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जानें- गांधी की वह शर्त, जिसे सुनने से पहले सहम गए थे देश के नामी उद्योगपति

घनश्याम बिड़ला ने सोचा भी नहीं था कि उन्हें गांधी से इस तरह का उत्तर मिलेगा, क्योंकि बापू से उनके काफी मधुर संबंध थे। गांधी उनके अलबुर्कर रोड के आवास में ठहरते भी थे।

By JP YadavEdited By: Published: Sat, 29 Sep 2018 01:36 PM (IST)Updated: Sat, 29 Sep 2018 01:41 PM (IST)
जानें- गांधी की वह शर्त, जिसे सुनने से पहले सहम गए थे देश के नामी उद्योगपति
जानें- गांधी की वह शर्त, जिसे सुनने से पहले सहम गए थे देश के नामी उद्योगपति

नई दिल्ली (विवेक शुक्ला)। राजधानी के मंदिर मार्ग स्थित प्रसिद्ध बिड़ला मंदिर (लक्ष्मीनारायण मंदिर) का उद्घाटन करने के लिए जब प्रमुख उद्योगपति और महात्मा गांधी के सहयोगी श्री घनश्याम बिड़ला ने गांधी से अनुरोध किया तो उन्होंने एक शर्त रख दी। गांधी ने स्पष्ट कहा कि वे मंदिर का उद्घाटन करने के लिए तैयार हैं, पर उनकी एक शर्त है। अगर उस शर्त को माना जाएगा तब ही वह मंदिर का उद्घाटन करेंगे। ये बात 1939 के सितंबर महीने की है।

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मंदिर में हरिजनों को मिले प्रवेश

घनश्याम बिड़ला ने सोचा भी नहीं था कि उन्हें गांधी से इस तरह का उत्तर मिलेगा, क्योंकि बापू से उनके काफी मधुर संबंध थे। गांधी उनके अलबुर्कर रोड (अब तीस जनवरी मार्ग) के आवास में ठहरते भी थे। बिड़ला ने बापू से शर्त पूछी। उन्होंने कहा कि मंदिर में हरिजनों के प्रवेश पर रोक नहीं होगी। दरअसल उस दौर में मंदिरों में हरिजनों के प्रवेश पर अनेक तरह से अवरोध खड़े किए जाते थे। पूजा करने के लिए धर्म के ठेकेदार उन्हें मंदिर के अंदर नहीं जाने देते थे। जब गांधी को आश्वासन दिया गया कि बिड़ला मंदिर में हरिजनों के प्रवेश पर रोक नहीं होगी तो वह मंदिर के उद्घाटन के लिए राजी हो गए। उसके बाद बिड़ला मंदिर का 1939 में विधिवत उद्घाटन हुआ।  गांधी ने अपनी पत्रिका ‘यंग इंडिया’ में अप्रैल, 1925 में लिखा भी था, ‘मंदिरों, कुओं और स्कूलों में जाने पर जाति के आधार पर किसी भी तरह की रोक गलत है।’ उन्होंने 7 नवंबर, 1933 से 2 अगस्त, 1934 के बीच छूआछूत खत्म करने के लिए देशभर की यात्रा भी की थी। इसे गांधी की ‘हरिजन यात्रा या दौरा के नाम से याद किया जाता है। दोपहर साढ़े 12 बजे हजार मील की उस यात्रा में गांधी ने छूआछूत के खिलाफ जन-जागृति पैदा की थी।

कट्टरपंथियों का विरोध भी झेला

बहरहाल, बिड़ला मंदिर का निर्माण 1933 से 1939 के बीच चला। मंदिर के उद्घाटन वाले दिन गोल मार्केट, इरविन रोड (अब बाबा खड़क सिंह मार्ग), करोल बाग और बाकी आसपास के इलाकों के हजारों लोग पहुंच गए। सबकी चाहत थी कि वे मंदिर के उद्घाटन के बहाने बापू के दर्शन कर लें। गांधी ने बिड़ला मंदिर के उद्घाटन के अवसर पर भी छूआछूत के कोढ़ पर हल्ला बोला था। इस कारण से ही कुछ कट्टरपंथी उनसे नाराज रहते थे। उन पर झूठे व्यक्तिगत आरोप लगाते थे। एक बार पुणे में उन पर कट्टरपंथी सनातनियों ने बम भी फेंका था। 19 जून, 1934 को जब गांधी पुणे स्टेशन पर पहुंचे तो ‘गांधी वापस जाओ’ के नारे के साथ उन्हें काला झंडा दिखाया गया था। बिड़ला मंदिर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को समर्पित है। यहां मनाई जाने वाली जन्माष्टमी काफी प्रसिद्ध है। बिड़ला मंदिर का वास्तुशिल्प उड़िसा (ओडिशा) के मंदिरों से प्रभावित है। इसका बाहरी हिस्सा सफेद संगमरमर और लाल बलुआपत्थर से बना हुआ है। बहरहाल, गांधी उद्घाटन करने के बाद दोबारा फिर कभी मंदिर नहीं आए। वह 12 जनवरी, 1915 को पहली बार दिल्ली आए थे। और अपनी अंतिम सांस भी इसी दिल्ली में 20 जनवरी, 1948 को लिया। इस दौरान वे दिल्ली में आते-जाते रहते रहे। वे धार्मिक स्थानों में लगभग नहीं जाते थे, लेकिन उनकी प्रार्थना सभाओं में सभी धर्मों की पुस्तकों का पाठ जरूर होता था।

(लेखक व इतिहासकार)


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