नवजात आप ने दिखा दी बुजुर्ग कांग्रेस, भाजपा को अपनी अहमियत
नई दिल्ली [पवन कुमार]। नवजात बच्चे सरीखी एक वर्षीय आम आदमी पार्टी के वर्चस्व को मतदान से पूर्व कांग्रेस व भाजपा स्वीकार करने को कतई राजी नहीं थी। दोनों पार्टियां आपस में टक्कर मान रही थी और आप को उन्होंने हलके में लिया। मगर, मतदान के दिन इस नवजात पार्टी के प्रति लोगों का रूझान देखकर अब कांग्रेस व भाजपा दोनों के नेताओं की ध
नई दिल्ली [पवन कुमार]। नवजात बच्चे सरीखी एक वर्षीय आम आदमी पार्टी के वर्चस्व को मतदान से पूर्व कांग्रेस व भाजपा स्वीकार करने को कतई राजी नहीं थी। दोनों पार्टियां आपस में टक्कर मान रही थी और आप को उन्होंने हलके में लिया। मगर, मतदान के दिन इस नवजात पार्टी के प्रति लोगों का रूझान देखकर अब कांग्रेस व भाजपा दोनों के नेताओं की धड़कनें बढ़ गई हैं। नवजात पार्टी ने चुनाव में बुजुर्ग पािर्टयों को अपनी अहमियत दिखा दी है।
दोनों ही दलों के नेता अपनी हार या जीत के आंकलन का अनुमान अब इस बात से लगा रहे हैं कि आप ने उन्हें अधिक नुकसान पहुंचाया या उनके विरोधी दल को। इस बार विधानसभा चुनाव के नतीजे जो भी हो, मगर यह कहना गलत न होगा कि आप उन नतीजों के पीछे का एक अहम कारण होगी।
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अब कांग्रेस व भाजपा के नेता मतदान प्रक्रिया समाप्त होने के बाद यह मानने लगे हैं कि इस बार जो रिकार्ड तोड़ मतदान दिल्ली विधानसभा चुनाव में हुआ है, उसके पीछे कहीं न कहीं आम आदमी पार्टी के प्रति लोगों का रूझान भी है। एक कट्टर कांग्रेसी समर्थक ने एक चर्चा के दौरान कहा कि वह मतदान केंद्र में वोट डालने गया तो पता नहीं उसके मन में क्या आया कि उसे लगा कि एक बार आम आदमी पार्टी को ट्राई करके देखते हैं। यह सोच उसने आम आदमी पार्टी को वोट दे दिया।
वहीं, एक भाजपा समर्थक का कहना था कि उसने भाजपा को वोट दिया है, मगर उसकी पत्नी व बेटे ने आम आदमी पार्टी को अपना वोट दिया है। लोगों का यह व्यवहार और सोच कहीं न कहीं यह दर्शा रहा है कि आम आदमी पार्टी ने लोगों पर किस कदर अपनी छाप छोड़ी है। इतना ही नहीं, मतदान के दिन जिस रणनीति के साथ बिना चुनाव चिन्ह का प्रयोग किए केवल सादी टोपी पहन कर आप समर्थकों ने मतदान केंद्रों पर अपनी उपस्थिति दिखाई, वह देखते ही बनती थी।
दिल्ली में जिन विधानसभाओं में कांग्रेस व भाजपा के उम्मीदवारों के बीच कांटे की टक्कर रही है। उस क्षेत्र के उम्मीदवार इस बात का आंकलन करने में जुटे हैं कि आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार ने उन्हें कितना नुकसान पहुंचाया और उनके विरोधी को कितना? इसी के जरिये ज्यादातर अपनी हार व जीत का अनुमान भी लगा रहे हैं। कारण चाहे जो भी हो, मगर यह कहना गलत न होगा कि एक वर्ष की उम्र में आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की राजनीति में अपनी ऐसी छाप छोड़ दी है जो बड़ी से बड़ी पार्टी सालों तक नहीं कर पाई।
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