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भारतीय संविधान को धर्म, जाति, वर्ण, समुदाय, भाषा पर नहीं बांटा जाना चाहिए

कानून लोगों के लिए होता है न कि लोग कानून के लिए।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sat, 15 Dec 2018 05:45 PM (IST)Updated: Sun, 16 Dec 2018 12:08 AM (IST)
भारतीय संविधान को धर्म, जाति, वर्ण, समुदाय, भाषा पर नहीं बांटा जाना चाहिए
भारतीय संविधान को धर्म, जाति, वर्ण, समुदाय, भाषा पर नहीं बांटा जाना चाहिए

माला दीक्षित, नई दिल्ली। 'पाकिस्तान ने स्वयं को इस्लामिक राष्ट्र घोषित किया। भारत का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ था इसे भी हिन्दू राष्ट्र घोषित होना चाहिए था, लेकिन ये धर्मनिरपेक्ष बना रहा' भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित करने की टिप्पणी के कारण चर्चा में आये मेघालय हाईकोर्ट के न्यायाधीश एसआर सेन ने अपने फैसले का स्पष्टीकरण जारी करके कहा है कि धर्मनिरपेक्षता भारतीय संविधान के मूल ढांचे का एक हिस्सा है। इसे आगे धर्म, जाति, वर्ण, समुदाय या भाषा के आधार पर नहीं बाटा जाना चाहिए।

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मेघालय हाईकोर्ट के जज ने अपने फैसले पर जारी किया स्पष्टीकरण

जस्टिस सेन ने अपने 10 दिसंबर के फैसले के बाद हिन्दू राष्ट्र की टिप्पणी को लेकर फैले भ्रम को दूर करने के लिए गत 14 दिसंबर को जारी स्पष्टीकरण में आगे कहा है कि फैसले की व्याख्या ठीक नहीं हुई है। लोगों में उसे लेकर फैले भ्रम की स्थिति स्पष्ट करना जरूरी लगता है। उन्होंने स्पष्टीकरण में कहा है कि उनके 10 दिसंबर के फैसले में कहीं भी धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ एक भी शब्द नहीं कहा गया है।

धर्मनिरपेक्षता संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा

फैसले में इतिहास का हवाला दिया गया है और कोई भी इतिहास नहीं बदल सकता। उन्होंने यह भी कहा कि फैसले में नरेन्द्र मोदी जी की सरकार के बारे में कहने के आशय में बाकी माननीय मंत्री और दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा के सांसद भी शामिल हैं।

इसके अलावा उन्होंने उस फैसले में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का जो जिक्र किया है उसका मतलब यह नहीं है कि उन्होंने बाकी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को उसमें शामिल नहीं माना है। उस फैसले में उन्होंने देश के निति निर्धारकों और कानून निर्माताओं से अनुरोध किया था। जस्टिस सेन ने कहा है कि वे उम्मीद करते हैं कि इससे लोगों का भ्रम दूर हो गया होगा।

स्पष्टीकरण में एक बात और कही गई है कि सभी जानते हैं कि भारत गांवों में बसता है। ज्यादातर लोग औपचारिक शिक्षित नहीं हैं और उनमें कुछ दस्तावेजों को लेकर या तो जानकारी नहीं है। या उन दस्तावेजों को उन्होंने एकत्र नहीं किया, जैसे जन्म प्रमाणपत्र, अस्पताल का रिकार्ड या डोमीसाइल का रिकार्ड। इसीलिए भारत के ज्यादातर लोगों के पास ऐसे रिकार्ड नहीं है।

मालूम हो कि डोमीसाइल प्रमाणपत्र के मामले मे दिए गए फैसले में जस्टिस सेन ने गत 10 दिसंबर को विभाजन के बाद हिन्दुओं और सिखों से साथ हुई हिंसा और अत्याचार का जिक्र करते हुए केन्द्र सरकार से अनुरोध किया था कि वह कानून बनाए जिसमें पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले हिन्दू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी, ईसाई, खासी, जैंता और गारो समुदाय को बिना किसी सवाल और दस्तावेज के भारत की नागरिकता दी जाए।

फैसले में भारत की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि बताते हुए कहा गया था कि यह हिन्दू राज का देश था। बाद में मुगल आए फिर अंग्रेज आए। 1947 में भारत आजाद हुआ। भारत दो राष्ट्र में विभाजित हो गया। पाकिस्तान ने स्वयं को इस्लामिक राष्ट्र घोषित किया और भारत जिसका विभाजन धर्म के आधार पर हुआ था, उसे भी हिन्दू राष्ट्र घोषित होना चाहिए था लेकिन वह धर्मनिरपेक्ष देश रहा।

आज भी पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में हिन्दू, सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई, पारसी, खासी, जैंता और गारो पर अत्याचार होता है उनके पास कोई जगह नहीं है जहां वे चले जाएं। बंगाली हिन्दू इस देश के निवासी हैं। उनके अधिकारों को नकार कर हम उनके साथ अन्याय कर रहे हैं।

फैसले में असम एनआरसी प्रक्रिया को दोषपूर्ण बताते हुए कहा है कि उसमें बहुत से विदेशी भारतीय बन गए हैं और मूल भारतीय छूट गए हैं जो कि दुखद है। कानून लोगों के लिए होता है न कि लोग कानून के लिए। 


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