नई तकनीक के अनुरूप स्किल को मजबूत करना होगा, आईटी से इतर भी मौके तलाशने होंगे
ग्लोबल स्तर पर कई अनिश्चितताएं हैं जिनकी वजह से कंपनियां लागत घटा रही हैं और एंट्री लेवल पर कम नौकरियां दे रही हैं। वैश्विक आर्थिक परिस्थितियां ग्राहकों द्वारा प्रौद्योगिकी खर्च में कमी और विभिन्न देशों में उभरते तकनीकी केंद्रों के कारण बढ़ती प्रतिस्पर्धा को इसके लिए जिम्मेदार माना जा सकता है। हर साल 15 लाख नए इंजीनियरों के आने से जॉब मार्केट में सैचुरेशन की स्थिति आ चुकी है।
नई दिल्ली, अनुराग मिश्र।
आईआईटी मुंबई में इस साल 25 फीसद छात्रों को कैंपस प्लेसमेंट में नौकरी नहीं मिली। छात्रों को मिलने वाला न्यूनतम पैकेज भी छह लाख से घटकर चार लाख रुपये रह गया है। बीते साल भी कुछ शीर्ष आईआईटी में 32 फीसद छात्रों को नौकरी नहीं मिली थी। नौकरी न मिलने के साथ-साथ पैकेज में भी लगातार गिरावट आ रही है। कमोबेश यही हाल एनआईटी और देश के दूसरे इंजीनियरिंग संस्थानों का है। देश के विभिन्न संस्थानों से हर साल तकरीबन 15 लाख इंजीनियर्स निकलते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि टेक इनोवेशन और कारोबार में कम निवेश होने से प्लेसमेंट में गिरावट आई है। वहीं स्पेशलाइजेशन बढ़ने से आईटी सेक्टर में एंट्री लेवल की पोजीशन कम हो रही हैं। इंडस्ट्री में बढ़े ऑटोमेशन ने भी नई स्किल वालों के लिए मौके बढ़ाए हैं। यही नहीं, टेक्नोलॉजी में आए बदलाव से कई पुरानी कंपनियों की तकनीक की डिमांड में अंतर आया है।
टेक कंपनियों ने अगस्त 2024 में नौकरियों में कटौती भी की है। इंटेल, आईबीएम, सिस्को जैसी बड़ी और छोटे स्टार्टअप समेत 40 कंपनियों की छंटनी की घोषणा से 27,000 से अधिक इंजीनियरों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा। टेक्नोलॉजी कंपनियों में छंटनी पर नजर रखने वाली वेबसाइट लेऑफ्स (Layoffs.fyi) के अनुसार 2024 में विश्व में 6 सितंबर तक 429 कंपनियों ने लगभग 1.36 लाख कर्मचारियों को निकाला है। इंटेल ने करीब 15,000 कर्मचारियों की छंटनी की है। सिस्को ने 6000 लोगों को नौकरी से निकाला है जो उसकी कुल वर्कफोर्स का 7 फीसद है।
सिस्को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में निवेश बढ़ा रही है तो आईबीएम ने चीन में अपना आरएंडडी ऑपरेशन बंद किया है। विशेषज्ञों का कहना है कि कुछ प्रमुख कंपनियां, जो अधिक संख्या में रोजगार दे सकती हैं, वे स्किल सुधारने और टेक्नोलॉजी पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कर्मचारी कम कर रही हैं। बड़ी कंपनियां ऑटोमेशन और रोबोटिक्स का खर्च उठा सकती हैं, जो सीधे तौर पर रोजगार के अवसरों को प्रभावित करता है।
मौजूदा समय में ग्लोबल स्तर पर कई अनिश्चितताएं हैं, जिनकी वजह से कंपनियां लागत घटा रही हैं और एंट्री लेवल पर कम नौकरियां दे रही हैं। वैश्विक आर्थिक परिस्थितियां, ग्राहकों द्वारा प्रौद्योगिकी खर्च में कमी और विभिन्न देशों में उभरते तकनीकी केंद्रों के कारण बढ़ती प्रतिस्पर्धा को इसके लिए जिम्मेदार माना जा सकता है। इसके अलावा, हर साल 15 लाख नए इंजीनियरों के मैदान में आने से जॉब मार्केट में सैचुरेशन की स्थिति आ चुकी है।
गिरते पैकेज के ये हैं कारण
रिक्रूटमेंट फर्म टीमलीज की को-फाउंडर रितुपर्णा चक्रवर्ती कहती हैं कि भारत में आईटी सेक्टर में नौकरियां कम होने के कई कारण हैं। जॉब मार्केट में आईटी की मांग और आपूर्ति के बीच असंतुलन है। सिर्फ इंजीनियरिंग की डिग्री लेकर नौकरी पाने की आकांक्षा रखने वालों के लिए यह मुश्किल दौर है। वहीं, जिस तेजी से तकनीक में रोजाना नए बदलाव हो रहे हैं, उस अनुपात में पाठ्यक्रम में नहीं हैं। ऐसे में पूरी तरह सिलेबस पर फोकस रखने वाले छात्रों के लिए नौकरी मिलना मुश्किल होता जा रहा है।
स्टडी प्लेटफॉर्म ग्रेडिंग की संस्थापक ममता शेखावत कहती हैं कि आईआईटी और एनआईटी जैसे शीर्ष संस्थानों में भी कैंपस प्लेसमेंट में गिरावट आ रही है। आईटी क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियों में सुस्ती को कम होती भर्तियों के लिए जिम्मेदार माना जा सकता है। वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता, भू-राजनीतिक तनाव और टेक्नोलॉजी में तेजी से आ रहे बदलाव समेत कई फैक्टर आईटी क्षेत्र में नौकरियों में गिरावट का कारण बन रहे हैं।
विभवंगल अनुकुलकारा प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक और मैनेजिंग डायरेक्टर सिद्धार्थ मौर्या कहते हैं कि आईआईटी और एनआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों से स्नातकों को मिल रहे खराब कैंपस प्लेसमेंट और वेतन पैकेज के कारण अलग-अलग हैं। इनमें प्रमुख है टेक्नोलॉजी में तेजी से प्रगति, जिसमें मुख्य रूप से एआई और ऑटोमेशन शामिल हैं।
करियर काउंसलर सौरभ नंदा कहते हैं कि इंजीनियरिंग के क्षेत्र में जो अब तक जॉब मिल रहे थे, उसमें भी कम पैकेज वाले ज्यादा थे, मार्केट में कुछ साल पहले तक उफान आया था तो नौकरियां मिल रही थी, अब डिमांड कम होने से इस पर भी असर पड़ेगा। अब दुनियाभर में मंदी का दौर आ रहा है, चाहे यूरोप हो या अमेरिका। भारत में जो ग्रोथ हो रही है, वह जॉबलेस ग्रोथ हो रही है। इसलिए मंदी के असर से डिमांड में कमी आ रही है और इसका असर इस फील्ड को लोगों पर भी पड़ रहा है। इंजीनियरिंग की फील्ड आगे भी अच्छी रहेगी, लेकिन जो इंट्री लेवल की इंजीनियरिंग होती थी, वह कम हो जाएगी।
सर्राफ फर्नीचर के सीईओ रघुनंदन सर्राफ कहते हैं कि इंडस्ट्री की जरूरतों और इंजीनियरिंग कॉलेजों से निकल रहे छात्रों में स्किल गैप पहले भी था। यह दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। इसके लिए वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं, प्रमुख प्रौद्योगिकी कंपनियों के बिजनेस मॉडल में बदलाव और आईटी सेवाओं की डिलीवरी में दूसरे देशों से मिल रही प्रतिस्पर्धा को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
बेसिक्स को मजबूत करना होगा
देश के कई बड़े संस्थानों को आईटी सर्विसेज मुहैया कराने वाली कंपनी जोहो कॉर्प में मैनेजइंजन के एआई रिसर्च डायरेक्टर रामप्रकाश राममूर्ति कहते हैं कि जो बदलाव हो रहे हैं, हमें उन पर ज्यादा फोकस करने की जरूरत नहीं है। इसके बजाय हमें उन चीजों पर फोकस करना चाहिए जो लगातार बने रहते हैं। प्रोग्रामिंग बेसिक्स और ऑपरेटिंग सिस्टम के बेसिक्स को हम नहीं छोड़ सकते। जब छात्र इनमें महारत हासिल कर लेंगे तो भविष्य में टेक्नोलॉजी में होने वाले किसी भी बड़े बदलाव के मुताबिक वे खुद को ढाल लेंगे।
पाठ्यक्रम में बदलाव के सवाल पर राममूर्ति कहते हैं कि नेटवर्क, ऑपरेटिंग सिस्टम और डेटा स्ट्रक्चर तो वही रहेगा, इसलिए बेसिक्स में महारत रखने वाले ही शीर्ष 1% में शुमार होंगे। जहां तक एआई की बात है, तो लार्ज लैंग्वेज मॉडल के बजाय स्टैटिस्टिक्स से शुरुआत करना बेहतर होगा। स्टैटिस्टिक्स की ठोस बुनियाद पर ही एआई में आप कुछ बड़ा कर सकते हैं। बुनियादी स्टैटिस्टिक सिद्धांत और स्टैटिस्टिकल एस्टिमेशन से आपको एआई की लंबी दौड़ में मदद मिलेगी।
स्किल मजबूत करना आवश्यक
रितुपर्णा कहती हैं, अमूमन भारत में लोगों का फलसफा होता है कि इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद नौकरी मिल ही जाएगी। आईटी सेक्टर में नौकरियों की भरमार होने से ये ट्रेंड लंबे समय से कायम भी था, लेकिन स्थितियां प्रतिकूल होने से ऐसे लोगों की मांग कम हो गई जिनकी स्किल कमजोर थी। कंपनियों ने भी इस बात पर फोकस किया कि अगर उनको दूसरे किसी संस्थान से कम पैकेज में बेहतर छात्र मिल सकते हैं तो आईआईटी से ही हायरिंग क्यों की जाए। कई छात्रों को आईआईटी मुंबई में शानदार पैकेज मिला है, क्योंकि उनकी स्किल बेहतर थी।
टेक्नोलॉजी में लगातार बदलाव
सिद्धार्थ मौर्या कहते हैं कि स्किल्ड मैनपावर की मांग जिस तेजी से बढ़ रही है, पाठ्यक्रम में उतनी तेजी से बदलाव नहीं हो रहे। इससे कॉलेज से निकलने वाले ग्रेजुएट और इंडस्ट्री की आवश्यकताओं के बीच सामंजस्य बनाना मुश्किल होता है।
टेक्नोलॉजी में कई ऐसे बदलाव हुए हैं जिसने जॉब मार्केट में तूफान-सा ला दिया है। ममता कहती हैं, ऑटोमेशन और एआई तेजी से पारंपरिक भूमिकाओं की जगह ले रहे हैं। इसलिए खास विशेषज्ञता और स्किल की मांग बाजार में बढ़ी है। क्लाउड कंप्यूटिंग और बिग डेटा ने करियर के नए रास्ते खोले हैं, लेकिन वे तकनीकी कौशल और स्पेशलाइजेशन की मांग करते हैं। टेक्नोलॉजी इतनी तेजी से बदल रही है कि छात्रों के लिए तारतम्य बनाना मुश्किल हो रहा है।
कहां पर गढ़े जा रहे नए अवसर
नए अवसरों की बात करें तो ग्लोबल कैपेसिटी सेंटर (जीसीसी) भारतीय आईटी पेशेवरों को बेहतर मौके दे रहे हैं। ममता कहती हैं, प्रतिस्पर्धा कड़ी है और नौकरी में अस्थिरता भी है। इसलिए जो छात्र जीसीसी को करियर मान रहे हैं उन्हें चुनौतियों और अवसरों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करने की आवश्यकता है।
उनका कहना है कि टेक्नोलॉजी सेक्टर में नए अवसरों को भुनाने के लिए छात्रों को तैयार रहना चाहिए। पारंपरिक आईटी प्रोफाइल के अलावा साइबर सुरक्षा, डेटा साइंस, मशीन लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहां प्रशिक्षित जनशक्ति की काफी मांग है। इसके अलावा, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, नवीकरणीय ऊर्जा और बायोसाइंस उभरती हुई इंडस्ट्री हैं, जहां रोजगार के प्रचुर अवसर उपलब्ध हैं। बेहतर नौकरी की संभावनाओं के लिए छात्रों को इन क्षेत्रों में अपनी स्किल मजबूत करनी चाहिए। उच्च शिक्षा संस्थानों में व्यावहारिक कौशल और उभरती प्रौद्योगिकियों पर अधिक जोर देने के साथ पाठ्यक्रम का पुनर्गठन, नवाचार को बढ़ावा देने के लिए अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहित करने पर सरकार द्वारा जोर दिया जा रहा है। कंपनियां भी अपने कर्मचारियों की स्किल मजबूत करने पर निवेश कर रही हैं।
रितुपर्णा कहती हैं हमें पूर्णत: आईटी इंजीनियरिंग पर ही आधारित नहीं होना चाहिए। हमें मैन्युफैक्चरिंग, लॉजिस्टिक्स जैसे सेक्टरों में भी मौके तलाशने की जरूरत है। हमें पढ़ाई करते समय आगे की सोच रखनी चाहिए, नए बदलावों को आत्मसात करना चाहिए, फ्यूचर स्किल्स को सीखना चाहिए ताकि हम कंपनियों की मांग के अनुरूप तैयार हो सकें।
करियर काउंसलर सौरभ नंदा ने इंजीनियरिंग की फील्ड में कम हो रही संभावनाओं को लेकर कहना है कि आने वाले समय में जितने भी बिजनेस ग्रुप हैं, वे टेक्नालॉजी में इनवेस्ट करेंगे, मशीनरी से जुड़ी नौकरियों तो कम होंगी ही। ऐसे फील्ड में डिमांड कम होने से जॉब भी कम होंगे। आगे उन क्षेत्र में ही नौकरियां बढ़ेंगी, जो स्पेशलाइजेशन से जुड़ी होंगी, चाहे वह कम्प्यूटर साइंस हो या मेडिकल फील्ड या अकाउंटेंसी हो, इसमें अवसर रहेंगे। दूसरा सबसे बड़ा मेंटरशिप का फील्ड रहेगा, जहां अच्छे मौके मिलेंगे।
सौरभ बताते हैं कि अब स्पेशलाइजेशन के लिए पढ़ाई भी अधिक करनी होगी, तब जाकर नौकरी मिलेगी। जहां तक भारत की बात है तो यहां आने वाले समय में अच्छे नौकरी के अवसर हॉस्पिटैलिटी, हेल्थ केयर के क्षेत्र में ज़ब बढ़ेंगी। बेसिक इंजीनियरिंग की पढ़ाई को लेकर नौकरी की संभावना पहले से कम होती जा रही है, इसके लिए इस क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल करनी होगी। ऐसा नहीं है कि अवसर खतम हो गए हैं लेकिन डिमांड कम होने से अब स्पेशलाइजेशन वालों को ज्यादा मौके मिलेंगे।