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सात करोड़ साल पहले पूर्वजों से अलग हो गए थे यह मेंढक

मेंढक की यह प्रजाति वायनाड के कुचियारमाला चोटी के नाम से जानी जाती रही है जो वायनाड के घने जंगलों में पत्तियों के ढेर के नीचे रहती है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 14 Mar 2019 09:25 AM (IST)Updated: Thu, 14 Mar 2019 09:26 AM (IST)
सात करोड़ साल पहले पूर्वजों से अलग हो गए थे यह मेंढक
सात करोड़ साल पहले पूर्वजों से अलग हो गए थे यह मेंढक

नई दिल्ली, आइएसडब्ल्यू। भारतीय शोधकर्ताओं ने पश्चिमी घाट में मेंढक की एक नई प्रजाति का पता लगाया है। पीढ़ी दर पीढ़ी अनुवांशिक लक्षणों में होने वाले बदलावों और जैविक विकास के क्रम में मेंढक की यह प्रजाति करीब छह से सात करोड़ वर्ष पहले अपने पूर्वजों से अलग हो गई थी। मेंढक की इस प्रजाति को ऐस्ट्रोबैट्राकस कुरिचिआना नाम दिया गया है और इसे नए एस्ट्रोबैट्राकिने उप-परिवार के तहत रखा गया है। इस मेंढक के शरीर के दोनों किनारों पर मौजूद चमकदार धब्बे पाए जाते हैं, जिसे रेखांकित करने के लिए इस नई प्रजाति के नाम में एस्ट्रोबैट्राकस जोड़ा गया है। केरल के वायनाड में, जहां इस प्रजाति के नमूने पाए गए हैं, वहां के स्थानीय कुरिचिआ आदिवासियों के सम्मान में इसके नाम में कुरिचिआना शामिल किया गया है। मेंढक की यह प्रजाति वायनाड के कुचियारमाला चोटी के नाम से जानी जाती रही है, जो वायनाड के घने जंगलों में पत्तियों के ढेर के नीचे रहती है।

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यह अध्ययन भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु, जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, पुणे, फ्लोरिडा नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम एवं जॉर्ज वॉशिंगटन विश्वविद्यालय, अमेरिका के शोधकर्ताओं द्वारा संयुक्त रूप से किया गया है। पश्चिमी घाट में रेंगने वाले और उभयचर जीवों की विविधता को उजागर करने के लिए किए गए एक सर्वेक्षण में मेंढक की इस प्रजाति के नमूने पाए गए हैं।

बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान के सहायक प्रोफेसर कार्तिक शंकर और उनके शोधार्थी एसपी विजयकुमार द्वारा किए गए इस सर्वेक्षण में पश्चिम घाट के विभिन्न ऊंचाई वाले स्थानों, अलग-अलग वर्षा क्षेत्रों, विविध प्रकार के आवास में रहने वाले सरीसृप और उभयचर जीव शामिल थे। अध्ययनकर्ताओं में शामिल विजय कुमार ने बताया कि पश्चिमी घाट में पाए जाने वाले निक्टीबैट्राकिने और श्रीलंका के लैंकैनेक्टिने मेंढक इस नई प्रजाति के करीबी संबंधियों में शामिल हैं। निक्टीबैट्राकिने प्रजाति का संबंध निक्टीबैट्राकस वंश से है, जबकि लैंकैनेस्टिने मेंढक लैंकैनेक्टेस वंश से संबंधित है।

शोधकर्ताओं ने फ्लोरिडा म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री की ओपनवेर्टब्रेट परियोजना (ओवर्ट) के अंतर्गत उपलब्ध नमूनों का उपयोग करते हुए अन्य प्रजातियों के मेंढकों के कंकाल से नई प्रजाति की तुलना की है। मेंढक के रूप एवं आकार संबंधी तुलनात्मक विवरण जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की मदद से प्राप्त किए गए हैं। इसके अलावा, जॉर्ज वॉशिंगटन विश्वविद्यालय के मेंढकों के आनुवंशिक विश्लेषण के आंकड़ों के उपयोग् से नए मेंढक के संबंधियों की पहचान हुई।

दक्षिण अमेरिकी और अफ्रीका के मेंढकों की जैसी है संरचना

शोधकर्ताओं ने बताया कि नए वंश और नए उप-परिवार से संबंधित अज्ञात प्रजातियों की खोज दुर्लभ है। आणविक विश्लेषण से पता चला है कि इस नई प्रजाति के पूर्वज जैविक विकास के क्रम में लगभग 6-7 करोड़ साल पूर्व अलग हो गए थे। ऐस्ट्रोबैट्राकस मेंढक प्रायद्वीपीय भारत में पाया गया है, लेकिन इसके रूप एवं आकृति (विशेषकर त्रिकोणीय अंगुली और पैर की अंगुली की युक्तियां) दक्षिण अमेरिकी और अफ्रीका के मेंढकों जैसी दिखती है। प्रोफेसर कार्तिक शंकर ने बताया कि पश्चिमी घाट में मेंढक वंश के सबसे पुराने जीवित सदस्यों से जुड़ी यह एक दुर्लभ खोज है। प्रोफेसर शंकर और विजय कुमार के साथ शोधकर्ताओं में जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, पुणे के वैज्ञानिक केपी दिनेश, जॉर्ज वॉशिंगटन विश्वविद्यालय में जीव विज्ञान के एसोसिएट

प्रोफेसर आर अलेक्जेंडर पाइरॉन आदि शामिल थे।


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