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वैवाहिक दुष्कर्म के अपराधीकरण का विरोध, NGO ने किया सुप्रीम कोर्ट का रुख

NGO Marital Assault एक गैर सरकारी संगठन ने वैवाहिक दुष्कर्म के अपराधीकरण का विरोध करते हुए उच्चतम न्यायालय का रुख किया है। एनजीओ की तरफ से कहा गया है कि है ये कदम विवाह नाम की संस्था को अस्थिर कर देगा।

By Jagran NewsEdited By: Devshanker ChovdharyPublished: Sat, 21 Jan 2023 03:03 PM (IST)Updated: Sat, 21 Jan 2023 03:03 PM (IST)
वैवाहिक दुष्कर्म के अपराधीकरण का विरोध, NGO ने किया सुप्रीम कोर्ट का रुख
Supreme Court NGO Opposes Criminalisation of Marital Assault

नई दिल्ली, एजेंसी। NGO Opposes Criminalisation of Marital Assault: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने वैवाहिक दुष्कर्म (Marital Assault) को अपराध के दायरे में लाने की याचिकाओं पर बड़ा कदम उठाया है। वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध के दायरे में लाया जाए या नहीं, इस सवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब दाखिल करने को कहा है। इस बीच एक गैर सरकारी संगठन ने वैवाहिक दुष्कर्म के अपराधीकरण का विरोध करते हुए उच्चतम न्यायालय का रुख किया है। एनजीओ की तरफ से कहा गया है कि है ये कदम विवाह नाम की संस्था को अस्थिर कर देगा।

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NGO की तरफ से दायर की गई याचिका

एनजीओ पुरुष आयोग ट्रस्ट द्वारा अपनी अध्यक्ष बरखा त्रेहन के माध्यम से दायर याचिका में मैरिटल दुष्कर्म के अपराधीकरण और भारतीय दंड संहिता (IPC) प्रावधान से संबंधित याचिकाओं के एक बैच में अदालत के हस्तक्षेप की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत संविधान की मूल संरचना का एक हिस्सा है।

समाप्त हो सकता है विवाह

अधिवक्ता विवेक नारायण शर्मा के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि पिछले कुछ वर्षों में देश भर में ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं जहां पुरुषों ने महिलाओं द्वारा लगाए गए झूठे आरोपों के कारण आत्महत्या कर ली। याचिका में कहा गया है कि वैवाहिक दुष्कर्म के मामले से संबंधित किसी भी पर्याप्त सबूत के बिना विवाह समाप्त हो सकता है, रिश्ते खत्म हो सकते हैं। यदि जबरन संभोग का कोई सबूत है, तो पत्नी की गवाही के अलावा कोई अन्य प्राथमिक सबूत नहीं हो सकता है। ये आसानी से विवाह की संस्था को अस्थिर कर सकता है। याचिका में कहा गया है कि ऐसे बेशुमार मामले सामने आए हैं जिनमें विवाहित महिलाओं ने ऐसे प्रावधानों का दुरुपयोग किया है। ऐसे मामलों में यौन उत्पीड़न, 498ए और घरेलू हिंसा शामिल हैं।

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