कोरोना में हर कैदी को जमानत पर छोड़ने को नहीं कहा था : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कैदियों को अंतरिम जमानत या पैरोल पर छोड़ने का निर्देश एक विकल्प के तौर पर दिया गया था। इसका यह मतलब नहीं था कि हर कैदी को जमानत पाने का वैधानिक अधिकार मिल गया।
नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि उसने कोरोना काल में जेल में बंद कैदियों को संक्रमण से बचाने के लिए उन्हें अंतरिम जमानत या पैरोल पर छोड़ने का निर्देश दिया था, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हर विचाराधीन कैदी या सजायाफ्ता को उसके अपराध की प्रकृति या गंभीरता पर विचार किए बिना ही छोड़ दिया जाए।
दरअसल, कोरोना वायरस को महामारी घोषित किए जाने के बाद शीर्ष अदालत ने जेलों में कैदियों के बीच समुचित शारीरिक दूरी बनाए रखने की जरूरत पर गौर किया था और 23 मार्च को सभी राज्यों को उच्चाधिकार समितियां (एचपीसी) गठित करने का निर्देश दिया था। इन समितियों को कैदियों के अपराध की गंभीरता, उनकी सजा की अवधि और कुछ अन्य तथ्यों पर विचार करने के बाद यह तय करना था कि किस कैदी को छोड़ा जाए और किसे नहीं।
प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी. रामसुब्रमण्यम की पीठ ने बांबे हाई कोर्ट के पैसले के खिलाफ दायर नेशनल अलायंस फॉर पीपुल्स मूवमेंट (एनएपीएम) नामक एनजीओ की याचिका खारिज कर दी। पीठ ने कहा कि कैदियों को अंतरिम जमानत या पैरोल पर छोड़ने का निर्देश एक विकल्प के तौर पर दिया गया था। इसका यह मतलब नहीं था कि हर कैदी को जमानत पाने का वैधानिक अधिकार मिल गया। एचपीसी को यह पूरा अधिकार था कि जेल में कैदियों की संख्या, महामारी की स्थिति को देखते हुए वह रिहाई की शर्तों में बदलाव करे।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद महाराष्ट्र सरकार ने एचपीसी का गठन किया था। इसने कहा था कि जिस अपराध में सात साल से कम सजा का प्रावधान है, उसके कैदियों को रिहा जाएगा। मकोका, पीएमएलए, एनडीपीएस, गैरकानूनी गतिविधियां निरोधक कानून जैसे विशेष कानूनों और आर्थिक अपराधियों को रिहा करने से मना कर दिया था। एचपीसी के इस फैसले के खिलाफ एनएपीएम ने बॉम्बे हाई कोर्ट में अपील दायर की थी। बॉम्बे हाई कोर्ट ने एचपीसी के फैसले को सही ठहराया था।