सामने आ रहे अंतरिक्ष पर्यटन के नए आयाम, भविष्य में रकम चुकाकर लोग कर सकते हैं अंतरिक्ष की सैर
रिचर्ड ब्रैंसन अपनी कंपनी वजिर्न गैलेक्टिक के पांच अन्य कर्मचारियों के साथ रॉकेट में बैठकर न्यू मैक्सिको के ऊपर लगभग 80 किमी ऊंचाई तक अंतरिक्ष की सैर करके आए। आज की तारीख में दुनिया की दो कंपनियां इस मामले में आगे आई हैं।
डॉ. संजय वर्मा। अंतरिक्ष में सैर करने की इंसान की पुरानी हसरत रही है। हालिया चर्चित अंतरिक्ष यात्र से हमारा एक जुड़ाव भारतीय मूल की शिरीषा बांदला के जरिये भी होता है जो इस यात्र पर गई थीं। कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स के बाद वह तीसरी महिला हैं, जिन्होंने यह उपलब्धि हासिल की है। रिचर्ड ब्रैंसन की हालिया यात्र के एक साक्षी थे स्पेस एक्स कंपनी के मालिक एलन मस्क, जो इसी तरह की यात्रओं के आयोजन की तैयारी कर रहे हैं। साथ ही, उनके अभियान पर एक निगाह दुनिया के मशहूर कारोबारी जेफ बेजोस की भी रही, जो चंद दिनों बाद (20 जुलाई को) ऐसी ही यात्र पर निकलने वाले हैं। अंतरिक्ष पर्यटन को लेकर इस कोरोना काल में नई सनसनी पैदा हो गई है। खास तौर से अरबपति अमीरों की ऐसी लंबी लिस्ट तैयार बताई जा रही है, जो आने वाले वक्त में अंतरिक्ष कही जाने वाली सरहद को छूकर लौटना चाहते हैं।
पर यहां कई सवाल हैं। जैसे निजी तौर पर पैसे खर्च करके अंतरिक्ष कही जाने वाली सीमा तक पहुंचने का मतलब क्या है। आखिर क्यों कुछ लोग ऐसा करना चाहते हैं। अगर इसमें कमाई की संभावना है, तो यह काम सरकारी स्पेस एजेंसियां क्यों नहीं कर रही हैं। क्या इसमें खतरे वाकई में इतने कम हो गए हैं कि जो व्यक्ति चाहे, विमान यात्र की तरह अंतरिक्ष की सैर पर निकल सकता है। असल में इस यात्र में अत्यधिक खतरों, खर्च और यात्रियों के कौशल के अलावा इन्हें संपन्न कराने वाले संगठनों की विशेषज्ञता का इतना ज्यादा महत्व रहा है कि प्राइवेट एजेंसियां प्राय: इसमें हाथ डालने से बचती रही हैं। ऐसे ज्यादातर कारनामे सरकारी स्पेस एजेंसियां ही कर सकीं। जैसे अब से करीब 20 साल पहले 28 अप्रैल, 2001 को स्पेस कंपनी ‘स्पेस एडवेंचर’ ने रूस की मदद से अमेरिकी पर्यटक डेनिस टीटो को रूसी रॉकेट सोयूज टीएम-32 और आइएसएस ईपी-1 नामक यान से अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन पहुंचाया था। टीटो दुनिया के ऐसे पहले टूरिस्ट बने थे, जिन्होंने पैसे खर्च करके अंतरिक्ष की यात्र की थी।
सैर की भारी कीमत : अभी भी अंतरिक्ष की सैर इतनी सस्ती नहीं हुई है कि कोई शख्स किसी विमान यात्र जितने खर्च में अंतरिक्ष का भ्रमण कर ले। लेकिन अब इस यात्र का आनंद लेने वाले अमीरों की दुनिया में कमी नहीं है। वे इसके लिए अच्छी खासी रकम चुका सकते हैं। यही वजह है कि वर्जनि गैलेक्टिक, ब्लू ओरिजन, स्पेसएक्स जैसी प्राइवेट कंपनियां इस क्षेत्र में उतरकर भारी कमाई करना चाहती हैं। ब्रैंसन के मालिकाना हक वाली कंपनी वर्जनि गैलेक्टिक ने हाल में कहा है कि दो टेस्ट फ्लाइट्स के बाद अगले साल वह अंतरिक्ष की व्यावसायिक उड़ानें शुरू करेगी। इसके लिए उसने भी 600 लोगों से प्रति सीट ढाई लाख अमेरिकी डॉलर लेकर बुकिंग कर रखी है। उम्मीद की जा रही है कि टिकट की लागत जल्द ही घटकर 40 हजार डॉलर हो सकती है, जिससे अंतरिक्ष की सैर और सुहावनी हो जाएगी। जहां तक स्पेस की सैर से कमाई का सवाल है तो स्विट्जरलैंड के एक बैंक का अनुमान है कि 2030 तक अंतरिक्ष पर्यटन का बाजार तीन अरब डॉलर से ज्यादा का हो जाएगा।
निजी बनाम सरकारी : हाल के वर्षो में अंतरिक्ष यात्रओं के आंगन में निजी स्पेस एजेंसियों का दखल तेजी से बढ़ा है। अंतरिक्ष की निजी यात्रओं से ज्यादा इनका उद्देश्य विज्ञान-सम्मत था। पिछले ही साल ऐसे दो मौके आए, जब अमेरिका की प्राइवेट स्पेस एजेंसी स्पेसएक्स ने अपने रॉकेटों की मदद से अमेरिका और जापान के विज्ञानियों को अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (आइएसएस) तक सफलता से पहुंचाया। स्पेसएक्स ने ऐसा पहला अभियान 30 मई, 2020 को संचालित किया था जो सफल रहा था। उस यात्र में फॉल्कन-9 रॉकेट से ड्रैगन कैप्सूल को कैनेडी स्पेस सेंटर से प्रक्षेपित किया गया था। आइएसएस के लिए स्पेसएक्स की यह पहली निजी और सफल उड़ान 19 घंटे की रही थी। इस यात्र में दो अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री रॉबर्ट बेनकेन और डगलस हर्ले शामिल थे। ये दोनों चार महीने तक आइएसएस पर रहे थे। यह उड़ान भी सफल रही और प्रक्षेपण के बाद 27.5 घंटे की उड़ान के बाद यान अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन जा पहुंचा। इन दोनों अभियानों से विज्ञानियों को अंतरिक्ष में ले जाया गया गया था, लेकिन इन्हीं से यह उम्मीद जगी कि अब निजी स्पेस कंपनियां जल्द ही आम लोगों को भी अंतरिक्ष की सैर करने का अवसर दे सकेंगी।
लेकिन यहां सवाल यह है कि आखिर खुद नासा या कोई अन्य सरकारी स्पेस एजेंसी अपने अंतरिक्ष अभियानों के लिए निजी स्पेस एजेंसियों की सेवाएं क्यों लेने लगी है। नासा ने स्पेसएक्स के अलावा एक अन्य विमानन कंपनी बोइंग से वर्ष 2014 में इसका करार किया था कि भविष्य में यही कंपनियां उसके अंतरिक्ष विज्ञानियों को आइएसएस पर भेजने और वहां से वापस लाने का काम करेंगी और इसके बदले उन्हें एक निश्चित रकम दी जाएगी। हुआ यह है कि 21वीं सदी की शुरुआत में ही नासा ने अंतरिक्ष परिवहन के बढ़ते खर्च को देखते हुए अंतरिक्ष यात्रियों को स्पेस में भेजने के काम से खुद को अलग करने की योजना तैयार कर ली थी। इसके बाद वर्ष 2003 में जब आइएसएस से लौटते वक्त उसका यान कोलंबिया शटल दुर्घटनाग्रस्त हो गया (इसी हादसे में कल्पना चावला का निधन हो गया था) तो आइएसएस की शटल सेवाओं के लिए उसने खुद को पूरी तरह हटाने का फैसला कर लिया। इसके बाद वर्ष 2011 से वह इसके लिए पूरी तरह से रूस के रॉकेट सोयूज पर निर्भर हो गई। रूसी स्पेस एजेंसी इसके बदले में नासा से काफी मोटी रकम लेती रही है।
अनुमान है कि नासा इसके काम के लिए यानी अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आइएसएस) पर क्रू की आवाजाही के लिए उसे प्रति सीट नौ करोड़ डॉलर की भारी-भरकम रकम चुकाती रही है। हालांकि यहां यह सवाल भी उठ रहा है कि यदि निजी एजेंसियां स्पेस ट्रैवल का काम अपने हाथ में लेंगी तो कहीं इससे यात्रियों की सुरक्षा खतरे में न पड़ जाए। अंतरिक्ष यात्रओं के अतीत को देखते हुए कहा जा सकता है कि इस तरह की यात्रओं में बड़ा जोखिम रहता है। पहले चैलेंजर और बाद में कोलंबिया, इन दो स्पेस शटलों की दुर्घटनाओं ने साबित किया है कि यात्रियों को अंतरिक्ष में ले जाने से ज्यादा बड़ा खतरा पृथ्वी पर वापसी में रहता है। लेकिन अंतरिक्ष यात्रओं संबंधी तकनीक में हुए सुधार और उसकी उपलब्धता ने इन खतरों को काफी कम कर दिया है। यही वजह है कि नासा जैसा संगठन अब करीबी अंतरिक्ष की यात्रओं के लिए निजी कंपनियों पर अपनी निर्भरता बढ़ा रहा है।
अधिक ऊंचाई पर आसान नहीं होता उड़ान भरना : पृथ्वी पर रहते हुए भी हम बह्मांड और अंतरिक्ष का हिस्सा हैं। इसलिए खुद को अंतरिक्षवासी भी कह सकते हैं, लेकिन पृथ्वीवासियों की नजर से यह अंतरिक्ष वहां शुरू होता है, जहां से पृथ्वी के वायुमंडल और उसके गुरुत्वाकर्षण का दायरा खत्म होता है। ऐसी जगह पर जाकर वायु के दबाव और हवा की परतों में ऐसा अंतर आ जाता है कि विमानों की स्वाभाविक उड़ान संभव नहीं हो पाती। इस जगह को एक प्रतीकात्मक सीमा ‘कैरमन लाइन’ कहकर संबोधित किया जाता है। यह जगह पृथ्वी की सतह से करीब 100 किमी ऊपर है। अभी ज्यादातर स्पेस एजेंसियां पर्यटकों को इसी ऊंचाई तक ले जाने के अभियानों पर काम कर रही हैं। इस ऊंचाई पर जाकर अंतरिक्ष पर्यटक भारहीनता (जीरो ग्रैविटी) का अनुभव कर सकेंगे। साथ ही, अंतरिक्ष से हमारी पृथ्वी कैसी दिखती है, वह देख सकेंगे। ऐसे कल्पनातीत नजारों के दर्शन कर सकेंगे, जो उन्होंने पहले कभी नहीं देखे होंगे।
आसान नहीं अंतरिक्ष यात्री बनना : बात चाहे विज्ञानियों को अंतरिक्ष में भेजने की हो या किसी पर्यटक को, यह काम बेहद मुश्किल है। ऐसे कई खतरे हैं जिनका सामना पूरी ट्रेनिंग के बाद भी अंतरिक्ष यात्रियों को करना पड़ता है। उनका सामना गहन अंतरिक्ष से आने वाली कॉस्मिक किरणों से हो सकता है। भारहीनता के दौरान उनके रक्तचाप में भी भारी उलटफेर हो सकता है। शायद यही वजह है कि अंतरिक्ष की यात्र के लिए या तो विमान पायलटों को चुना जाता है या फिर उन्हें इसकी कड़ी ट्रेनिंग दी जाती है। सोवियत संघ (आज के रूस) और अमेरिका ने अपने ज्यादातर अंतरिक्ष अभियानों के लिए एयरफोर्स पायलटों का ही चुनाव किया है।
अंतरिक्ष में हमें पृथ्वी की तरह न तो आक्सीजन मिल पाती है और न ही संतुलित वायुदाब। सिलेंडर से मिलने वाली आक्सीजन के अलावा खतरनाक कॉस्मिक किरणों का मुकाबला अंतरिक्ष यात्रियों को करना पड़ता है। इससे शरीर कमजोर होता है, आंखों की रोशनी पर असर पड़ता है और बीमारियों से लड़ने की शक्ति खत्म हो जाती है। अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण नहीं होता और यात्रियों को भारहीनता (गुरुत्वहीनता) की स्थिति में रहना पड़ता है, इससे पैरों का काम खत्म हो जाता है। लिहाजा लंबा वक्त स्पेस में गुजारने वाले अंतरिक्ष यात्रियों के पांव कमजोर हो जाते हैं। उन्हें वापस लौटने पर सामान्य होने में महीनों लग जाते हैं।
अंतरिक्ष अभियानों को अनेक दुर्घटनाओं के लिए भी याद रखा जाता है। चैलेंजर स्पेस शटल और कोलंबिया स्पेस शटल के हादसे तो इस मामले में एक बड़ी नजीर हैं। वर्जनि गैलेक्टिक का स्पेसशिप अक्टूबर, 2014 में अपनी परीक्षण उड़ान के दौरान ध्वस्त हो गया था। इससे वर्जनि गैलेक्टिक के अभियान को भारी धक्का लगा था। उस दौरान वर्जनि के स्पेसशिप से अंतरिक्ष यात्र का आनंद लेने के लिए ब्रैड पिट और केटी पैरी जैसी हॉलीवुड की हस्तियों ने अपनी सीटें बुक की थीं, लेकिन टेस्ट फ्लाइट की दुर्घटना ने उनके सपने पर विराम लगा दिया। यही वजह है कि ऐसी कंपनियां अंतरिक्ष के पर्यटकों की सौ फीसद सुरक्षा की गारंटी नहीं ले पा रही हैं। हालांकि उन्होंने यात्रियों की सुरक्षा के कुछ उपाय अपनाना अवश्य शुरू कर दिया है। जैसे वर्जनि ग्रुप ने अपने यान में एक ऐसा ग्लाइड-स्लोप सिस्टम अपनाने की बात कही है जो यान के खराब होने की दशा में यात्रियों को सुरक्षित धरती पर वापस ला सकता है। इसी तरह कॉस्मोकर्स नामक स्पेस कंपनी ने अपने यात्रियों को ले जाने वाले रॉकेट और वापसी के कैप्सूल में एक पैराशूट सिस्टम लगाने की बात कही है।
[असिस्टेंट प्रोफेसर, बेनेट यूनिवर्सिटी, ग्रेटर नोएडा]