।

इसके साथ ही वह हर क्रिया गंगा किनारे होते देखता है जो वर्जित है। मसलन लोग साबुन लगाकर गंगा में नहाते हैं, कपड़े धुलते हैं, मल-मूत्र का त्याग करते हैं। एक-दो नहीं दर्जनों नाले गंगा में प्रवाहित होते मिलते हैं। जिससे उसकी सोंच बदल जाती है।

दिल्ली में आज बनेगी रणनीति

सात जुलाई को दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में सुबह दस बजे से ही गंगा मंथन होना है। इसमें देश भर से वैज्ञानिकों, पर्यावरणविद्, निर्मल व अविरल गंगा के लिए कार्य कर रही सरकारी व स्वयं सेवी संस्थाओं, धर्माचार्यो सहित ब्यूरोक्रेट की बैठक होनी है। इस बैठक का नेतृत्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती करेंगी जिन्हें गंगा के उद्धार का जिम्मा सौंपा गया है। इस बैठक में शामिल होने दिल्ली पहुंचे राष्ट्रीय नदी गंगा बेसिन प्राधिकरण के वैज्ञानिक सदस्य प्रो. बीडी त्रिपाठी कहते हैं कि अब समय आ गया है कि गंगा को बचाने के लिए विराट प्रयास हो।

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