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हरियाणा के खोरी गांव में 10 हजार घरों को हटाने के आदेश पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, जानें क्‍या कहा

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हरियाणा के फरीदाबाद जिले के खोरी गांव में जंगल की जमीन पर अतिक्रमण करके बनाए गए 10 हजार से अधिक घरों को गिराए जाने के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Thu, 17 Jun 2021 05:24 PM (IST)Updated: Thu, 17 Jun 2021 11:40 PM (IST)
हरियाणा के खोरी गांव में 10 हजार घरों को हटाने के आदेश पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, जानें क्‍या कहा
सुप्रीम कोर्ट ने खोरी गांव में घरों को गिराए जाने के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है।

नई दिल्ली, जेएनएन। सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा में फरीदाबाद के खोरी गांव के नजदीक अरावली वन क्षेत्र में बने करीब 10,000 मकानों को ढहाने पर रोक लगाने से गुरुवार को इन्कार कर दिया। कहा कि वन क्षेत्र पर कब्जा नहीं होना चाहिए। कोर्ट ने पुनर्वास के दावे की जांच होने तक निर्माण ढहाने पर रोक लगाने की मांग कर रहे अवैध कब्जेदारों की मांग ठुकराते हुए कहा कि उन्हें पहले ही लगभग साल भर का समय दिया जा चुका है। अब इस बारे में कोई आदेश नहीं दिया जाएगा।

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नगर निगम तथा अन्य अथारिटीज वन भूमि खाली कराने के गत सात जून के आदेश पर अमल करें। ये आदेश जस्टिस एएम खानविल्कर और दिनेश महेश्वरी की पीठ ने अवैध निर्माण ढहाने पर रोक की मांग ठुकराते हुए दिए। कोर्ट ने कहा कि अर्जीकर्ताओं को कोई राहत नहीं दी जा सकती। वे कोर्ट के आदेश को मानने के लिए बाध्य हैं। कोर्ट ने सात जून को वन भूमि से छह सप्ताह में अवैध कब्जे हटाने के आदेश दिए थे और आदेश पर अनुपालन की रिपोर्ट भी दाखिल करने को कहा था।

गुरुवार को अर्जीकर्ताओं की ओर से पेश वकील अपर्णा भट ने कोर्ट से निर्माण ढहाने पर फिलहाल रोक लगाने का आग्रह करते हुए कहा कि उनके मुवक्किल राज्य सरकार की पुनर्वास योजना के तहत आते हैं कि नहीं इस बात की कोई जांच नहीं हुई है। उनके दावे की जांच की जानी चाहिए और जांच होने तक निर्माण ढहाने पर रोक लगा दी जाए।

पीठ ने दलीलें ठुकराते हुए कहा कि कोर्ट के 19 फरवरी, 2020 के आदेश के बाद नगर निगम ने पिछले साल अधिसूचना जारी की थी। इसमें वन भूमि पर अवैध कब्जेदारों को इसके लिए पर्याप्त मौका दिया गया था। ये दलील स्वीकार नहीं की जा सकती कि उनसे मालिकाना हक के कागज मांगे गए थे जो कि उनके पास नहीं थे। कोर्ट ने कहा कि अर्जीकर्ताओं को राज्य की पुनर्वास नीति के मुताबिक अपना दावा साबित करने के दस्तावेज पेश करने चाहिए थे, लेकिन वे इसमें नाकाम रहे।

पीठ ने कहा कि कोर्ट अपने पूर्व आदेशों में नगर निगम की ओर से दिए गए भरोसे को दर्ज कर चुका है। इसमें निगम ने कहा था कि वन भूमि पर बने अवैध कब्जों पर कानून के मुताबिक कार्रवाई की जाएगी और कब्जेदारों के दावों की मौजूदा पुनर्वास नीति के मुताबिक जांच की जाएगी।

कोर्ट ने कहा कि नगर निगम और स्टेट अथारिटी कोर्ट को दिए गए भरोसे के मुताबिक सात जून के आदेश पर अमल करें। पीठ ने कहा कि इस मामले में व्यापक मुद्दा उठाने वाली याचिका पहले से कोर्ट में लंबित है। इसके साथ ही कोर्ट ने साफ किया कि यह लंबित मामला वन भूमि से अवैध निर्माण हटाने की प्रक्रिया के आड़े नहीं आएगा।


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