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इस शख्‍स ने तय किया दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल से आइपीएस तक का सफर

यह जरूर है कि अभाव के कारण सफलता पाने में समय लग जाता है। मेरी मां चंदा देवी और पत्नी सुनीता लगातार मेरा मनोबल बढ़ाती रहीं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 13 Aug 2018 11:20 AM (IST)Updated: Fri, 09 Aug 2019 03:50 PM (IST)
इस शख्‍स ने तय किया दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल से आइपीएस तक का सफर
इस शख्‍स ने तय किया दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल से आइपीएस तक का सफर

नोएडा, जेएनएन  अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ होने पर राह में आने वाली हर बाधाएं घुटने टेक देती हैं। किसी तरह का अभाव भी आड़े नहीं आता। इसका एक नायाब उदाहरण हैं आइपीएस अफसर विजय गुर्जर। राजस्थान के झुंझुनूं जिले के रहने वाले विजय मूलत: एक किसान परिवार से हैं। उन्होंने प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे गरीब और अभावग्रस्त छात्रों के लिए एक ट्रस्ट भी बनाया है। ट्रस्ट के माध्यम से वह छात्रों को न सिर्फ प्रोत्साहित करते हैं बल्कि आर्थिक सहायता भी देते हैं।

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दसवीं में वह महज 55 फीसद अंक से पास हुए। बारहवीं में उनके 67 फीसद अंक आए। वह किसी नौकरी की तलाश में थे। इसमें सफलता न मिलने पर वह टाइल्स का कारोबार कर रहे दोस्त के साथ व्यवसाय करने की सोच रहे थे। उनके पास व्यवसाय के लिए पैसा नहीं था।

इस कारण पिता लक्ष्मण सिंह ने नौकरी की तलाश करने को कहा। उन्होंने प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी शुरू कर दी। जून 2010 में उनका चयन दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल के पद पर हो गया। दिल्ली आकर उन्हें पता चला कि एक आइपीएस अफसर के पास समाज सेवा के तमाम अवसर होते हैं। उन्होंने उसी दिन ठान लिया कि अब आइपीएस ही बनना है। हालांकि, इसकी तैयारी में खर्च होने वाले पैसे का इंतजाम उनके पास नहीं था। इस कारण उन्होंने पहले दारोगा की तैयारी की। कड़ी मेहनत से दिसंबर 2010 में उनका चयन दिल्ली पुलिस में दारोगा के पद पर हो गया।

इसपद पर रहते हुए उन्हें तैयारी का समय नहीं मिल रहा था। फिर भी उन्होंने एसएससी की तैयारी प्रारंभ कर दी। उनका चयन सेंट्रल एक्साइज में हो गया, लेकिन तैनाती केरल के त्रिवेंद्रम में हो गई। सिविल सेवा की तैयारी दिल्ली में चल रही थी। त्रिवेंद्रम चले जाने से उनकी तैयारी प्रभावित होने लगी। उन्होंने फिर एसएससी की परीक्षा दी। इस बार उनका चयन इनकम टैक्स विभाग में हो गया और उनकी दिल्ली में तैनाती हो गई। इनकम टैक्स की नौकरी करने के साथ ही वह सिविल सेवा की तैयारी करते रहे। 2016 उन्होंने तीसरी बार सिविल सेवा की परीक्षा दी।

संस्कृत जैसे कठिन विषय से मुख्य परीक्षा देने के बाद भी उनका साक्षात्कार के लिए चयन हो गया। वह साक्षात्कार तक पहुंचे, लेकिन आठ अंक कम होने के कारण उनका चयन न हो सका। इसके बाद भी विजय हार नहीं माने। वह लगातार 10 घंटे की पढ़ाई नौकरी के साथ करते रहे। जिसका नतीजा है कि पांचवें प्रयास में 2018 में उनका चयन आइपीएस के लिए हुआ। उनकी इस सफलता ने न सिर्फ परिवार का बल्कि पूरे गुर्जर समाज का नाम रोशन कर दिया। रविवार को नोएडा के इंदिरा गांधी कला केंद्र में गुर्जर समाज के सफल युवाओं के लिए आयोजित कार्यक्रम में विजय गुर्जर को सम्मानित कर समाज खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा था।

अभाव व कम संसाधन कभी विजय रथ को रोक नहीं सकते। यह जरूर है कि अभाव के कारण सफलता पाने में समय लग जाता है। मेरी मां चंदा देवी और पत्नी सुनीता लगातार मेरा मनोबल बढ़ाती रहीं। अब मैं पत्नी सुनीता को सिविल सेवा की तैयारी करा रहा हूं। मैं सिपाही भी रहा हूं। इस कारण मुझे उनका दर्द पता है।
विजय गुर्जर, आइपीएस  

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