कार्बन की कीमत का निर्धारण ही भारत के नेट-जीरो लक्ष्यों को पाने की मूल रणनीति होगी
Net Zero Emission भारत में नेशनल कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम को बनाने का प्रस्ताव बहुत अच्छी पहल है। कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम यह सुनिश्चित करती है कि कार्बन उत्सर्जन उस लक्षित स्तर तक सीमित रहे जिसे समाज और सरकार जरूरी समझते हैं।
डा. वैभव चतुर्वेदी। ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 में संशोधन के लिए विधेयक लोकसभा से पारित हो गया है। इसका उद्देश्य भारत के लिए एक कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम को तैयार करना है। इसे कार्बन इमीशन ट्रेडिंग स्कीम (ईटीएस) भी कहते हैं। निश्चित तौर पर यह भारत की जलवायु नीति के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। इस संशोधन विधेयक के विभिन्न प्रभावों को समझने के लिए ईटीएस के कुछ प्रमुख बिंदुओं को जानना जरूरी है। सबसे पहले कार्बन की कीमत निर्धारण के विचार पर आते हैं। अगर यह कहें कि जीवाश्म ईंधन (कोयला, डीजल इत्यादि) के इस्तेमाल से पांच टन कार्बन उत्सर्जन होता है और कार्बन की कीमत 100 रुपये प्रति टन है तो इस जीवाश्म ईंधन के उपयोगकर्ता को 500 रुपये की अतिरिक्त लागत का भुगतान करना पड़ेगा। इस तरह से कार्बन की कीमत तय करने से जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल खर्चीला हो जाता है, जो अंत में इसके उपयोग को हतोत्साहित करता है।
कार्बन मूल्य निर्धारण का विचार ईटीएस का एक प्रमुख बिंदु है, लेकिन कार्बन मूल्य तय करने का एक और तरीका है। सरकार कार्बन पर टैक्स भी लगा सकती है। मगर कार्बन टैक्स की तुलना में ईटीएस एक मायने में ज्यादा लाभकारी है। ईटीएस यह सुनिश्चित करता है कि कार्बन उत्सर्जन उस लक्षित स्तर तक सीमित रहे, जिसे समाज और सरकार जरूरी समझते हैं। अब सवाल आता है कि ईटीएस ऐसा कैसे कर सकता है?
ईटीएस उन संस्थाओं की ओर से उत्सर्जित कुल कार्बन को विनियमित करता है, जो उसके दायरे में आते हैं। यानी अगर यह कहें कि ईटीएस में बिजली, स्टील और सीमेंट क्षेत्र शामिल हैं तो इन तीनों क्षेत्रों को मिलाकर कुल उत्सर्जन पर एक सीमा लगाई जा सकती है। और इन क्षेत्रों की सभी कंपनियों को सामूहिक रूप से अपना कार्बन उत्सर्जन इस सीमा में रखना होगा। इसीलिए ईटीएस को सीमा और व्यापार प्रणाली के तौर पर भी जाना जाता है। ईटीएस में शामिल कंपनियों को कार्बन उत्सर्जन के परमिट को खरीदना होता है। साथ में यह भी सुनिश्चित करना होता है कि उनका कार्बन उत्सर्जन उनके परमिट के बराबर ही रहे।
ईटीएस में शामिल कंपनियों को अपने परमिट की आपस में खरीदने-बेचने की छूट होगी। हालांकि यह इस पर निर्भर करेगा कि लक्षित वर्ष में उन्हें अपने यहां उत्सर्जन में कटौती करना कितना महंगा या सस्ता पड़ता है। यह पूरी प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि सरकार कैसे संपूर्ण कार्बन उत्सर्जन को एक वांछित स्तर तक सीमित कर सकती है। वहीं कार्बन टैक्स के माध्यम से यह लक्ष्य हासिल करना व्यावहारिक रूप से असंभव होता है। ईटीएस के भीतर कार्बन की कीमत का निर्धारण कार्बन उत्सर्जन के परमिट की मांग और आपूर्ति पर निर्भर करता है। कार्बन की उचित कीमत खोजने की प्रक्रिया में दो प्रमुख कारक-ईटीएस द्वारा विनियमित कंपनियां और वित्तीय संस्थान शामिल होते हैं। ये एकसाथ उचित कीमत की खोज को सुनिश्चित करते हैं, ताकि सामूहिक रूप से कुल उत्सर्जन सीमा के लक्ष्य को कम से कम खर्च पर हासिल किया जा सके। सवाल है कि क्या ईटीएस के तहत संचालित कार्बन की कीमत कंपनियों की उत्पादन लागत पर असर डालती है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा में नुकसान या घरेलू अर्थव्यवस्था में महंगाई की वजह बनती है? इस पर विचार करना बहुत ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि यही वास्तविक चुनौती भी हो सकती है।
खास तौर पर व्यापार-उन्मुख क्षेत्रों के साथ-साथ बिजली उत्पादन क्षेत्र के लिए। हालांकि अगले एक दशक में इसके संभावित नकारात्मक प्रभाव सामने नहीं आएंगे, क्योंकि इस दौरान यह प्रणाली परिपक्व होने की प्रक्रिया में होगी। किसी भी सूरत में अगर कार्बन की कीमत कम रहती है या उत्सर्जन की सीमा सख्त नहीं रहती है तो इसका प्रभाव नगण्य होगा, लेकिन 2035 के बाद संभावित रूप से लगने वाली कठोर कार्बन सीमा और उच्च कार्बन मूल्य के प्रभावों को समझने के लिए शोध करने की जरूरत है, ताकि भारत का व्यावसायिक क्षेत्र इनसे निपटने के लिए पहले से ही बेहतर ढंग से तैयार हो सके। यह भी उल्लेख करना जरूरी है कि यूरोपीय संघ ने पहले से ही एक बार्डर कार्बन एडजस्टमेंट टैक्स (कार्बन मूल्य का ही एक अन्य रूप) लगाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, जिसका बहुत जल्द भारत के कार्बन उत्सर्जन की गहनता वाले निर्यात जैसे-स्टील, सीमेंट, फर्टिलाइजर इत्यादि पर असर पड़ने की आशंका है। बिजली क्षेत्र में कार्बन की कीमत बिजली की कीमत पर असर डाल सकती है और इस पहलू को विद्युत नियामकों को बेहतर ढंग से समझना होगा।
कुल मिलाकर भारत में नेशनल कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम को बनाने का प्रस्ताव बहुत अच्छी पहल है। अब यह स्पष्ट हो चुका है कि ईटीएस के माध्यम से कार्बन की कीमत का निर्धारण ही भारत के लघु, मध्यम और दीर्घकालिक नेट-जीरो लक्ष्यों को पाने की मूल रणनीति होगी। निश्चित रूप से यह कदम कार्बन उत्सर्जन को घटाने और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कार्रवाई में पहले से स्थापित भारत के नेतृत्व को और ज्यादा सशक्त करने के सरकार के संकल्प को दर्शाता है।
[फेलो, काउंसिल आन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर]