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Yasin Malik Case: यासीन मलिक को जेल भेजने में 'जैक', 'जान' और 'अल्फा' की अहम भूमिका; यह तीनों एनआइए के हैं विशेष गवाह

कश्मीर में आतंकवाद से जुड़े इस हाई प्रोफाइल मामले में यूं तो लगभग चार दर्जन गवाह थे लेकिन कुछ को ऐसे कोड नाम दिए गए थे। मामले से परिचित अधिकारियों के अनुसार यह ऐसे गवाह थे जो इसे सुलझाने और आरोपित को सजा दिलाने में अहम भूमिका निभा सकते थे।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Published: Thu, 26 May 2022 11:04 PM (IST)Updated: Sat, 28 May 2022 04:33 AM (IST)
Yasin Malik Case: यासीन मलिक को जेल भेजने में 'जैक', 'जान' और 'अल्फा' की अहम भूमिका; यह तीनों एनआइए के हैं विशेष गवाह
सुरक्षा के लिए ऐसे गवाहों को दिए गए कोड नाम

नई दिल्ली, प्रेट्र। जम्मू-कश्मीर में लंबे समय तक आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त रहे यासीन मलिक को आजीवन जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने में यदि एनआइए को सफलता मिली है तो इसके पीछे जैक, जान और अल्फा की अहम भूमिका है। आतंकी फंडिंग के इस मामले में यह तीनों एनआइए के विशेष गवाह हैं जिन्हें यह कोड नाम दिए गए हैं। ऐसा सुरक्षा के लिहाज से किया गया ताकि उनकी असली पहचान छिपी रहे। इस अहम मामले की जांच करते हुए एनआइए ने 70 स्थानों पर छापे मारकर लगभग 600 इलेक्ट्रानिक डिवाइस कब्जे में ली थीं। बता दें, आतंकी फंडिंग के आरोप स्वीकार करने के बाद दिल्ली की एक अदालत ने यासीन मलिक को बुधवार को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

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चार दर्जन गवाह थे मामले में

कश्मीर में आतंकवाद से जुड़े इस हाई प्रोफाइल मामले में यूं तो लगभग चार दर्जन गवाह थे, लेकिन कुछ को ऐसे कोड नाम दिए गए थे। मामले से परिचित अधिकारियों के अनुसार यह ऐसे गवाह थे जो इसे सुलझाने और आरोपित को सजा दिलाने में अहम भूमिका निभा सकते थे। इस केस की पड़ताल एनआइए के महानिरीक्षक अनिल शुक्ला ने जांच एजेंसी के तत्कालीन निदेशक शरद कुमार के साथ की। अनिल शुक्ला अरुणाचल प्रदेश-गोवा-मिजोरम केंद्र शासित प्रदेश कैडर के 1996 बैच के आइपीएस अधिकारी हैं। गुरुग्राम में अपने निवास से अनिल शुक्ला ने कहा कि अदालत का निर्णय केस की जांच करने वाली टीम के कडे़ परिश्रम का पुरस्कार है। मैं अदालत द्वारा सुनाई गई सजा से पूरी तरह संतुष्ट हूं। उसने (यासीन) दोष स्वीकार कर मृत्युदंड से बचने की शातिर चाल चली। फिर भी उसको मिली सजा देशविरोधी कार्य करने की सपना देखने वालों के लिए एक सबक है।

गवाहों ने बताया कैसे रची गई साजिश

वर्तमान में अंडमान निकोबार में पदस्थ अनिल शुक्ला को कश्मीर में पत्थरबाजी बंद कराने का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने अलगाववादियों को मिलने वाले धन पर रोक लगवा दी थी। अधिकारियों ने कहा कि केस को कमजोर होने से बचाने के लिए शुक्ला ने ही 'प्रोटेक्टेड विटनेस' की रणनीति बनाई थी। 66 वर्षीय यासीन मलिक के खिलाफ आरोप तय करने में एनआइए जज ने जैक, जान और गोल्फ के अलावा कुछ और संरक्षित गवाहों के बयानों को आधार बनाया। इन गवाहों ने वर्ष 2016 के नवंबर माह में सैयद अली शाह गिलानी, यासीन मलिक और अन्य हुर्रियत नेताओं द्वारा मुलाकात के बाद विरोध प्रदर्शन और बंद का एलान करने की जानकारी दी। गिलानी की मौत हो चुकी है। एक अन्य संरक्षित गवाह ने बयान दिया कि गिलानी और यासीन ही उसे विरोध प्रदर्शन की तारीखें भेजते थे ताकि उन्हें अखबारों में प्रचार के तौर पर दिया जा सके। एनआइए ने कंफेशन (स्वीकारोक्ति वाले बयान) पर अधिक जोर दिया क्योंकि वह न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज किए जाते हैं। गवाहों के बयान लिखते समय पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी की गई और सुनवाई के दौरान कोई भी जांच अधिकारी अदालत परिसर में मौजूद नहीं रहा। यदि बाद में यह गवाह अपने बयान से पलट जाएं तो एनआइए उनके खिलाफ झूठी गवाही देने का आरोप लगा सकती है। यासीन मलिक के बहुचर्चित गांधीवाद को नकारते हुए अदालत ने कहा कि स्पष्ट है कि एक आपराधिक साजिश रची गई जिसके कारण बड़े पैमाने पर हिंसा और आगजनी वाले विरोध प्रदर्शन किए गए। इसका उद्देश्य सरकार को भयभीत कर जम्मू-कश्मीर को देश से अलग करना था। सुनवाई में तर्क दिया गया है कि गांधीवाद का रास्ते पर चलते हुए यह प्रदर्शन अहिंसक होने थे, लेकिन साक्ष्य कुछ और ही कहते हैं। प्रदर्शनों को हिंसक रखने की योजना पहले से थी।

हिटलर और नाजी हिंसक समूह से की तुलना

अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया गांधी का सिद्धांतों को लेकर झूठा दावा किया गया है। वर्ष 1922 की चौरीचौरा घटना का उल्लेख करते हुए अदालत ने कहा कि उस समय लोगों ने गोरखपुर में एक पुलिस स्टेशन को आग लगा दी थी जिसमें 22 लोगों की मौत हो गई थी। महात्मा गांधी ने इस घटना के बाद असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था, लेकिन कश्मीर घाटी में व्यापक पैमाने पर हिंसा होने के बावजूद आरोपित ने विरोध प्रदर्शन जारी रखा। इस कारण प्रथम दृष्टया वह गांधी के रास्ते पर नहीं चल रहा था और उसकी योजना हिटलर और ब्राउन श‌र्ट्स के मार्च के तरीकों पर आधारित थी। इसका उद्देश्य भारी हिंसा से सरकार को भयभीत कर विद्रोह की योजना से कम नहीं था। पर्याप्त साक्ष्य हैं जिनके आधार पर यह आइपीसी की धारा 121-ए के अंतर्गत एक साजिश है। बता दें ब्राउन शर्ट नाजियों के हिंसक समूह को दिया गया नाम था जो 1930 के आसपास लोकतंत्र की ओर बढ़ रहे जर्मनी में विद्रोह को हवा दे रहा था।


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