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क्‍या है निपाह वायरस, सतर्क हो जाए.. अगर चमगादड़ व सुअर एक ही स्थान पर हो तो

पहले चमगादड़ से किसी प्रकार की दिक्कत नहीं होती थी, लेकिन वर्तमान समय में निपाह वाइरस को लेकर कहीं न कहीं लोगों के मन में डर उत्पन्न हो गया है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 28 May 2018 10:51 AM (IST)Updated: Mon, 28 May 2018 04:44 PM (IST)
क्‍या है निपाह वायरस, सतर्क हो जाए.. अगर चमगादड़ व सुअर एक ही स्थान पर हो तो
क्‍या है निपाह वायरस, सतर्क हो जाए.. अगर चमगादड़ व सुअर एक ही स्थान पर हो तो

जलपाईगुड़ी, जागरण संवाददाता। एक तरफ पेड़ पर चमगादड़ व दूसरी ओर नीचे घूमते हुए सुअर को देखकर लोगों में भय का माहौल बनता जा रहा है। जलपाईगुड़ी शहर के 11 व 12 नंबर वार्ड के बीच आदरपाड़ा में गत 60 वर्षोंं से यूकेेलिप्टस का पेड़ चमगादड़ों का आवास स्थान बना हुआ है। पहले चमगादड़ से किसी प्रकार की दिक्कत नहीं होती थी, लेकिन वर्तमान समय में निपाह वायरस को लेकर कहीं न कहीं लोगों के मन में डर उत्पन्न हो गया है। इसका प्रमुख कारण है पेड़ पर चमगादड़ का होना और नीचे से सुअरों का घूमना।

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स्थानीय निवासी मुकुल दास ने कहा कि चमगादड़ों के रहने से उनलोगों को कोई परेशानी नहीं है, लेकिन नीचे सुअरों का घूमना नीपाह वायरस जैसे बीमारियों को पैदा कर सकती है। वर्ष 2001 में सिलीगुड़ी में निपाह वायरस होने के बावजूद लोग सामान्य जीवन जी रहे थे।

चमगादड़ का आवास भी बिल्कुल जस की तस अपने स्थान पर था। जिले भर में निपाह वायरस का आतंक बना हुआ है। स्वास्थ्य विभाग की ओर से भी सतर्कता जारी की गई है। जिला के मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी जगन्नाथ सरकार ने कहा कि निपाह वाइरस को लेकर ब्लॉक के सभी अस्पतालों व स्वास्थ्य कर्मियों के साथ बैठक कर आवश्यक निर्देश दिए जा चुके हैं। इस बीच एक ही स्थान पर चमगादड़ व सुअरों का होना चिंता का विषय बना हुआ है। फिलहाल लोगों को सतर्क रहने की जरूरत है। 

क्‍या है निपाह वायरस 

निपाह वायरस भारत में बड़ी तेजी से पांव पसार रहा है। केरल से शुरू होने के बाद अब कर्नाटक, तेलंगाना में भी इसके कुछ मामले सामने आ चुके हैं। इतना ही नहीं केरल में इस खतरनाक वायरस से अब तक 13 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि करीब 200 संदिग्ध मरीजों का इलाज चल रहा है। इलाज करते हुए चपेट में आए पांच चिकित्साकर्मियों को बेहतर इलाज के लिए दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल भेजा गया है। केरल के कुछ जिलों में इसकी चपेट में आने के बाद यहां आने वाले पयर्टकों में भी इसको लेकर डर व्‍याप्‍त है। इसका असर साफतौर पर यहां ट्यूरिज्‍म इंडस्‍ट्री पर भी पड़ता हुआ दिखाई दे रहा है।

चौंकाने वाला खुलासा

इस खतरनाक वायरस को लेकर एक और चौंकाने वाला खुलासा ये हुआ है कि इस वायरस के फैलने का स्रोत चमगादड़ नहीं है, जैसा कि पहले कहा जा रहा था। फिलहाल विशेषज्ञ भी इसकी जानकारी जुटा रहे हैं कि यदि इसका स्रोत चमगादड़ नहीं है तो फिर यह किस वजह से इतनी तेजी से विभिन्‍न राज्‍यों में फैल रहा है। वहीं अब अब फल खाने वाले चमगादड़ का रक्त नमूना परीक्षण के लिए भोपाल स्थित प्रयोगशाला में भेजा गया है। पुणे प्रयोगशाला के विशेषज्ञों की टीम भी कोझिकोड पहुंच गई है, वह विभिन्न तरह के चमगादड़ों के रक्त नमूने ले रही है। इस वायरस से होने वाली बीमारी के लक्षणों में बुखार, सिरदर्द और उल्टियां शामिल है। कुछ में मिर्गी के 

नहीं मिला चमगादड़ से फैलने का सुबूत

केंद्रीय मेडिकल टीम ने विभिन्‍न जगहों से कुल 21 नमूने एकत्रित किए थे जिसमें से सात चमगादड़, दो सूअर, एक गोवंश और एक बकरी या भेड़ से था। इन नमूनों को भोपाल स्थित राष्ट्रीय उच्च सुरक्षा पशुरोग संस्थान और पुणे स्थित राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान भेजा गया था। अधिकारी ने कहा, इन नमूनों में उन चमगादड़ों के नमूने भी शामिल थे जो कि केरल में पेराम्बरा के उस घर के कुएं में मिले थे जहां शुरूआती मौत की सूचना मिली थी। इन नमूनों में निपाह विषाणु नहीं पाए गए हैं। इसके अलावा हिमाचल प्रदेश में मृत मिले चमगादड़ों के नमूने पुणे भेजे गए थे, उनमें भी यह विषाणु नहीं मिला है। इसके साथ ही हैदराबाद के संदिग्ध मामलों के दो नमूनों में भी यह विषाणु नहीं मिले हैं।

राज्‍यों में हाईअलर्ट

इसके अलावा बिहार, हरियाणा और सिक्किम में इस खतरनाक वायरस को हाईअलर्ट जारी किया गया। इसके साथ ही लोगों को इसके प्रति जागरुक करने के अलावा अस्‍पतालों, होटलों आदि में विशेष निगरानी रखी जा रही है। जिन राज्‍यों में इस वायरस का प्रकोप फैला हुआ है वहां से आने वाले लोगों पर निगाह रखी जा रही है। इसको लेकर राज्‍य सरकारों ने अपने यहां पर एडवाइजरी भी जारी की है। केरल सरकार ने प यर्टकों को कोझिकोड, मलप्पुरम, वायनाड और कन्नूर जिलों की यात्रा न करने की सलाह दी है। एडवाइजरी के अनुसार फिलहाल इन जगहों पर निपाह वायरस फैलने का खतरा सबसे ज्यादा बना हुआ है। इस देखते हुए आसपास के राज्यों समेत खासतौर पर पर्यटकों को सलाह दी गई है।

क्‍या कहते हैं जानकार

वैज्ञानिकों व चिकित्‍सा विशेषज्ञों का कहना है यदि बायोसिक्योरिटी को सख्त कर दिया जाए, तो वायरस को आने से रोका जा सकता है। गुरू अंगद देव वेटरनरी एंड एनिमल साइंस यूनिवर्सिटी के डीन कॉलेज ऑफ वेटरनरी डॉ. प्रकाश बराड़ के अनुसार बायोसिक्योरिटी का मतलब बायोलॉजिकल मटीरियल को फैलने से रोकना होता है। निपाह वायरस भी बायोलॉजिकल मटीरियल में आता है। यदि प्रभावित क्षेत्र के लोग बाहर न जाएं या बाहर के लोग प्रभावित क्षेत्र में न जाए, प्रभावित क्षेत्र किसी भी चीज को फिर चाहे वह फल, सब्जियां व अन्य तरह के खाद्य पदार्थ को दूसरी जगहों पर जाने से रोक दिया जाए तो वायरस को फैलने से रोका जा सकता है। उनका कहना है कि यह वायरस किसी भी चीज के जरिए मूवमेंट कर सकता है। फिलहाल लोग प्रभावित राज्य या जगह के आसपास में यात्रा करने से बचना चाहिए। गर्मियों के दिनों में बहुत से लोग छुट्टियां बिताने के लिए दक्षिण भारत व समुद्री तटों की यात्रा जाते हैं। इसके अलावा प्रभावित राज्यों से आने वाले फलों के सेवन से बचना चाहिए। क्योंकि खजूर व नारियल के पेड़ के पास चमगादड़ का आना-जाना रहता है। ऐसे में लोग कटे-फटे खजूर खाने से भी बचना चाहिए।

निपाह वायरस के लक्षण

निपाह वायरस से संक्रमित मनुश्य को आमतौर पर बुखार, सिरदर्द, उनींदापन, मानसिक भ्रम, कोमा, विचलन होता है। निपाह वायरस से प्रभावित लोगों को सांस लेने की दिक्कत होती है और साथ में जलन महसूस होती है। वक्त पर इलाज नहीं मिलने पर मौत भी सकती है। इंसानों में निपाह वायरस एन्सेफलाइटिस से जुड़ा हुआ है, जिसकी वजह से ब्रेन में सूजन आ जाती है। डॉक्टरों के मुताबिक कुछ मामलों में 24-28 घंटे के अंदर लक्षण बढ़ने पर मरीज कोमा में भी चला जाता है।

पहले भी ले चुका है लोगों की जान निपाह 

भारत में निपाह वायरस का हमला पहली बार नहीं है। देश में निपाह वायरस का का पहला मामला वर्ष 2001 के जनवरी और फरवरी माह में पश्चिम बंगाल के सिलिगुड़ी में दर्ज किया गया है। इस दौरान 66 लोग निपाह वायरस से संक्रमित हुए थे। इनमें से उचित इलाज न मिलने की वजह से 45 लोगों की मौत हो गई थी। वहीं, निपाह वायरस का दूसरा हमला वर्ष 2007 में पश्चिम बंगाल के नदिया में दर्ज किया गया। उस वक्त पांच मामले दर्ज किए गए थे, इसमें से पांचों की मौत हो गई थी।

कब-कब दर्ज किए गए निपाह के मामले

1998 में पहली बार मलेशिया के कांपुंग सुंगई निपाह में इसके मामले सामने आए थे। इसके एक वर्ष बाद वर्ष 1999 में सिंगापुर में निपाह वायरस के मामले दर्ज किए गए। हालांकि वायरस के उत्पत्ति स्थल कांपुंग सुंगई निपाह के आधार पर इसका नाम निपाह वायरस रखा गया। इसके बाद वर्ष 2004 में निपाह वायरस का मामला बांग्लादेश में दर्ज किया गया। इस वायरस का पहला मामला मलेशिया के पालतू सुअरों में पाया गया। इसके बाद वायरस अन्य पालतू जानवरों बिल्ली, बकरी, कुत्ता, घोड़ों और भेडों में फैलता चला गया। इसके बाद निपाह वायरस का हमला मनुष्यों पर हुआ।

यह सावधानी बरतें

- स्वास्थ्य विभाग के निदेशक डॉ. बलदेव ठाकुर के अनुसार चमगादड़ों की लार या पेशाब के संपर्क में न आने से बचें।

- ऐसी जगहों पर भी न जाएं जहां पर चमगादड़ों का आना जाना लगा रहता हो।

-खासकर पेड़ से गिरे फलों को खाने से बचें।

-फलों को पानी में धोकर खाएं।

-संक्रमित सुअर और इंसानों के संपर्क में न आएं।

-जिन इलाकों में निपाह वायरस फैल गया है वहां न जाएं।

-व्यक्ति और पशुओं के पीने के पानी की टंकियों सहित बर्तनों को ढककर

-बाजार में कटे और खुले फल न खाएं।

-संक्रमित पशु के संपर्क में न आएं। खासकर सुअर के संपर्क में आने से बचें।

-निपाह वायरस के लक्षण पाए जाने पर तुरंत डॉक्टर के पास जाएं।


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