विकसित करनी होगी तकनीक की समझ, तभी सफल हो सकेगा सरकार का महाअभियान
भूजल के रिचार्ज के लिए बारिश की बूंदों का संग्रहण जल का मितव्ययी इस्तेमाल और हमारी ऊर्जा नीतियों में बदलाव पर जोर देना होगा। प्रभावी तरीके से समुदायों को जोड़ना होगा तकनीक का ज्ञान बढ़ाना होगा और निगरानी मूल्यांकन और सीखने के तंत्र को पारदर्शी करना होगा।
भारत शर्मा। दुनिया की सभी नदियों, धाराओं, ग्लेशियरों, तालाबों, झीलों और भूजल के स्वच्छ जल का एक मात्र स्त्रोत बारिश का पानी है। दुनिया की आबादी में भारत की हिस्सेदारी करीब 18 फीसद है जबकि दुनिया में यहां होने वाली कुल बारिश की हिस्सेदारी सिर्फ चार फीसद है। प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता की सूची में हम 133वें स्थान पर है जो जल तनाव की स्थिति वाले देशों में हमें शुमार करती है। बारिश पर आश्रित हमारे लिए उसकी हर बूंद अनमोल है। दुनिया के सबसे प्रभावी मानसूनों में से एक दक्षिण-पश्चिम मानसून महज 100 दिनों की संक्षिप्त अवधि में बड़ी मात्रा में बारिश कराता है। सालाना देश में चार हजार अरब घनमीटर बारिश होती है लेकिन संसाधनों की कमी के चलते इसका सिर्फ 12 फीसद ही हम उपयोग कर पाते हैं।
मानसून की प्रकृति अनियमित भी हो रही है। कभी किसी हिस्से में भारी बारिश हो जाती है तो कभी कोई हिस्सा सूखा ही रहता है। लिहाजा एक ही समय में देश का अलग-अलग हिस्सा बाढ़ और सुखाड़ दोनों से जूझता है। इन तमाम प्रतिकूल कारकों के साथ हमारे सामने बड़ी चुनौती है कि इस अनमोल संसाधन को निजी और सामूहिक रूप से हम कैसे सहेजें। मौजूद ज्यादातर तकनीकों में से वर्षाजल संग्रहण तकनीक सबसे आसान और सबसे प्रभावी भी है। तभी तो देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबको यह मंत्र दिया है कि बारिश की बूंदों को पकड़ लो, जहां भी गिरे, जब भी गिरे।
ज्यादातर योजनाकारों, विशेषज्ञों, किसानों और आम जनता ने इस अभियान की मंशा की सराहना की है, लेकिन असली चुनौती इसके प्रभावकारी क्रियान्यवन और टिकाऊ नतीजे की है। ऐसे ही पुराने अभियानों के नतीजे बहुत उत्साहजनक नहीं रहे। सबसे बड़ी मुश्किल तकनीक की अपर्याप्त समझ को लेकर खड़ी होती है। स्थानीय लोगों की कम भागीदारी, धन की कमी और कार्यक्रम को लागू करने में अनियमितताएं व देरी अन्य बड़ी वजहें रही हैं। भले ही पानी वैश्विक और राष्ट्रीय चिंता का विषय हो, लेकिन इसका विकास और प्रबंधन नितांत स्थानीय मसला है। कहीं भी कोई तालाब या गढ्डा खोद देना भर वर्षाजल संग्रहण नहीं होता है। इससे कोई उद्देश्य सिद्ध नहीं होता है सिर्फ श्रम और साधन की बर्बादी होती है।
निजी तौर पर या सामुदायिक तौर पर पहले यह समझना होगा कि जरूरत क्या है और उपलब्ध संसाधन और तकनीक क्या हैं। स्थान और डिजायन के चयन के साथ संरचना और निर्माण के तरीकों पर विशेषज्ञों की राय बहुत मददकारी साबित होती है। बारिश के पानी को सहेजने की कुछ आसान और आम तरीकों में रूफ टॉप रेनवाटर हार्वेस्टिंग प्रमुख है। इसे शहर और गांवों दोनों जगह इस्तेमाल किया जा सकता है। इसमें छत के पानी को नीचे लाकर किसी टैंक या गढ्डे में एकत्र किया जाता है। इसके दूसरे चरण के तहत वहां की सभी कच्ची और पक्की सतह पर बारिश के पानी को एकत्र किया जाए। इस तरह बड़ी मात्रा में एकत्र पानी से उपयुक्त छलनीकरण के बाद भूजल स्तर को ऊपर उठाने में मदद मिलती है।
भारत के प्रत्येक गांव, कस्बों और शहरों में मौजूद तालाब बेशकीमती स्थानीय संसाधन हैं। हालांकि समय के साथ या तो इनका अतिक्रमण हो चुका है या फिर ये बेकार पड़े हैं और इनका स्वरूप बिगड़ गया है। गांव के इन तालाबों को पुनर्जीवित करने की जरूरत है। कैच द रेन अभियान को प्रभावी तरीके से लागू करने की दिशा में यह अहम कड़ी हैं। ये उस गांव की जल सुरक्षा को सुधारेंगे, पारिस्थितिकी से लेकर संस्कृति तक में आई विकृतियों के यही समाधान साबित होंगे। बाढ़ की विभीषिका को कम करने के साथ तालाब भूजल स्तर को बढ़ाने वाली संरचनाएं भी हैं। देश के कई हिस्सों में आज भी तालाब अपना खरापन साबित कर रहे हैं।
हमारा अध्ययन बताता है कि असिंचित जमीनों की फसलों को अगले 15 साल तक बचाने के लिए हमें सालाना 25.4 अरब रुपये वर्षाजल भंडारण तकनीकों के निर्माण पर खर्च करना होगा। हालांकि इस मद में निवेश का रिटर्न एक के बदले तीन का रहने वाला है। बांध बनाने के लिए देश में सीमित स्थान हैं, और विकेंद्रित छोटी-छोटी जल संग्रहण संरचनाएं बाधों का प्रमुख विकल्प साबित हो सकती हैं। भारत अब भूजल पर आश्रित देश बन चुका है और 250 अरब घन मीटर सालाना दोहन के साथ दुनिया का सबसे बड़ा भूजल उपभोक्ता भी हो चुका है। इसके चलते देश का भूजल स्तर तेजी से गिर रहा है। भूजल के रिचार्ज के लिए बारिश की बूंदों का संग्रहण, मौजूद जल का मितव्ययी इस्तेमाल और हमारी ऊर्जा नीतियों में बदलाव ही इस समस्या का निदान हैं।
(साइंटिस्ट एमेरिटस, इंटरनेशनल वाटर मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली)