एक ऑफर ने बदल दी दृष्टिहीन बांसुरी वादक की जिंदगी
दृष्टिहीन सलीम अंसारी शेख दादर रेलवे स्टेशन पर बांसुरी बजाकर अपना जीवनयापन करता है। उसके जीवन में अचानक तब बदलाव आया जब उसे विकलांगों को कला के जरिये आत्मनिर्भर वाले एक एनजीओ से बांसुरी बजाने का प्रस्ताव मिला। आज वो बेहद खुश हैं और इसी महीने 16 अगस्त को एक स्टेज शो भी करने जा रहा है। ईशान हिम्युनिट
मुंबई। दृष्टिहीन सलीम अंसारी शेख दादर रेलवे स्टेशन पर बांसुरी बजाकर अपना जीवनयापन करता है। उसके जीवन में अचानक तब बदलाव आया जब उसे विकलांगों को कला के जरिये आत्मनिर्भर वाले एक एनजीओ से बांसुरी बजाने का प्रस्ताव मिला। आज वो बेहद खुश हैं और इसी महीने 16 अगस्त को एक स्टेज शो भी करने जा रहा है।
ईशान हिम्युनिटी फाउंडेशन विकलांग व शारीरिक रूप से कमजोर व्यक्तियों के लिए 'मेलोडी मार्वल्स' कार्यक्रम चलाता है। सलीम अंसारी जैसी प्रतिभा को एनजीओ के संस्थापक अध्यक्ष नैना कुट्टप्पन ने ढूंढा।
उन्होंने बताया कि मैं दादर रेलवे स्टेशन पर थी। वहीं ब्रिज पर मैंने सलीम को बांसुरी बजाते हुए सुना। मैं वहां कुछ देर तक उसे सुनती रही और फिर उसके पास जाकर एक बार और बजाने को कहा। उसने फिर शानदार बजाया और मैंने देखा कि लोग उसकी बांसुरी को सुनकर स्वेच्छा से पैसे भी दे रहे थे। नैना ने कहा कि हमने सलीम जैसी पांच प्रतिभाओं को ढूंढा है। चार अन्य भी विकलांग हैं और गायन व नृत्य के फन में माहिर हैं।
फाउंडेशन के ट्रस्टी अब्राहम जॉन ने कहा कि हमने 16 अगस्त को रविंद्र नाट्य मंदिर में एक कार्यक्रम के जरिये इनकी कला को बढ़ावा देने का फैसला किया है। उन्होंने बताया कि हमने 100 से ज्यादा ऐसी प्रतिभाओं का ऑडिशन लिया, जिनमें से पांच को अंतिम रूप से इस कार्यक्रम के लिए चुना गया। उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम के बाद कोई भी एनजीओ से संपर्क कर अपने लिए कार्यक्रम करवा सकता है।
सलीम अंसारी शेख दादर रेलवे स्टेशन पर 2007 से ही बांसुरी बजाता रहा है। इस दौरान उसने कई समस्याओं का सामना किया लेकिन उसे लगता था कि ऊपरवाला उसके साथ है और उसे उसका हिस्सा वहां से मिल रहा है। शेख ने कहा कि अगर मुझे यहां से हटने को कहा जाता तो मैं न तो बांसुरी बजा पाता और न ही आगे बजा पाऊंगा। मैंने इसी ब्रिज पर अपना जीवनसाथी पाया और अगर में कमाकर अच्छी जिंदगी जी रहा हूं तो वो यही जगह है। 24 साल का शेख अपनी पत्नी और डेढ़ साल के बेटे के साथ कल्याण में रहता है।
सलीम शेख की शादी की कहानी भी बड़ी रोचक है। इसी जगह पर वो 2008 में बांसुरी बजा रहा था और तब उसके नजदीक एक लड़की आई उसने शादी का प्रस्ताव रखा। चार साल तक दोनों मिलते-जुलते रहे और फिर 2012 में दोनों ने शादी कर ली। शेख ने कहा कि मेरा जीवन दादर से जुड़ा है और अंतिम सांस तक मैं यह जगह नहीं छोड़ूंगा।
शेख ने बताया कि उसने कभी भीख नहीं मांगी और न ही ट्रेन में बांसुरी बजाया। इससे मेरी कला का अपमान होता। उसके पसंदीदा गायक मोहम्मद रफी है और उनके गाए गाने को बजाना उसे अच्छा लगता है। वह रोज 12 बजे से रात नौ बजे तक बांसुरी बजाता है और शनिवार को साढ़े दस बजे तक रुकता है। उसने कहा कि दो साल पहले दिवाली के समय एक व्यक्ति आया और कहा कि वह उसका बड़ा फैन और गिफ्ट के रूप में पांच हजार रुपये दिए।