वैज्ञानिकों का नया अध्ययन, गर्म पानी के जलाशयों में हुई जीवन की उत्पत्ति
वैज्ञानिकों का मानना है कि जीवन का आरंभ शायद प्राचीन द्वीपों पर गर्म पानी के जलाशयों में हुआ होगा। इस नए अध्ययन से पृथ्वी के प्रारंभिक भूगोल के गतिशील स्वरूप और जीवन उत्पत्ति पर उसके प्रभाव को समझने में मदद मिलेगी।
नई दिल्ली, मुकुल व्यास। पृथ्वी पर जीवन सबसे पहले कहां शुरू हुआ, यह आज भी एक बड़ी पहेली है। विज्ञानियों ने इस बारे में तरह-तरह के विचार रखे हैं। अब उनका एक नया अनुमान यह है कि जीवन का आरंभ प्राचीन द्वीपों पर गर्म पानी के जलाशयों में हुआ होगा। चाल्र्स डार्विन ने भी गर्म जलाशयों में जीवन की उत्पत्ति की संभावना व्यक्त की थी। येल यूनिवर्सटिी के भू-विज्ञानी जुन कोरेंगा और मेक्सिको के विज्ञानी जुआन कालरेस रोसास ने अपने एक नए अध्ययन में कहा है कि प्राचीन काल में पृथ्वी के समुद्रों में उभरने वाले द्वीपों ने प्रारंभिक जीवन के पनपने के लिए आवश्यक पर्यावरणीय परिस्थितियां निर्मित की थीं।
पृथ्वी पर प्राचीनतम जीवन साढ़े तीन अरब वर्ष पुराना है। पृथ्वी की उत्पत्ति इससे एक अरब वर्ष पहले हुई थी। संभावित जीवन के अवशेष 3.7 अरब और 3.9 अरब वर्ष पुरानी चट्टानों में भी मिले हैं। इन नमूनों पर विवाद है, लेकिन इनसे यह संकेत भी मिलता है कि पृथ्वी पर वायुमंडल और समुद्र बनने के तुरंत बाद जीवन विकसित हो गया था। हालांकि इस जीवन की उत्पत्ति पर भी विवाद है। पृथ्वी पर जीवन के निर्माण के लिए बुनियादी रासायनिक इकाइयों की जरूरत पड़ती है। इन्हें बिल्डिंग ब्लॉक मॉलिक्यूल्स भी कहा जाता है। ये एमिनो एसिड्स और न्यूक्लियोटाइड्स होते हैं। इनमें आपस में रासायनिक क्रिया के बाद प्रोटीन, आरएनए और डीएनए जैसे जटिल मॉलिक्यूल्स बनते हैं। पूरी प्रक्रिया के लिए उपयुक्त तापमान और परिस्थितियों की जरूरत होती है।
कुछ विज्ञानियों का मानना है कि पहला जीवाणु जीवन समुद्र तल के जल-तापीय छिद्रों में प्रकट हुआ था, क्योंकि वहां की रासायनिक परिस्थितियां पॉलिमराइजेशन को बढ़ावा देती हैं, लेकिन कुछ अन्य विज्ञानियों का कहना है कि समुद्र के भीतर के वातावरण और जल-तापीय छिद्रों की अत्यधिक उष्मा की वजह से पॉलिमराइजेशन की प्रक्रिया मुश्किल है। वैज्ञानिकों के इस समूह ने एक दूसरी अवधारणा रखी है। इस अवधारणा के अनुसार जीवन की उत्पत्ति छिछले जलाशयों के किनारों पर हुई। गर्म जलाशयों से जीवन उत्पत्ति की अवधारणा के सही होने के लिए प्रारंभिक पृथ्वी पर ठोस जमीन का होना जरूरी है। यदि ठोस जमीन नहीं है तो गर्म पानी के जलाशय कहां होंगे। प्रारंभिक पृथ्वी एक जल संसार थी। ऐसी दुनिया में छिछले जलाशयों के अस्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती, लेकिन कोरेंगा और रोसास ने अपनी अवधारणा के समर्थन में प्रमाण जुटाने के लिए चार अरब से लेकर ढाई अरब वर्ष पहले की पृथ्वी की विशेषताओं का अध्ययन किया। उनका कहना है कि पृथ्वी की पपड़ी (मैंटल) की आंतरिक उष्मा की वजह से समुद्र कई जगह छिछले हो गए और ज्वालामुखीय द्वीप और समुद्री पठार हजारों वर्षो तक समुद्र के स्तर से ऊपर बने रहे। ये स्थितियां जीवन के पनपने के लिए अनुकूल थीं।
(लेखक विज्ञान के जानकार हैं)