पेड़ और गाय बचाने के लिए नई पहल, लकड़ी के बजाय गोकाष्ठ से अंतिम संस्कार
पेड़ों को बचाने के लिए सरकार विद्युत शवदाह गृह बनवा रही है। लेकिन धार्मिक मान्यताओं के चलते लोग इनमें अंतिम संस्कार नहीं करते। ऐसे में गोकाष्ठ बेहतर विकल्प है।
जयपुर, जेएनएन। दाह संस्कार के लिए पेड़ की लकड़ी के बजाय गाय के गोबर से बनी लकड़ी (गोकाष्ठ) का इस्तेमाल करने की पहल इन दिनों जयपुर में की जा रही है। गोकाष्ठ से अब तक दो अंतिम संस्कार किए जा चुके हैं। गोकाष्ठ से दाह संस्कार करने पर 15 वर्ष की उम्र के दो पेड़ों को बचाया जा सकता है और इसे बेचकर मिली राशि से गायों के चारे की व्यवस्था हो सकती है। ऐसे में गोकाष्ठ के इस्तेमाल से पर्यावरण और गोरक्षा दोनों की जा सकती है।
जयपुर की श्री नारायणधाम गोशाला से जुड़े विष्णु अग्रवाल के मुताबिक, इंदौर में नईदुनिया की 'कंडों से ही होली दहन' के अभियान के बारे में पढ़ने के बाद विचार आया कि ऐसा यहां भी किया जा सकता है। अब हमने यह शुरू भी कर दिया है।
60 क्विंटल गोबर से 15 क्विंटल लकड़ी
यह गोशाला जयपुर के पास बगरू में संचालित है और गोसेवा परिवार समिति इसे संचालित करता है। यहां करीब छह हजार गाए हैं। यहीं गोकाष्ठ निर्माण के लिए मशीन लगाई गई है। एक लाख रुपए लागत की यह मशीन अहमदाबाद से मंगाई गई है। लकड़ी बनाने के लिए सिर्फ ताजे गोबर की जरूरत होती है। 60 क्विंटल गोबर से करीब 15 क्विंटल लकड़ी तैयार हो जाती है। इस तरह एक गोकाष्ठ की लागत करीब 10-11 रपए प्रति किलो पड़ती है।
गोबर के उपलों के इस्तेमाल से आया विचार
अग्रवाल बताते हैं कि नागपुर में गाय के उपलों से अंतिम संस्कार किए जाते हैं। वहां करीब चार हजार अंतिम संस्कार उपलों से किए जा चुके हैं। ऐसे में जब पता चला कि गोबर से लकड़ी बनाने की मशीनें बाजार में उपलब्ध हैं और अहमदाबाद, दिल्ली, हरियाणा में मिलती हैं। तब हमने अहमदाबाद संपर्क किया और मशीन मंगवाई।
ऐसे काम करती है मशीन
मशीन में ताजा गोबर डाला जाता है। मशीन के साथ लकड़ी का आकार देने की डाई लगी है, जिससे यह गोबर लकड़ी के टुकड़ों के आकार में बाहर आता है। इसे पांच-छह दिन सुखाया जाता है। इस प्रक्रिया में इसका पानी उड़ जाता है और यह कठोर होकर लकड़ी के रूप में तैयार हो जाता है।
एक अंत्येष्टि में लगती है 500 किलो लकड़ी, गोकाष्ठ का प्रयोग हो तो 300 किलो में होगा काम
अग्रवाल के मुताबिक, एक अंतिम संस्कार में करीब 500 किलो लकड़ी की जरूरत पड़ती है। इसके लिए दो बड़े पेड़ काटने पड़ते है और करीब चार हजार रुपए खर्च करने पड़ते हैं। वहीं गोकाष्ठ का प्रयोग किया जाए तो 300 किलो गोकाष्ठ में ही काम हो जाता है। ऐसे में पैसा तो लगभग बराबर खर्च होता है, लेकिन पेड़ों को काटने की जरूरत नहीं पड़ती और जो पैसा आप देते हैं, उससे करीब 40 गायों के लिए चारे की व्यवस्था हो जाती है। गोबर के जलने से हानिकारक गैसें भी नहीं निकलतीं।
जनता में बढ़ रही है रुचि
पेड़ों को बचाने के लिए सरकार विद्युत शवदाह गृह बनवा रही है। जयपुर में भी यह सुविधा उपलब्ध है, लेकिन धार्मिक मान्यताओं के चलते लोग इनमें अंतिम संस्कार नहीं करते। ऐसे में गोकाष्ठ बेहतर विकल्प हो सकता है। अग्रवाल ने बताया कि हमने अब तक दो अंतिम संस्कार गोकाष्ठ से कराए हैं। लोगों को जैसे-जैसे पता चल रहा है, पूछताछ करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। हम भी श्मशानों में लकड़ी बेचने वालों को गोकाष्ठ बेचने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। अपनी अन्य गोशालाओं में भी हम इसकी मशीनें लगवा रहे हैं। सरकार सहयोग करे और सभी गोशालाओं में ऐसी मशीनें लगाने में सहयोग करे तो यह काम आगे बढ़ सकता है।
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