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कैप्टन विजयंत थॉपर के माथे पर हमेशा लगता था विजय का तिलक, कारगिल युद्ध में हुए थे शहीद

कारगिर युद्ध में देश ने कई सैनिक खोए थे उन्हीं में से एक थे कैप्टन विजयंत थापर। देश के लिए लड़ते हुए वो शहीद हो गए थे।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Wed, 25 Dec 2019 09:00 PM (IST)Updated: Thu, 26 Dec 2019 09:57 AM (IST)
कैप्टन विजयंत थॉपर के माथे पर हमेशा लगता था विजय का तिलक, कारगिल युद्ध में हुए थे शहीद
कैप्टन विजयंत थॉपर के माथे पर हमेशा लगता था विजय का तिलक, कारगिल युद्ध में हुए थे शहीद

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। देश प्रेम का जज्बा कुछ ऐसा होता है कि एक बार शहीद हो जाने के बाद जवान बार-बार इसी धरती पर जन्म लेकर देश के लिए शहीद होने की तमन्ना रखते हैं। दिल्ली-एनसीआर में भी कई ऐसे युवा रहे हैं जिन्होंने हंसते-हंसते देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। ऐसे शहीदों के परिजन भी मजबूत दिल के होते हैं, वो अपने परिवार के बाकी सदस्यों को भी फौज में शामिल करने की इच्छा रखते हैं। कारगिल के युद्ध में एक ऐसा ही जवान शहीद हुआ था, उसका नाम था कैप्टन विजयंत थापर।

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विजयंत की पढ़ाई डीयू से हुई थी। विजयंत का नाम भारतीय सेना के गौरवशाली टैंक विजयंत के नाम पर रखा गया था। विजयंत के नाम पर गुरुनानक देव खालसा कॉलेज ने अपने एनसीसी विभाग का नाम विजयंत रखा। देश का मस्‍तक गर्व से ऊंचा करने वाले इस वीर की गाथा की चर्चा यहां के एनसीसी विभाग ने भी की है। विजयंत यहां की एनसीसी के सदस्‍य थे।

अगले जन्म में फिर से सेना में होना चाहूंगा भर्ती

कारगिल युद्ध के समय उन्होंने कहा था कि अगर प्रभु ने अगले जन्म में इंसान बनाया तो मैं फिर भी भारतीय सेना ज्वाइन करूंगा और दुश्मनों से लड़ूंगा। इनसे हमें सीखना है। आने वाली पीढिय़ां गर्व करें इन पर। यह समय उन्हें भी याद करने का है, जिन्होंने अपना सब कुछ खो दिया। मैं अभी 2 राजपूताना राइफल्स में गया था। वहां मैंने ऐसे लोगों को देखा, जिनके अंगों में गोलियां व शेल के टुकड़े अब भी धंसे हैं। उन वीर नारियों को लोगों को प्रणाम करना चाहिए, जिन्होंने कम उम्र में अपने जीवनसाथी को खो दिया, जिन्होंने अपने जवान बेटों को खो दिया। 

गरज रहीं थीं तोपें, बरस रहे थे गोले

नोएडा के सेक्टर-29 में रह रहे विजयंत थापर के पिता कर्नल वीएन थापर कहते हैं कि विजयंत के माथे पर हमेशा विजय का तिलक लगा। जब विजयंत लड़ाई के आखिरी पड़ाव में नॉल पहाड़ी पर पहुंचा तो वहां बहुत ज्यादा बमबारी हो रही थी। 120 तोपें भारत की ओर से गरज रहीं थीं तो इतनी ही तोपें पाकिस्तान की तरफ से भी। एक छोटे से क्षेत्र में इतनी ज्यादा गोलाबारी तो दुनिया में किसी युद्ध में नहीं हुई होगी। इसी बीच तोप का एक गोला विजयंत की टुकड़ी पर गिरा। कुछ जांबाज शहीद हुए।

विजयंत अपनी टुकड़ी और घायलों को लेकर सुरक्षित जगह पर पहुंचे। 19 लोगों के साथ तोलोलिंग नाले की तरफ से दुश्मनों के पीछे गए और फिर उनके बीच से निकलकर अपनी कंपनी से मिले। इसी दौरान सूबेदार मानसिंह को एक गोले का हिस्सा लगा। वह गंभीर रूप से घायल हो गए। इससे नॉल पहाड़ी पर नेतृत्व का पूरा जिम्मा विजयंत के कंधों पर आ गया। उन्होंने यह जिम्मेदारी अच्छे से निभाई।

बढ़ते जा रहे थे कदम

विजयंत ने 28-29 जून 1999 की दरम्यानी रात में नॉल पहाड़ी पर तिरंगा लहराया। इसके बाद थोड़ा आगे बढ़े तो दुश्मनों की मशीनगन गोलियां उगल रहीं थीं, लेकिन विजयंत के कदम आगे ही बढ़ते जा रहे थे। इसी दौरान एक गोली विजयंत के माथे पर लगीं और वह हवलदार तिलक सिंह की बांहों में गिर गए। जहां शहीद हुए वहां उनके साथियों ने मंदिर बनाया। जहां वॉर मेमोरियल बना है, वहां के हेलीपैड का नाम विजयंत हेलीपैड रखा गया। 

बर्बाद बंकर पर किया था कब्जा

विजयंत थापर ने तोलोलिंग पर विजय दिलाई। यह कारगिल और ऑपरेशन विजय में उनकी यूनिट 2 राजपूताना राइफल्स की पहली जीत थी। विजयंत ने पाकिस्तानी पोस्ट बर्बाद बंकर पर कब्जा किया था। यह विजय सेना के लिए अहम थी। क्योंकि यहां से छिपकर दुश्मन सीधे सेना को सैनिकों को आपूर्ति होने वाली रसद को निशाना बना रहा था।

अपने देश के लिए लडूंगा

आज से बीस साल पहले कारगिल युद्ध में सेना को पहली जीत (तोलोलिंग) दिलाने वाले भारत माता के इस अमर सपूत के अंदर कुछ कर गुजरने की चाहत थी। निश्चय इतना दृढ़ था कि महज 22 साल की उम्र में चांदनी रात में भी नॉल पहाड़ी पर दुश्मनों के नापाक इरादों को नेस्तनाबूद कर तिरंगा फहरा दिया। भारत सरकार ने इस अमर बलिदानी को वीर चक्र से अलंकृत किया। माता पिता को लिखे गए खत में इस योद़धा ने कहा था कि यदि दोबारा मानव के रूप में जन्‍म हुआ तो मैं सेना ज्‍वाइन करूंगा और अपने देश के लिए लडूंगा। 

वह देश के लिए कुछ भी कर सकते थे

कारगिल शहीद कैप्टन विजयंत थापर (वीर चक्र) के पिता कर्नल (रिटायर्ड) वीएन थापर कहते हैं कि कारगिल अपनी किस्म का पहला युद्ध था। इतनी कठिनाइयां थीं, जिन्हें गिनाया नहीं जा सकता है। बस एक ही चीज थी वह थी- हौसला और बहादुरी। इसी के दम पर जवानों ने देश का मस्तक ऊंचा किया। 24 से 25 साल के लड़कों ने जो वीरता दिखाई, उसे नमन किया जाना चाहिए।

मिला था बेस्ट कैडेट का अवार्ड

इतिहास के इस पन्ने को हमें गर्व से देखना चाहिए। जिस देश में हीरो कम हो जाते हैं, वह पतन की ओर चला जाता है। इसलिए हमें अपने हीरो को याद रखना चाहिए। सुबह जब ईश्वर की प्रार्थना करें तो इन हीरों को भी याद करें। कारगिल युद्ध स्प्रिट के लिए जाना जाता है। जवानों के अंदर जज्बा था, वह देश के लिए कुछ भी कर सकते थे। मेरा बेटा भी ऐसा ही था। एनसीसी की तरफ से हर साल फेस्‍ट का आयोजन किया जाता है जिसका नाम विजयंत है। कर्नल थापर ने बताया कि दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा ने विजयंत को बेस्‍ट कैडेट का अवार्ड दिया था। 

विजयंत ने अपना लक्ष्य तय कर लिया था

मां तृप्ता थापर कहती हैं कि घर का माहौल देश सेवा से ओत प्रोत था। कर्नल थापर की वजह से घर में अनुशासन था और यह जरूरी भी है क्योंकि जीवन में अनुशासन एक लक्ष्य की ओर ले जाता है। विजयंत ने भी अपना लक्ष्य तय कर लिया था। मेरा बेटा जितना वीर था उतना दयालु भी। अपनी पॉकेटमनी गरीबों को दे देता था। वह सच्चा देशभक्त था। स्पोर्ट्स और एकेडमिक दोनों में अव्वल रहता था। स्वीमिंग में उसका कोई सानी नहीं था। थापर की मां ने बताया कि कारगिल युद्ध के समय उसने बच्‍ची रुखसाना की मदद की।

आइएमए में स्वीमिंग में गोल्ड मेडल लेकर आया था। वह चुनौतियों स्वीकार कर जीत कर दिखाता था। एक बार चंडीगढ़ में कर्नल थापर ने उससे कहा कि आप स्वीमिंग पूल में पचास की लेंग्थ नहीं कॉस कर सकते, इस पर रॉबिन (विजयंत) ने कहा कि चुनौती मत दीजिए। उसने पचास से ज्यादा लेंग्थ पूरी की। तृप्ता कहती हैं कि कोई भी काम हो उसे ईमानदारी से करना चाहिए। जज्बा होना चाहिए। तभी तो विजयंत के कदम बढ़ गए तो रुकने वाले कहां थे। महज 22 साल की उम्र में नॉल पहाड़ी पर दुश्मनों की गोलियों की बौछारों के बीच भारत को जीत दिलाई। 

रो रहा था पूरा नोएडा

शहीद विजयंत का शव जब नोएडा पहुंचा तो यहां सभी की आंखें नम थीं। पूरा नोएडा रो रहा था। उन्‍हें अंतिम विदाई देने के लिए पूरा नोएडा ही नहीं, आसपास के जिलों के लोग भी आए थे। शहीदों से प्रेम करने वाले लोगों की यहां लाइन लगी थी। इसके अलावा सेना की अन्य विंगों के अधिकारी भी यहां मौजूद थे।

विजयंत थापर और विक्रम बत्रा ने एक ही स्कूल से की थी पढ़ाई

विजयंत ने 12 वीं की पढ़ाई चंडीगढ़ के उसी डीएवी स्कूल से की थी, जहां से कारगिल शहीद और परमवीर चक्र विजेता विक्रम बत्रा ने भी पढ़ाई की थी। विक्रम बत्रा उनसे दो साल सीनियर थे। विजयंत ने स्नातक (बीकॉम) दिल्ली विश्वविद्यालय के खालसा कॉलेज से किया था। 


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