भारत की वो राजकुमारी जो अंग्रेजों की थी जासूस, हिटलर भी कांप उठा था
नूर से जर्मन तानाशाह हिटलर की सेना इतना खौफ खाने लगी थीं कि उन्हें मारने के बाद ही वे चैन की सांस ले पाए।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। दीपिका, प्रियंका के बाद अब राधिका आप्टे भी हॉलीवुड में डेब्यू करने जा रही हैं। ये फिल्म ब्रिटिश प्रधानमंत्री रहे विंस्टन चर्चिल की जासूसी सेना पर आधारित है। इसी सेना में एक भारतीय जासूस भी थीं, नूर इनायत खान। नूर से जर्मन तानाशाह हिटलर की सेना इतना खौफ खाने लगी थीं कि उन्हें मारने के बाद ही वे चैन की सांस ले पाए। नूर इनायत खान का नाम इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। नूर ने अंतिम वक्त तक फर्ज के साथ ईमानदारी निभाई।
नूर इनायतत खान मैसूर के राजा टीपू सुल्तान की वंशज थीं। टीपू सुलतान सन् 1799 में ब्रिटिश के हाथों मारे गए थे। नूर की मां ओरा बेकर ब्रिटिश थीं, मगर अमेरिका में पली बढ़ीं थीं। नूर के पिता इनायत खान एक सूफी टीचर थे। ओरा और इनायत की मुलाकात अमेरिका में एक सूफी लेक्चर के दौरान हुई थी। इसके बाद दोनों में प्यार हो गया। दोनों की शादी साल 1913 में हुई।
नए साल की पहली रात, 1914 में मॉस्को में नूर का जन्म हुआ। पहले विश्व युद्ध के बाद नूर का परिवार फ्रांस में शिफ्ट हो गया था। इसके बाद साल 1940 में दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान फ्रांस ने जब जर्मनी के आगे बिना लड़े ही घुटने टेक दिए तो नूर को अपना घर गंवाना पड़ा। जर्मनी का कब्जा हो जाने के बाद नूर परिवार सहित लंदन शिफ्ट हो गईं। उसने हिटलर के खिलाफ लड़ने का फैसला लिया और नवंबर, 1940 में विमेन आक्सिलरी एयर फोर्स (WAAF) को ज्वाइन कर ली। यहीं से उसके आगे जाकर जासूस बनने के सफर की शुरुआत हुई।
मां को लिखा- अंग्रेजों का साथ देंगे तो आजादी मिलेगी
ये वो वक्त था जब भारत पर भी अंग्रेजों का राज था। नूर को भले ही हिटलर पसंद नहीं था लेकिन वे अंग्रेजों के लिए काम करते हुए भी भारत के प्रति अपना प्यार भुला नहीं पाई थीं। जासूसी की ट्रेनिंग के दौरान नूर ने अपनी मां को एक पत्र भेजा। इसमें नूर ने लिखा- 'मुझे ऐसा लगता है कि अगर विश्व युद्ध में भारतीय अंग्रेजों का साथ देंगे तो उन्हें भारत को आजादी देनी ही पड़ेगी।'
WAAF की ड्रेस में नूर इनायत खान।
WAAF में एक इंटरव्यू के दौरान भी नूर ने यही कहा कि पहले वो ब्रिटिश के लिए काम करेंगी ताकि हिटलर को रोका जा सके और बाद में वह ब्रिटिश से भारत की आजादी के लिए लड़ाई लड़ेंगी। नूर की साफगोई ब्रिटिश अफसरों को बहुत पसंद आई और से जासूसी की ट्रेनिंग के लिए नामित कर दिया।
1942 में नूर को स्पेशल ऑपरेशन एक्जिक्यूटिव (SOE) में रेडियो ऑपरेटर के तौर पर ज्वाइन करवाया गया। इस दौरान नूर को जासूस बनने के लिए कड़ी ट्रेनिंग से गुजरना पड़ा। नूर को मोर्स कोड और कड़ी फिजिकल ट्रेनिंग दी गई। लेकिन इस दौरान नूर की साफगोई और नरमदिली के चलते उनके ट्रेनर भी चिंता में आ जाते थे। हालांकि, नूर तमाम बाधाओं को पार करते हुए अंततः जासूस बन ही गईं।
ट्रेनिंग के बाद जुलाई 1943 में नूर को जासूसी के लिए हिटलर के कब्जे वाले फ्रांस भेजा गया। नूर को 'मेडलिन' नाम दिया गया। यह जासूसी दुनिया में उसका कोड नेम था। कई महीनों तक नूर ने हिटलर के सिपाहियों को छकाया और उनकी पकड़ में न आई। नूर इस दौरान लगातार ब्रिटिश को जानकारी भेजती रहीं। लेकिन अक्टूबर महीने में ही नूर विश्वासघात की शिकार हो गईं।
फ्रांस में नूर का जासूसी करियर शुरू करवाने वाली फ्रांसीसी महिला ने कुछ रुपयों के लिए नूर का भेद नाजियों को बता दिया। नाजियों ने नूर को घर में ही पकड़ लिया। नूर को अनेकों अनेक बार प्रताड़ित किया गया। लेकिन नूर ने मुंह नहीं खोला। नाजियों के हाथ नूर के सीक्रेट कोड की डायरी भी लग गई। वे ब्रिटिश को गलत जानकारी भेजने लगे। फिर नवंबर में नूर को जर्मनी शिफ्ट कर दिया गया लेकिन यहां भी नाजी नूर से जानकारी उगलवाने में असफल रहे। 13 सितंबर, 1944 तक नूर समेत 3 अन्य SOE जासूस महिलाओं की नाजियों ने गोली मार कर हत्या कर दी।