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सुप्रीम कोर्ट ने गरीब बच्चों को इंटरनेट देने के आदेश पर लगाई रोक, दिल्ली और केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश को दी है चुनौती

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के निजी स्कूलों और केंद्रीय विद्यालय में आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को पढ़ाई के साधन लैपटॉप व इंटरनेट आदि उपलब्ध कराने के दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है। इसके साथ ही दिल्ली व केंद्र सरकार की नोटिस जारी किया है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Wed, 10 Feb 2021 09:20 PM (IST)Updated: Wed, 10 Feb 2021 09:20 PM (IST)
सुप्रीम कोर्ट ने गरीब बच्चों को इंटरनेट देने के आदेश पर लगाई रोक, दिल्ली और केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश को दी है चुनौती
सुप्रीम कोर्ट ने कमजोर बच्चों को लैपटॉप उपलब्ध कराने के दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है।

नई दिल्ली, जेएनएन। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के निजी स्कूलों और केंद्रीय विद्यालय में आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को पढ़ाई के साधन लैपटॉप व इंटरनेट आदि उपलब्ध कराने के दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार व केंद्र सरकार की याचिका पर नोटिस भी जारी किया है। दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट के गत वर्ष 18 सितंबर के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।

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दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया है आदेश

दिल्ली हाईकोर्ट ने गैर सरकारी संगठन जस्टिस फार आल की याचिका स्वीकार करते हुए निजी स्कूलों को आदेश दिया था कि वे अपने यहां पढ़ने वाले आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को आनलाइन पढ़ाई के साधन लैपटाप, इंटरनेट कनेक्शन आदि उपलब्ध कराएं और उसके पैसे दिल्ली सरकार से लें। इसके अलावा हाईकोर्ट ने केंद्रीय विद्यालयों और केंद्र के स्कूलों को भी बच्चों को आनलाइन पढ़ाई के लिए लैपटॉप और इंटरनेट उपलब्ध कराने के आदेश दिये हैं।

दिल्ली और केंद्र सरकार ने आदेश को चुनौती दी

दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल कर हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है। बुधवार को प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष मामला सुनवाई के लिए लगा था। दिल्ली सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विकास सिंह और संतोष त्रिपाठी ने हाईकोर्ट के आदेश का विरोध करते हुए कहा कि हाईकोर्ट ने शिक्षा के अधिकार कानून (आरटीई) की धारा 12 का दायरा बहुत अधिक बढ़ा दिया है।

हिमाचल प्रदेश के मामले में एक फैसला

हाईकोर्ट ने आरटीई कानून को रिराइट किया है। हाईकोर्ट के आदेश से दिल्ली सरकार पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ेगा। वैसे भी दिल्ली सरकार शिक्षा पर काफी खर्च कर रही है। दलीलें सुनने के बाद पीठ ने याचिकाओं पर गैर सरकारी संगठन जस्टिस फार आल को नोटिस जारी करते हुए मौखिक टिप्पणी में कहा कि कोर्ट राज्य पर अतिरिक्त बोझ नहीं डाल सकते। पीठ ने कहा कि इस बारे में सुप्रीम कोर्ट का ही हिमाचल प्रदेश के मामले में एक फैसला है।

केंद्र ने अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ने की कही बात

पीठ ने विकास सिंह से वह फैसला रिकार्ड पर पेश करने को कहा है। केंद्र सरकार ने भी याचिका में हाईकोर्ट के आदेश अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ने की बात कही है। जस्टिस फार आल संगठन ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा था कि निजी स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर कोटा के तहत पढ़ने वाले 25 फीसद बच्चे संसाधनों के अभाव में आनलाइन क्लासेस में पढ़ाई में पिछड़ सकते हैं। ऐसे बच्चों को संसाधन उपलब्ध कराने की बात कही गई थी।

हाईकोर्ट ने दिया था यह आदेश

हाईकोर्ट ने मांग स्वीकार करते हुए स्कूलों को आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को आनलाइन पढ़ाई के संसाधन लैपटाप इंटरनेट कनेक्शन आदि उपलब्ध कराने का आदेश दिया था ताकि ऐसे बच्चे अन्य बच्चों से न पिछड़ें और उनकी पढ़ाई भी प्रभावित न हो। आरटीई एक्ट में निजी स्कूलों को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के 25 फीसद बच्चों को प्रवेश देना पड़ता है।

तीन सदस्‍यीय कमेटी बनाने के दिए थे निर्देश

जस्टिस फार आल संगठन ने कहा था कि स्कूल इन बच्चों से फीस नहीं लेते और इन बच्चों की फीस आदि का खर्च सरकार स्कूलों को देती है। हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार से कहा था कि वह एक तीन सदस्यीय कमेटी बनाए जिसमें निजी स्कूलों का भी प्रतिनिधि होगा यह कमेटी आनलाइन पढ़ाई के उपकरण और इंटरनेट पैकेज आदि का स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर बनाएगी और गरीब बच्चों को ये उपकरण देने की प्रक्रिया तेज करेगी।


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