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स्‍विस बैंकों में भारतीयों के निष्क्रिय खातों में पड़ें हैं करोड़ों, लेकिन छह साल में नहीं पहुंचा कोई वारिस

स्‍विस बैंकों में भारतीयों के निष्‍कृय खातों में पड़ें हैं करोड़ों लेकिन छह साल में नहीं पहुंचा कोई वारिस

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sun, 10 Nov 2019 02:37 PM (IST)Updated: Sun, 10 Nov 2019 05:19 PM (IST)
स्‍विस बैंकों में भारतीयों के निष्क्रिय खातों में पड़ें हैं करोड़ों, लेकिन छह साल में नहीं पहुंचा कोई वारिस
स्‍विस बैंकों में भारतीयों के निष्क्रिय खातों में पड़ें हैं करोड़ों, लेकिन छह साल में नहीं पहुंचा कोई वारिस

नई दिल्‍ली/ज्यूरिख, पीटीआइ। भारत में कालेधन को लेकर लंबे समय से सियासत होती रही है। अब इस मसले पर समाचार एजेंसी पीटीआइ की एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि स्विट्जरलैंड के बैंकों (Swiss bank) में भारतीयों के करीब एक दर्जन ऐसे निष्क्रिय खाते हैं जिनका कोई भी दावेदार सामने नहीं आया है। ऐसे में यह आशंका है कि इन खातों में पड़ी रकम को स्विट्जरलैंड सरकार के हवाले किया जा सकता है।

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स्विस प्राधिकरणों से जो जानकारी सामने आई है उसके मुताबिक, बीते छह साल में स्विट्जरलैंड के बैंकों में जो भी खाते निष्क्रिय हैं उनमें से एक के लिए भी किसी भारतीय ने दावेदारी नहीं पेश की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इन निष्‍कृय खातों में से कुछ के लिए दावा करने की अंतिम तारीख अगले महीने खत्‍म हो जाएगी। हालांकि, कुछ ऐसे खाते भी हैं जिन पर 2020 के अंत तक दावा किया जा सकता है। 

चौंकाने वाली बात यह है कि इन निष्क्रिय खातों में कुछ पर पाकिस्तानियों ने दावा किया है। यही नहीं स्विट्जरलैंड के साथ साथ कुछ अन्‍य देशों के लोगों के खातों पर भी दावेदारी पेश की गई है। रिपोर्ट की मानें तो स्विस बैंकों में लगभग 2,600 खाते हैं जो निष्क्रिय हैं और जिनमें 4.5 करोड़ स्विस फ्रैंक या करीब 300 करोड़ रुपये की रकम मौजूद है। यही नहीं साल 1955 से ही इन खातों में मौजूद रकम के लिए दावेदारी नहीं पेश की गई है। 

बता दें कि स्विट्जरलैंड की सरकार ने साल 2015 में जो खाते निष्क्रिय हो गए हैं उनके बारे में जानकारी सार्वजनिक करनी शुरू की थी। इसके बाद स्विट्जरलैंड के बैंकों ने निष्क्रिय खातों के दावेदारों को रकम हासिल करने के लिए जरूरी दस्‍तावेज जमा करने के निर्देश दिए थे। इन निष्क्रिय खातों में से दस भारतीयों के हैं। हैरान करने वाली जानकारी यह है कि इनमें से कुछ खाते भारत में रहने वालों और ब्रिटिश राज के दौर के नागरिकों से भी जुड़े हैं। 


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