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एनजीटी ने पर्यावरण मंत्रालय को लगाई फटकार, पर्यावरण मंजूरी की शर्तों की निगरानी पर चर्चा

एक याचिका पर सुनवाई के दौरान एनजीटी प्रमुख न्यायमूर्ति एके गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि निगरानी की व्यवस्था खराब है।

By Shashank PandeyEdited By: Published: Sun, 02 Aug 2020 09:37 AM (IST)Updated: Sun, 02 Aug 2020 09:37 AM (IST)
एनजीटी ने पर्यावरण मंत्रालय को लगाई फटकार, पर्यावरण मंजूरी की शर्तों की निगरानी पर चर्चा
एनजीटी ने पर्यावरण मंत्रालय को लगाई फटकार, पर्यावरण मंजूरी की शर्तों की निगरानी पर चर्चा

नई दिल्ली, प्रेट्र। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने विभिन्न परियोजनाओं के लिए पर्यावरण मंजूरी से जुड़े नियमों के अनुपालन की अनदेखी पर वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को फटकार लगाई है। ट्रिब्यूनल का कहना है कि पर्यावरण संबंधी नियमों की निगरानी का तंत्र पर्याप्त नहीं है। पर्यावरण मंजूरी की शर्तो का पालन हो रहा है या नहीं, इसकी समय-समय पर निगरानी होनी चाहिए। ऐसा कम से कम तिमाही में एक बार अवश्य होना चाहिए। इस संबंध में एक याचिका पर सुनवाई के दौरान एनजीटी प्रमुख न्यायमूर्ति एके गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि निगरानी की व्यवस्था खराब है। शर्तें तय करने और उनके अनुपालन के बीच बहुत अंतर है।

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पीठ ने पर्यावरण मंत्रालय से निगरानी तंत्र की समीक्षा करने और इसे मजबूत करने को कहा। इस दौरान ट्रिब्यूनल ने निगरानी तंत्र मजबूत करने को लेकर विभिन्न प्रस्तावों पर मंत्रालय की ओर से पेश हलफनामे पर भी गौर किया। पीठ ने कहा, 'जमीनी स्तर पर प्रभावी ढंग से लागू किए बिना, मात्र ऐसे प्रस्ताव दिखाने वाली याचिकाओं को संतोषजनक नहीं कहा जा सकता। मंत्रालय के वकील का कहना है कि हलफनामा दाखिल करने के बाद से कई अर्थपूर्ण कदम उठाए गए हैं, लेकिन इन्हें रिकॉर्ड में दर्ज नहीं किया गया है। इस तरह के बयान को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। अगर सच में कदम उठाए गए हैं, तो सुनवाई के दौरान तो इनकी जानकारी पेश की जा सकती थी। मंत्रालय के इस रवैये पर हमें आपत्ति है।' मामले में अगली सुनवाई 17 दिसंबर को होगी।

बॉयलर विस्फोट विस्थापितों को मुआवजा देने का आदेश बरकरार रखा

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने गुजरात के भरूच जिले के दाहेज में बॉयलर विस्फोट के बाद विस्थापित हुए लोगों को मुआवजा देने के अपने आदेश को बरकरार रखा। ट्रिब्यूनल ने यशस्वी नारायण प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की ओर से आदेश की समीक्षा करने की मांग करते हुए दायर याचिका खारिज कर दी। आठ जून को ट्रिब्यूनल ने कंपनी पर 25 करोड़ का जुर्माना लगाते हुए हर विस्थापित को 25 हजार रुपये देने का आदेश दिया था।


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