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अब फसलों में रोगों की आसानी से होगी पहचान, वैज्ञानिकों ने बनाया डिवाइस फोल्डस्कोप

भारतीय शोधकर्ताओं ने फोल्डस्कोप नामक एक बेहद सस्ते माइक्रोस्कोप बनाया है। शोधकर्ताओं का दावा है कि फोल्डस्कोप के जरिये फसलों में रोगों की पहचान आसानी से की जा सकती है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Fri, 01 Nov 2019 09:09 AM (IST)Updated: Fri, 01 Nov 2019 09:09 AM (IST)
अब फसलों में रोगों की आसानी से होगी पहचान, वैज्ञानिकों ने बनाया डिवाइस फोल्डस्कोप
अब फसलों में रोगों की आसानी से होगी पहचान, वैज्ञानिकों ने बनाया डिवाइस फोल्डस्कोप

नई दिल्ली, आइएसडब्ल्यू। चाय भारत की एक प्रमुख फसल है, लेकिन इसकी पत्तियों पर लगने वाली फफूंद के कारण इसके उत्पादकों को भारी नुकसान झेलना पड़ता है क्योंकि इसके रोगजनकों (जीवाणुओं) की पहचान नहीं हो पाती। इसके लिए भारतीय शोधकर्ताओं ने एक नए अध्ययन में फोल्डस्कोप नामक एक बेहद सस्ते माइक्रोस्कोप को कारगर पाया गया है। शोधकर्ताओं का दावा है कि फोल्डस्कोप के जरिये फसलों में रोगों की पहचान आसानी से की जा सकती है।

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रोगाणुओं की पहचान में मददगार

इस अध्ययन में क्लेडोस्पोरियम क्लेडोस्पोरोइड्स, जाइलेरिया हाइपोक्सिलीन, कलेक्टोरिकम कॉफिएनम, अल्टरनेरिआ अल्टेनाटा समेत कई फफूंद प्रजातियों की पहचान की गई है। इन फफूंद नमूनों को चाय में लीफ स्पॉट और लीफ ब्लाइट रोगों के लिए जिम्मेदार पाया गया है। नर बहादुर भंडारी डिग्री कॉलेज, सिक्किम यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने फोल्डस्कोप का उपयोग चाय की पत्तियों में कवक रोगजनकों के सर्वेक्षण और उनकी पहचान करने में किया है।

दूरदराज गांवों में पहुंचाई जा सकती है डिवाइस

शोधकर्ताओं को कहना है कि सस्ती और पोर्टेबल तकनीकें दूरदराज के इलाकों में आसानी से पहुंचाई जा सकती हैं, जिसका लाभ स्थानीय लोगों को मिल सकता। फोल्डस्कोप ऐसी ही एक सामान्य-सी तकनीक है, जो फसलों में रोगों पहचान करने में उपयोगी हो सकता है। वैज्ञानिकों की मानें तो फफूंद के कारण चाय की फसल खराब हो जाती है। इस यंत्र की मदद से फफूंद की पहचान करके उससे निजात पाकर चाय की गुणवत्ता और आमदनी बढ़ाई जा सकती है।

मोबाइल फोन से भी जुड़ सकता है

फोल्डस्कोप एक पोर्टेबल फील्ड माइक्रोस्कोप है। शोध कार्यों में उपयोग होने वाले पारंपरिक अनुसंधान सूक्ष्मदर्शी की तरह इसे ऑप्टिकल गुणवत्ता देने के लिए विशेष रूप से डिजाइन किया गया है। इसे कागज की पट्टी पर लेंस लगाकर बनाया जा सकता है और कैमरा फोन से जोड़कर बेहतर रिजॉल्यूशन प्राप्त की जा सकती है।

कृत्रिम नियंत्रण के लिए हो रहा अध्ययन

शोधकर्ता लांजे पी. वांगडी ने कहा कि सिक्किम के चाय बागानों में एकीकृत कीट प्रबंधन (आइपीएम) और रोगजनकों का जैविक पद्धति से प्रबंधन विशेष रूप से प्रभावी साबित हो सकता है। हम इन रोगों के कृत्रिम रूप से नियंत्रण के लिए अध्ययन कर रहे हैं। यह अध्ययन शोध पत्रिका करंट साइंस में प्रकाशित किया गया है।

ऐसे करेगा मदद

शोधकर्ताओं में शामिल लांजे पी. वांगडी ने बताया कि अच्छी गुणवत्ता की चाय का उत्पादन बागान मालिकों के लिए एक चुनौती है। उत्पादन की मात्र और गुणवत्ता कई कारकों पर निर्भर करती है। कवक रोगों के कारण होने वाला फसल नुकसान उनमें से एक है। बीमारियों की रोकथाम के लिए रोगों एवं रोगजनकों की पहचान के साथ-साथ रोगजनकों को पृथक करना महत्वपूर्ण होता है। इसमें फोल्डस्कोप को उपयोगी पाया गया है।


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