स्पार्क: चमकते चांद से टूटते तारे तक, अर्श से फर्श पर चंदा कोचर
महज एक वर्ष पहले तक दुनियाभर में भारतीय बैंकिंग सेक्टर का झंडा पूरे दम के साथ बुलंद करने वाली चंदा कोचर की कहानी भी कुछ ऐसी ही है...
संजीव कुमार झा, नई दिल्ली। पिछले वर्ष इसी समय के आसपास वह देश की बैंकिंग सेक्टर का जगमगाता सितारा थीं, देश में किसी बैंक के शीर्ष पर पहुंचने वाली पहली महिला, दुनियाभर में भारतीय बैंकिंग सेक्टर की पोस्टर गर्ल, दर्जनों घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग और कारोबारी संगठनों की सदस्य और कुछ की प्रमुख, सरकार के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में एक पद्म भूषण से सम्मानित...
जिनका अनुसरण करने और जिनकी ऊंचाई तक पहुंचने का सपना प्रबंधन और बैंकिंग क्षेत्र में काम करने वाली लाखों युवा महिलाएं देखा करती थीं। एक वर्ष बाद आज वह सन्न और सदमे में हैं। सन्न होना स्वाभाविक है। आखिर जिस बैंक को उन्होंने अपनी जिंदगी के कीमती 34 वर्ष दिए, जिसे अपनी मेहनत, लगन और सूझबूझ (जिस पर अभी सबसे ज्यादा सवाल उठाए जा रहे हैं) से देश के सबसे भरोसेमंद और अग्रणी बैंकों की सूची में सबसे आगे के पायदानों पर खड़ा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, उसी बैंक से इस तरह की विदाई की खुद उन्हें भी उम्मीद नहीं रही होगी।
चंदा कोचर की बर्खास्तगी कई और ऐसे महत्वपूर्ण सवाल खड़े करती है, जिनका देश के बैंकिंग सेक्टर और अन्य सेक्टरों के लिए भी जवाब खोजना बेहद जरूरी है। यह सिर्फ चंदा कोचर और आइसीआइसीआइ बैंक (जिसके निदेशक बोर्ड से सबसे ज्यादा सवाल होने चाहिए) का नहीं, बल्कि भारतीय बैंकिंग सेक्टर के उस लचर कॉरपोरेट गवर्नेंस का सवाल है, जिस पर पूरी तरह से नए युग की ओर चल पड़े देश की अर्थव्यवस्था को नई दिशा देने की जिम्मेदारी है।
क्या, क्यों और कैसे हुआ
आइसीआइसीआइ बैंक ने वीडियोकॉन ग्रुप को 2012 में 3,250 करोड़ रुपये का कर्ज दिया। उस वक्त कोचर आइसीआइसीआइ बैंक की एमडी व सीईओ थीं। वीडियोकॉन ग्रुप के प्रमोटर वेणुगोपाल धूत ने चंदा कोचर के पति दीपक कोचर और कुछ अन्य लोगों के साथ मिलकर न्यूपावर रिन्युएबल्स प्राइवेट लिमिटेड नाम की एक पवन ऊर्जा कंपनी गठित की और आरोपों के मुताबिक कर्ज मिलने के कुछ ही महीने बाद इसमें करोड़ों रुपये का निवेश किया। बाद में धूत ने इस कंपनी का स्वामित्व दीपक कोचर को सौंप दिया। इस बीच, कर्ज चुकता नहीं होने की वजह से बैंक ने 2017 में वीडियोकॉन ग्रुप को दिए इस कर्ज को फंसे कर्ज (एनपीए) में बदल दिया।
कोचर पर इसी तरह से एस्सार ग्रुप की कंपनियों को भी कर्ज देने के आरोप हैं, जिन्हें बाद में एनपीए में बदला गया। आइसीआइसीआइ बैंक में निवेशक होने का दावा करने वाले एक गुप्त भेदिये (व्हिसलब्लोअर) ने बैंक में इसकी शिकायत की और कोचर पर भाई-भतीजावाद तथा कर्ज के बदले पारिवारिक लाभ लेने का आरोप लगाया।
यूं बदला पिछला सप्ताह
पिछले सप्ताह श्रीकृष्णा समिति ने अपनी रिपोर्ट में वीडियोकॉन ग्रुप को दिए कर्ज के मामले में कोचर को सीधे तौर पर दोषी ठहराया। उसके तुरंत बाद बैंक के बोर्ड ने बयान जारी कर कहा कि कोचर के इस्तीफे को अब बर्खास्तगी की तरह लिया जाएगा और उन्हें वर्ष 2009 से 2018 तक मिले बोनस और अन्य मदों की रकम की सूद समेत वसूली की जाएगी। उन्हें सेवानिवृत्ति के बाद की सुविधाएं भी नहीं मिलेंगी। इस बीच शनिवार को ही प्रवर्तन निदेशालय ने कोचर के खिलाफ मनी लांड्रिंग के मामले में केस दर्ज कर लिया।
निदेशक बोर्ड की भूमिका पर सवाल
पिछले वर्ष मार्च में जब यह मामला सामने आया, तो बैंक के निदेशक बोर्ड ने कोचर के समर्थन में खड़े होने में जरा भी देर नहीं की। श्रीकृष्णा समिति की रिपोर्ट पर तुरंत कोचर को बर्खास्त करने का फैसला लेने वाला बोर्ड पिछले वर्ष महीनों तक उनके बचाव में लगा रहा। यहां तक कि आंतरिक स्तर पर हुई जांच में भी बोर्ड ने स्पष्ट कहा कि जिस समिति ने वीडियोकॉन ग्रुप को कर्ज देने का फैसला किया, कोचर उसमें शामिल ही नहीं थीं।
अर्श से फर्श पर
कोचर का भारतीय बैंकिंग सेक्टर के सबसे दमदार चेहरों में एक बनना कोई एक दिन में नहीं हुआ। उन्होंने एक मैनेजमेंट ट्रेनी के तौर पर वर्ष 1984 में इंडस्ट्रियल क्रेडिट एंड इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (आइसीआइसीआइ) को ज्वाइन किया था। पिछली सदी के आखिरी दशक में बैंक की स्थापना में भी उनका बड़ा योगदान था और उन्हें एक के बाद एक बड़ी जिम्मेदारी देकर भली-भांति जांचा, परखा और तराशा गया था। इंटरनेट बैंकिंग से लेकर एटीएम युग की शुरुआत तक में बैंक को शिखर तक ले जाने में कोचर का अहम योगदान रहा।
क्या होगा असर
चंदा कोचर प्रकरण ने बैंकों के कॉरपोरेट गवर्नेंस की एक बार फिर कलई खोली है। निवेशकों के मन में निजी क्षेत्र के बैंकों को लेकर एक विश्वसनीयता अभी भी है, जिसे गहरा धक्का लगेगा। इस प्रकरण से उन लाखों युवा महिलाओं को भी धक्का लगा होगा, जो कोचर की ऊंचाई तक पहुंचने का सपना देखती रही हैं।
यह प्रकरण आम लोगों की उस धारणा को भी मजबूत करेगा (जिसे असल में कब का टूट जाना चाहिए था) कि आम लोगों को कर्ज लेने में तमाम दिक्कतें आती हैं, जबकि खास लोग करोड़ों का कर्ज यूं ही हासिल कर लेते हैं। जहां तक कोचर का सवाल है, तो अगर लंबी जांच प्रक्रिया के बाद अदालत से भी वह दोषी करार दी जाती हैं तो संभवत: यह पहला मौका होगा जब किसी पद्म भूषण पर कार्रवाई होगी। कल तक वह रोल मॉडल थीं। आज उनके ‘रोल’ की गंभीरता से जांच हो रही है, और मॉडल अब कोई उन्हें मानना नहीं चाहेगा।