'बेसिक आय स्कीम' पर राजग ने भी किया था विचार, लेकिन फंड के कारण लागू नहीं हो सकी
यूनीवर्सल बेसिक इनकम नाम की स्कीम को कई विकसित विकासशील व गरीब देशों में इसे लागू किया जा रहा है।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सोमवार को जिस न्यूनतम आय योजना का ऐलान किया है उसे तीन साल पहले मोदी सरकार ने ही पहली बार प्रस्तावित किया था। वर्ष 2016-17 के आर्थिक सर्वेक्षण में सरकार की तरफ से पहली बार यूनीवर्सल बेसिक इनकम (यूबीआई) नाम से इस तरह की स्कीम की परिकल्पना की गई। इस स्कीम की पुरजोर वकालत करते हुए यहां तक कहा गया कि अभी भारत में सब्सिडी देने की जितनी स्कीमें हैं उनमें से कई को समाप्त करते हुए इसे लागू किया जा सकता है। इसकी तमाम खूबियों को गिनाने के बावजूद केंद्र सरकार आने वाले वर्षो में फंड की दिक्कत की वजह से इसे लागू नहीं कर पाई। वैसे एक हकीकत यह भी है कि दुनिया के अधिकांश देशों में इस तरह की स्कीमों को लागू किया जा रहा है, लेकिन इसकी सफलता को लेकर अभी भी बहुतेरे सवाल उठ रहे हैं।
आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 में यूनिवर्सल बेसिक इनकम को प्रस्तावित करते हुए सरकार ने संकेत दिया था कि गरीबी उन्मूलन के मौजूदा सरकारी कार्यक्रमों में भ्रष्टाचार, त्रुटिपूर्ण आवंटन और गरीबों को वंचित रखने जैसी खामियों की वजह से बेसिक इनकम ही अब एकमात्र उपाय बचा है।
असलियत में सर्वेक्षण में कई ऐसी बातें कही गई जिन्हें राहुल गांधी अपनी इस योजना का आधार बना रहे हैं। मसलन, इसमें कहा गया था कि गरीबी उन्मूलन को बेसिक इनकम स्कीम से जड़ से समाप्त किया जा सकता है। इसमें कहा गया था कि अगर हर साल प्रति व्यक्ति करीब 12 हजार रुपये बेसिक इनकम दी जो तो कुछ वर्षो में गरीबी लगभग खत्म होकर मात्र 0.5 प्रतिशत रह जाएगी।
राहुल गांधी ने भी सोमवार को अपनी प्रेस कांफ्रेंस में इस प्रस्तावित चुनावी घोषणा को गरीबी पर अंतिम प्रहार करार दिया है। इसी तरह से तब इस स्कीम के तहत 22 फीसद आबादी शामिल करने की बात कही गई थी, कांग्रेस अध्यक्ष ने देश की 20 फीसद गरीबों को लक्षित करने की बात कही है।
सरकार के सूत्रों की मानें तो आर्थिक सर्वेक्षण के बाद के वित्त वर्ष 2017-18 के बजट तैयारियों के दौरान इस पर चर्चा हुई थीए लेकिन आर्थिक विकास दर की अनिश्चितता की वजह से इस पर फैसला नहीं हो पाया था।
राहुल गांधी ने कहा है कि उनकी पार्टी ने गुणा भाग कर लिया है कि इस स्कीम को लागू करने से कोई राजकोषीय दबाव नहीं पड़ेगा। राजग सरकार ने भी आर्थिक सर्वेक्षण में पूरा खाका पेश किया था कि किस तरह से इस स्कीम को लागू करने से कोई खास राजकोषीय दबाव नहीं पड़ेगा। इसमें बैंक में एक निश्चित सीमा से ज्यादा राशि रखने वाले या कार, दोपहिया वाहन या महंगे इलेक्टि्रक उपकरण रखने वालों को अलग, सभी लाभार्थियों की सूची लगातार सार्वजनिक करने का प्रस्ताव किया था।
महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा इस योजना के तहत शामिल करने पर जोर देने की बात भी कही गई थी। राजग सरकार ने यूनीवर्सल बेसिक इंकम को सरकारी खर्चे को सटीक लक्षित समूह तक पहुंचाने के लिए सही ठहराते हुए यहां तक कहा था कि अगर महात्मा गांधी होते तो वह भी ऐसी स्कीम का समर्थन करते।
जहां तक दुनिया के दूसरे देशों में इस स्कीम की सफलता का सवाल है तो इसको लेकर कई बार सवाल उठते रहे हैं। जर्मनी ने कई वर्षो तक विचार के बाद इसे खारिज कर दिया।
फिनलैंड ने इसे लागू किया और पिछले वर्ष वापस ले लिया। स्विटजरलैंड व हंगरी में अलग-अलग राजनीतिक दलों ने इसे मुद्दा बनाया, लेकिन उन्हें जनता ने खारिज कर दिया। हालांकि कई विकसित, विकासशील व गरीब देशों में इसे लागू किया जा रहा है।