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भीमा-कोरेगांव मामले में एनआइए की कार्रवाई में हो सकता है विलंब, जानें क्‍या है वजह

भीमा कोरेगांव मामले में केस ट्रांसफर होने के बाद भी राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) पूरी गोपनीयता बरत रही है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Sun, 26 Jan 2020 07:47 AM (IST)Updated: Sun, 26 Jan 2020 07:47 AM (IST)
भीमा-कोरेगांव मामले में एनआइए की कार्रवाई में हो सकता है विलंब, जानें क्‍या है वजह
भीमा-कोरेगांव मामले में एनआइए की कार्रवाई में हो सकता है विलंब, जानें क्‍या है वजह

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। भीमा कोरेगांव मामले में केस ट्रांसफर होने के बाद भी राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) पूरी गोपनीयता बरत रही है। एनआइए को आशंका है कि राजनीतिक रूप से संवेदनशील इस मुद्दे को अदालत में घसीटा जा सकता है। महाराष्ट्र सरकार के मंत्री समेत राकांपा सुप्रीमो शरद पवार के बयान से इस आशंका की पुष्टि होती है।

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एनआइए और गृह मंत्रालय ने चुप्‍पी साधी

दरअसल, मुंबई से तमाम दलों और उसके राजनेताओें की प्रतिक्रिया आने के बावजूद शुक्रवार को एनआइए और गृह मंत्रालय दोनों ने चुप्पी साध ली थी। शनिवार को भी गृह मंत्रालय ने सिर्फ केस एनआइए को ट्रांसफर होने की पुष्टि की, लेकिन एनआइए की चुप्पी बरकरार रही। उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार एनआइए और गृह मंत्रालय को आशंका है कि इस फैसले को अदालत में चुनौती दी जा सकती है। ऐसे में सरकार या एजेंसी की ओर से किसी भी आधिकारिक बयान का इस्तेमाल अदालत में किया जा सकता है। इसीलिए दोनों ने चुप रहना ही बेहतर समझा।

पीएम की हत्‍या की रची गई साजिश

दरअसल, एनआइए कानून के अनुसार एनआइए को आतंकी और नक्सलियों के खिलाफ जांच करने का अधिकार है। लेकिन भीमा कोरेगांव मामला सीधे तौर पर नक्सलियों से न जुड़ा होकर शहरी नक्सलियों से जुड़ा है जो सरकार के खिलाफ हिंसा की साजिश रच रहे थे। इस मामले में सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश की बात और वरिष्ठ नक्सली नेताओं से संपर्क की बात एनआइए की जांच के दायरे में आती है। लेकिन इसके लिए सुबूत के तौर पर सिर्फ कथित शहरी नक्सलियों के बीच ईमेल का आदान-प्रदान है। जाहिर है कि नक्सलियों से उनके संबंध को स्थापित करने के लिए बहुत काम करना बाकी है। एनआइए को जांच सौंपने के पीछे केंद्र सरकार की यही मंशा है। लेकिन इसके लिए एनआइए को पहले राजनीतिक प्रतिरोध के लिटमस टेस्ट से गुजरना होगा।


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