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Hindi Diwas 2020: नए दौर में निखरी हिंदी, समय के साथ मिला है बढ़ावा

Hindi Diwas 2020 एक सच हमें नहीं भूलना है कि हिंदी को बाकी भारतीय भाषाओं के बीच ही खिलना और अपनी सुगंध बिखेरना है...।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 14 Sep 2020 12:31 PM (IST)Updated: Mon, 14 Sep 2020 12:31 PM (IST)
Hindi Diwas 2020: नए दौर में निखरी हिंदी, समय के साथ मिला है बढ़ावा
Hindi Diwas 2020: नए दौर में निखरी हिंदी, समय के साथ मिला है बढ़ावा

नासिरा शर्मा। Hindi Diwas 2020 डिजिटल क्रांति की वजह से इन दिनों हिंदी में लिखने वालों की संख्या काफी बढ़ी है। यह कहना सही होगा कि किसी भी कालखंड में हिंदी में इतने बड़े पैमाने पर काम नहीं हुआ है, जितना अब हुआ है... अभी तक हर साल ढेरों उम्मीदों व खुशियों के साथ मनाया जाता था हिंदी दिवस। जश्न में न केवल देश में, बल्कि विदेश में भी जो शानदार समारोह होते थे उसमें हिंदी के लेखकों, हिंदी के शोधकर्ताओं व हिंदी सेवियों को सम्मानित किया जाता था।

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कोरोना संक्रमण के काल में इस बारें हिंदी दिवस के जश्न किस प्रकार से मनाए जाएंगे। यह तो आने वाला कल ही बताएगा। वैसे यह निश्चित है कि इस बार इसका जश्न मनाने के तौर-तरीके पहले के मुकाबले काफी बदले हुए होंगे। पिछले दो दशकों से हिंदी में लिखने वालों की संख्या काफी बढ़ी है। सोशल मीडिया ने भी नए अध्याय जोड़े हैं। यह कितना टिकाऊ और सारर्गिभत है यह तो आने वाला समय बताएगा, मगर अभी तो हर व्यक्ति अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर अपने को व्यक्त कर रहा है। यह वैचारिक एवं भावनात्मक समझदारी भी है और पहचान व दोस्ती का मंच भी है, जो तकनीक ने हमको प्रदान किया है।

कमियों पर भी ध्यान देना होगा: कभी-कभी महसूस होता है कि क्या यह केवल ऊपरी तामझाम है या वास्तव में हिंदी भाषा में बुनियादी काम हो रहा है? पहले स्टेशन पर हर भाषा की पुस्तकें मिलती थीं। अब हिंदी की पुस्तकें या बच्चों के कॉमिक्स नजर नहीं आते हैं आखिर क्यों? यहां पर आकर हिंदी को बढ़ावा देने वालों की नजरें क्यों चूक जाती हैं? ताज्जुब होता है कि यह लापरवाही हिंदी पढ़ी जाने वाली पट्टी में हो रही है।

पाठकों के दिल तक पहुंचे हिंदी: पिछड़े इलाकों व छोटे कस्बों में बहुत सुंदर रचनाएं लिखी जा रही हैं, लेकिन इन्हें प्रकाशक नहीं मिलते हैं और जिन्हेंं मिलते भी हैं तो उन प्रकाशकों की हैसियत इतनी नहीं होती है कि वे उन पुस्तकों को मुख्य धारा में लाकर उन्हें पाठकों के बड़े समूह तक पहुंचा सकें। यह भी देखा जा रहा है कि अपने प्रभाव के चलते ऐसे लेखकों की पुस्तकें बहुतायत से छप रही हैं, जो लेखन व साहित्य की कसौटी पर खरी उतरना तो दूर वे किसी भी कोण से पाठकों के लिए ठीक नहीं हैं। साहित्य का काम चरित्र निर्माण करना है न कि उसका हनन करना है। हिंदी को बढ़ावा देने वाली समितियां इस ओर ध्यान दें कि सारर्गिभत रचनाओं से हिंदी का दामन मालामाल हो और वे पाठकों के दिलोदिमाग को रोशन कर सकें।

मातृभाषा के प्रति आदरभाव जरूरी: जिस भाषा में साहित्य रचा जाता है वह इसलिए भी महत्वपूर्ण होती है कि वह किसी की मातृभाषा है, जिसके प्रति हमें आदरभाव रखना है। अंग्रेजी अब विदेशी भाषा नहीं रह गई, परंतु जब आप हिंदी बोलें तो शुद्ध उच्चारण, व्याकरण और सही अभिव्यक्ति से बोलें और जब अंग्रेजी बोलें तो भी इन्हीं बातों का ख्याल रखें।

संपर्क भाषा देती है सहजता: हर व्यक्ति को अपनी मातृभाषा से प्यार होता है, परंतु शिक्षा के चलते वह अन्य भाषाओं को सीखता है और उसके द्वारा वह उन सारी चीजों का ज्ञान प्राप्त करता है, जो उसे समाज की मुख्यधारा से जोड़ती हैं। भारत में हिंदी धीरे-धीरे संपर्क भाषा बन रही है। यह हिंदी की लोकप्रियता को दर्शाता है। बहुत से हिंदी के साहित्यकार ऐसे हैं, जिनकी मातृभाषा हिंदी नहीं, परंतु वे हिंदी में लिखना पसंद करते हैं। बहुत से हिंदी मातृभाषा के लोग अन्य भाषाओं को अपनाते हैं। भाषा को लेकर हमें हमेशा उदार होना चाहिए।

बच्चों में भी बढ़े हिंदी की रुचि: इसी के साथ मैं बच्चों व किशोरों की पाठ्य पुस्तकों की भी बात करना चाहती हूं और बार-बार यह कहती रही हूं कि पाठ्यक्रम ऐसा बने जिससे बच्चे न घबराएं, न परेशान हों, बल्कि हिंदी के प्रति उनका प्रेम और रुचि बढ़े और वे आगे चलकर हिंदी के प्रति आर्किषत हों, लेकिन हो यह रहा है कि हिंदी के नाम पर अवधी भाषा अधिक मात्रा में रखी जाती है, जो बच्चों के लिए समझना कठिन हो जाती है और वे हिंदी भाषा से भागने लगते हैं। हमारे जमाने में सूरदास, तुलसीदास, रहीम, रसखान आदि पाठ्य पळ्स्तकों में थे और वे हमें आज भी मुंहजबानी याद हैं। बच्चों व किशोरों के मनोविज्ञान को नजर में रखते हुए स्कूल के अध्यापकों द्वारा पाठ्यक्रम बने न कि बड़े-बड़े हिंदी के प्रोफेसरों व विद्वानों द्वारा, क्योंकि वे तो आगे गूढ़ ज्ञान बी.ए., एम.ए. के विद्र्यािथयों को देंगे ही या इंटर के कोर्स में उनकी मदद की दरकार हो सकती है, मगर हाईस्कूल तक एक साथ सारा ज्ञान पिलाना उचित नहीं है। हिंदी दिवस के शुभ अवसर पर हमें गंभीरतापूर्वक कुछ कमियों की तरफ विचार करना बेहद जरूरी है।

इन कुछ मुद्दों से हटकर हम उन बातों की तरफ भी आएं जिसमें इन वर्षों में हिंदी ने कुछ ऐसे काम किए हैं, जो सराहे जा सकते हैं और उस दिशा में आगे भी हौसला बढ़ाने की जरूरत है।

समय के साथ मिला है बढ़ावा: समय के साथ हिंदी को बढ़ावा देने का कार्य बहळ्त अच्छी तरह से हुआ है। पहला तो अब हर हाथ में मोबाइल रहने से बातों के अलावा संदेश भेजने का भी तरीका सरल हो गया है। इससे हिंदी केवल संपर्क भाषा के रूप में ही नहीं, बल्कि लिखित स्तर पर भी फैल रही है। दूसरा, बाजार में दुकानों के नाम हिंदी में लिखने का चलन बढ़ गया है। तीसरा, विदेशी फिल्में, धारावाहिक और जरूरी ज्ञानवर्धक वीडियो भी हिंदी डबिंग के साथ उपलब्ध हो रहे हैं। हालांकि इन सबके बाद भी एक सच हमें नहीं भूलना है कि हिंदी को बाकी भारतीय भाषाओं के बीच ही खिलना और अपनी सुगंध बिखेरना है...।

(लेखिका वरिष्ठ साहित्यकार हैं)


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