हिंदी को प्रचार नहीं, प्रसार की जरूरत: अशोक चक्रधर
बड़ा असमंजस है कि हिंदी को प्रचार की जरूरत है या प्रसार की। मेरी राय में प्रचार की नहीं प्रसार की जरूरत है। हिंदी के लिए स्पष्ट विदेश नीति बनाकर यह समस्य सुलझ सकती है। दुनिया के काफी देश हिंदी बोलते, समझते और लिखते हैं। विदेशों में हिंदी को समझने
भोपाल। बड़ा असमंजस है कि हिंदी को प्रचार की जरूरत है या प्रसार की। मेरी राय में प्रचार की नहीं प्रसार की जरूरत है। हिंदी के लिए स्पष्ट विदेश नीति बनाकर यह समस्य सुलझ सकती है। दुनिया के काफी देश हिंदी बोलते, समझते और लिखते हैं। विदेशों में हिंदी को समझने के लिए सालों से शोध भी चल रहा है। इस सम्मेलन ने हिंदीसेवियों के मन में कई उम्मीदें जगाई हैं। इनकी पूरी होने की संभावनाएं भी प्रबल हैं। हिंदी के लिए स्पष्ट नीति बनने से कानून भी इसे हर स्तर पर अपना सकता है।
साहित्यकारों को न्योता न मिलने पर
साहित्यकार जब थोड़ा-बहुत प्रसिद्ध हो जाता है तो उसकी नरमी कम हो जाती है। यह बात उन साहित्यकारों पर लागू होती है, जो यह कहते हैं कि उन्हें सम्मेलन में बुलाया नहीं गया। अरे भई, द्वार खुले हैं, जब मन हो आएं।
हिंदी कैसे बने कानून की भाषा
कानून की अपनी बारीकियां, पेचीदगियां और नियमावली है। इन्हें एकदम से समझना और बदल पाना आसान नहीं है। हिंदी को कानून की भाषा बनाने के लिए विदेश नीति में हिंदी का सुदृढ़ स्थान सुनिश्चित करना होगा। यह सबसे अच्छा तरीका है ?योंकि बात मनवाने पर जोर देने से अच्छा है, बात मानने के लिए प्रेरित करना।
घर-घर से हो आरंभ
हिंदी को बच्चे-बच्चे की जुबान के लिए लजीज बनाना है तो घर-घर से शुरआत होनी चाहिए। अभिभावक बच्चों को कम उम्र से ही हिंदी की संस्कृति से वाकिफ कराना चाहिए। यह उतना ही जरूरी है जितना कि उनके अच्छे भविष्य के लिए पाठ्यक्रम चुनने के लिए परेशान होना।
चिकित्सा और तकनीक की पढ़ाई हिंदी में
कुछ लोग हिंदी को चिकित्सा, तकनीक, संचार आदि की पढ़ाई में बाधा मानते हैं। यह गलत है। मैं पूछता हूं, हिंदी में इन पाठ्यक्रमों की पढ़ाई ?यों नहीं हो सकती? देश में कई बड़े तकनीकी कामों के दस्तावेज हिंदी में ही बने हैं। विकासशील देश 'हिंदी की तकनीक" का उपयोग 'अपनी तकनीक" सुदृढ़ बना रहे हैं।