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देश में सड़क सुरक्षा नियमों में फुटपाथ की अनदेखी

लंबे अरसे बाद केंद्र सरकार ने सड़क के डिजाइन को तो सड़क सुरक्षा के अभिन्न अंग के तौर पर मान्यता दे दी है।

By Manish NegiEdited By: Published: Wed, 22 Nov 2017 08:23 PM (IST)Updated: Wed, 22 Nov 2017 08:23 PM (IST)
देश में सड़क सुरक्षा नियमों में फुटपाथ की अनदेखी
देश में सड़क सुरक्षा नियमों में फुटपाथ की अनदेखी

संजय सिंह, नई दिल्ली। भारत में सड़क सुरक्षा संबंधी नियम-कानूनों में भी फुटपाथ की अनदेखी की गई है। लंबे अरसे बाद केंद्र सरकार ने सड़क के डिजाइन को तो सड़क सुरक्षा के अभिन्न अंग के तौर पर मान्यता दे दी है। लेकिन फुटपाथ के महत्व की उपेक्षा जारी जारी है।

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इसका कारण यह है कि हम सड़क दुर्घटनाओं का सारा दोष वाहन चालकों पर मढ़ने की प्रवृत्ति से अभी भी उबरे नहीं हैं। यही वजह है कि जब हमारा ध्यान अच्छी सड़के बनाने पर गया तो अच्छे फुटपाथ बनाना भूल गए। जो फुटपाथ हमने कभी बनाए भी थे उन्हें अतिक्रमण से बचाने की कोई जरूरत हमने नहीं समझी। जबकि यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत तथ्य है कि फुटपाथविहीन सड़कें पैदल यात्रियों के साथ-साथ वाहन चालकों के लिए भी मुश्किलें खड़ी करती हैं। इसलिए जहां अच्छे फुटपाथ नहीं हैं वहां इंटेलीजेंट ट्रैफिक सिस्टम जैसी आधुनिक प्रणालियों से भी यातायात में सुधार नहीं होता।

फुटपाथ यानी सुव्यवस्थित यातायात

विदेशों से लौटने वाले भारतीय अक्सर वहां की साफ-सुथरी सड़कों और व्यवस्थित यातायात की तारीफ करते हैं। परंतु ऐसा क्यों है ये बात उनकी समझ में नहीं आती। जबकि इसकी एकमात्र वजह वहां के चौड़े और शानदार फुटपाथ हैं जिन पर चलना सुखद होता है। फिर वहां वाहन चालकों से ज्यादा पैदल चलने वालों की इज्जत है। कोई व्यक्ति सड़क पार कर रहा हो तो मजाल है कि गाडि़यां न रुकें।

वैसे तो अब अपने यहां भी अंतरराष्ट्रीय स्तर की सड़कें बन रही हैं। लेकिन ये प्राय: राजमार्गों तक सीमित है। शहरी सड़कों की हालत कमोबेश जस की तस है। इसका कारण सड़कों के साथ फुटपाथ का न होना अथवा अतिक्रमणग्रस्त और खस्ता हालत में होना है। फुटपाथ के बगैर अच्छी खासी सड़कें भी भद्दी और भोंड़ी दिखाई देती हैं। अपने यहां छोटे शहरों की तो छोडि़ए, दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में भी ज्यादातर सड़कों पर फुटपाथ दिखाई नहीं देते है।

फुटपाथ विहीन सड़कें जानलेवा

फुटपाथ न होने या घटिया होने के कारण हर साल सैकड़ों निर्दोष लोगों को जान से हाथ धोना पड़ता है। इनमें पैदल यात्री और दुपहिया चालक दोनों शामिल हैं। वर्ष 2016 में 15,785 पैदल यात्री सड़क हादसों का शिकार हो मारे गए थे। इस संदर्भ में सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की 2016 की दुर्घटना रिपोर्ट में महत्वपूर्ण टिप्पणी की गई है। इसमें कहा गया है, ''आधुनिक सड़क प्रणालियों का डिजाइन ऐसा है कि हमेशा सड़क पर चलने वालों के दुर्घटनाग्रस्त होने का खतरा बना रहता है। फुटपाथ और साइकिल ट्रैक का अभाव दुर्घटनाओं के जोखिम और गंभीरता को बढ़ाने का काम करता है।''

अध्यायनों से इस बात की पुष्टि हुई है कि यदि अच्छे फुटपाथ हों तो पैदल यात्री सड़क के बजाय फुटपाथ पर चलना पसंद करते हैं। फुटपाथ न होने या असुविधाजनक होने की स्थिति में ही वे सड़क पर चलते हैं। उनकी इस मजबूरी से यातायात प्रभावित होने के साथ-साथ दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ता है। शहरों में होने वाली सड़क दुर्घटनाओं और मौतों के पीछे यह भी एक वजह है। सड़क मंत्रालय की दुर्घटना रिपोर्ट के अनुसार, ''पैदल यात्रियों के सड़क पर चलने के कारण 2016 में 8,298 सड़क दुर्घटनाएं हुई। इनमें से 1,289 दुर्घटनाओं का कारण सड़क तथा फुटपाथ का त्रुटिपूर्ण डिजाइन एवं खराबी थी। वर्ष के दौरान सड़क हादसों में 52,500 दुपहिया चालकों की मौत हुई। इनमें से कई मौतों का कारण सड़क पर चलने वाले पैदल यात्री थे।''

जहां बने फुटपाथ, वहां घटे हादसे

जब भी किसी शहर ने फुटपाथों पर ध्यान दिया है, हादसों में कमी देखने को मिली है। इसका सबसे बढि़या उदाहरण पुणे है जहां बड़े पैमाने पर फुटपाथों के निर्माण व सुधार के बाद सड़क हादसों और मौतों में आश्चर्यजनक रूप से गिरावट दर्ज की गई है। वर्ष 2010 तक जब पुणे में सड़कों व फुटपाथों की हालत खराब थी, 1999 सड़क हादसों में 439 लोग मारे गए थे। परंतु उसके बाद जब नगर निगम ने बड़े पैमाने पर शहरी बुनियादी ढांचे में सुधार किया तो दुर्घटनाओं और मौतों में खासी कमी आ गई। वर्ष 2016 में पुणे में केवल 1376 सड़क हादसे हुए और महज 410 लोगों की मौत हुई। कुछ ऐसा ही हाल अहमदाबाद का है, जहां बेहतर सिविक ढांचे के निर्माण के परिणामस्वरूप सड़क हादसों की संख्या 2010 के 2135 के मुकाबले 2016 में 1783 रह गई है।

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