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रेल भवन में फालतू मंत्री स्टाफ की भरमार

रेल भवन में अफसरों के लिए कमरों की किल्लत पैदा हो गई है। मंत्रियों से जुड़े अफसरों और कर्मचारियों की जरूरत से ज्यादा तैनाती के कारण भवन के प्रमुख कमरों पर मंत्री स्टाफ काबिज हो गया है। जबकि, नियमित अफसरों को कमरों के लिए भटकना पड़ रहा है। रेल मंत्रालय में कार्मिक मंत्रालय के नियमों की अनदेखी हो रही है। निय

By Edited By: Published: Sun, 09 Feb 2014 07:39 PM (IST)Updated: Sun, 09 Feb 2014 07:48 PM (IST)
रेल भवन में फालतू मंत्री स्टाफ की भरमार

नई दिल्ली। रेल भवन में अफसरों के लिए कमरों की किल्लत पैदा हो गई है। मंत्रियों से जुड़े अफसरों और कर्मचारियों की जरूरत से ज्यादा तैनाती के कारण भवन के प्रमुख कमरों पर मंत्री स्टाफ काबिज हो गया है। जबकि, नियमित अफसरों को कमरों के लिए भटकना पड़ रहा है।

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रेल मंत्रालय में कार्मिक मंत्रालय के नियमों की अनदेखी हो रही है। नियमानुसार रेल मंत्री अफसरों के अलावा ग्रुप-सी के चार कर्मचारी रख सकते हैं। लेकिन, रेल मंत्री मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस श्रेणी के 38 कर्मचारी रखे हुए हैं। यही नहीं, मल्टी टास्किंग स्टाफ (एमटीएस) के रूप में भी उनके पास पांच के बजाय 22 कर्मचारी हैं।

कुछ ऐसा ही हाल दोनों रेल राज्य मंत्रियों का भी है। अधीर रंजन चौधरी को ग्रुप-सी के पांच कर्मचारी रखने का हक है, लेकिन उन्होंने लगा रखे हैं 26 कर्मचारी। इसी तरह चार की जगह पर नौ एमटीएस उनके साथ काम कर रहे हैं। कोटला जयसूर्यप्रकाश रेड्डी के पास भी पांच की जगह 20 ग्रुप-सी कर्मचारी और चार की जगह 13 एमटीएस हैं।

कुल 127 कर्मचारियों का यह स्टाफ पीएस, ओएसडी, एपीएस, पीए और एडवाइजर के रूप में मंत्रियों के साथ संबद्ध पचास अफसरों के अलावा है। रेल मंत्री खड़गे के साथ जहां 27 अफसर अटैच्ड हैं, जबकि रेड्डी को 12 और चौधरी को 11 अफसर मिले हैं। इन सभी का तकरीबन 35 कमरों पर कब्जा है। इसके अलावा ग्रुप-सी कर्मचारियों के लिए हाल और केबिन का भी इस्तेमाल हो रहा है।

पांच मंजिले रेल भवन में छोटे-बड़े मिलाकर करीब दो सौ कमरे हैं। इनमें रेलवे बोर्ड अध्यक्ष व सदस्यों के अलावा सचिव व अतिरिक्त सदस्य, संयुक्त सचिव व कार्यकारी निदेशक, निदेशक, संयुक्त निदेशक व उपनिदेशक स्तर के अधिकारी और मंत्री स्टाफ के अफसर व कर्मचारी बैठते हैं। पहले रेल मंत्री के अलावा राज्य मंत्री का एक ही पद हुआ करता था। फिर दो राज्य मंत्रियों का चलन हुआ।

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इसी के साथ मंत्रियों के मनमाना स्टाफ रखने की परंपरा शुरू हो गई। इससे कमरे कम पड़ने लगे। अब हालत यह है कि कई विभागों को रेल भवन से बाहर प्रगति मैदान में शिफ्ट कर दिया गया है। अफसरों का कहना है कि इससे उनके कामकाज पर असर पड़ रहा है।

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