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अनाज के लिए तरसने वाले इस गांव का बदला भाग्य, हर व्यक्ति कमा रहा लाखों

यह काम देहरादून की हिमालयन पर्यावरण, अध्ययन एवं संरक्षण संगठन की ओर से पिछले कई वर्षाें से किया गया है। जिसे अब नरेंद्र मोदी सरकार ने भी सराहा है।

By JP YadavEdited By: Published: Mon, 22 Oct 2018 12:05 PM (IST)Updated: Mon, 22 Oct 2018 12:11 PM (IST)
अनाज के लिए तरसने वाले इस गांव का बदला भाग्य, हर व्यक्ति कमा रहा लाखों
अनाज के लिए तरसने वाले इस गांव का बदला भाग्य, हर व्यक्ति कमा रहा लाखों

नोएडा [ललित विजय]। कभी एक वक्त के अनाज के लिए तरसने वाले हिमालय के तराई में बसे उत्तराखंड के गांव में रहने वाले लोग आज पांच से सात लाख रुपये प्रति वर्ष की कमाई कर रहे हैं। अब इस क्षेत्र के 60 गांव फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री से जुड़ गए हैं। बंजर जमीन पर अब फूड इंडस्ट्री के हिसाब से फसलों की पैदावार हो रही है। इसके लिए इस क्षेत्र के गांवों में चार हजार पन बिजली संयंत्र लगाए गए हैं। साथ ही गांवों को एक दूसरे से जोड़ने के लिए छोटे-छोटे जल प्रवाह के ऊपर सात फुटओवर ब्रिज बनाए गए हैं।

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फिलहाल यह सारा काम देहरादून की हिमालयन पर्यावरण, अध्ययन एवं संरक्षण संगठन की ओर से पिछले कई वर्षाें के प्रयास से किया गया है। जिसे अब नरेंद्र मोदी सरकार ने भी सराहा है।

 

इस संगठन का चयन केंद्र सरकार के भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (आइआइपीए) की ओर से लोकसेवा में उत्कृष्टतम पुरस्कार के लिए किया गया है। आइआइपीए ने नगालैंड की एलोथिरोज क्रिश्चियन सोसायटी का चयन भी इस पुरस्कार के लिए किया है।

दोनों संस्थाओं को 26 अक्टूबर की शाम साढ़े चार बजे दिल्ली स्थित आइआइपीए सभागार में उपराष्ट्रपति वैंकैया नायडू की ओर से पुरस्कार दिया जाएगा। इस दौरान आइआइपीए के चेयरमैन और नोएडा में रहने वाले योगेंद्र नारायण भी मौजूद रहेंगे।

सैकड़ों संस्थानों का आया प्रस्ताव, दो का हुआ चयन

आइआइपीए के चेयरमैन योगेंद्र नारायण ने बताया कि इस संस्थान को पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 1957 में बनाया है। यह केंद्र सरकार के अंतर्गत काम करने वाली संस्था है, जो प्रत्येक वर्ष भारतीय प्रशासनिक सेवा में बेहतर काम करने वाले अधिकारियों को पुरस्कार देती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सुझाव से यह संस्था पहली बार निजी संस्था को लोकसेवा में उत्कृष्टतम पुरस्कार देने जा रही है।

संस्थान का चयन करने के लिए सभी राज्यों के मुख्य सचिव व केंद्र सरकार के सभी मंत्रलयों को पत्र लिखा गया था। सैकड़ों प्रस्ताव आए। जिसमें सबसे बेहतर काम हिमालयन पर्यावरण, अध्ययन एवं संरक्षण संगठन और एलोथिरोज क्रिश्चियन सोसायटी का पाया गया। वर्ष 1979 में हिमालय सोसायटी की स्थापना करने वाले डॉ अनिल जोशी संस्था की ओर से पुरस्कार लेंगे।

हिमालयन पर्यावरण, अध्ययन एवं संरक्षण संगठन के कार्य

  • हिमालय के तराई क्षेत्र को फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री क्षेत्र में बदला
  • वैष्णो देवी, गंगोत्री और बदरीनाथ में श्रइन बोर्ड से बात कर वहां के स्थानीय लोगों को रोजगार दिलाया
  • 60 गांवों के गरीब किसानों की आय 5-7 लाख कराया
  • 4 हजार पन बिजली संयंत्र लगवाए
  • सौ इको फ्रेंडली सिस्टम की स्थापना
  • आपदा की स्थिति से निपटने में ग्रामीणों को दक्ष किया

एलोथिरोज क्रिश्चन सोसायटी के कार्य

  • पूर्वी नगालैंड के क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर की, जिससे मृत्यु दर में कमी आई।
  • सोसायटी प्रति वर्ष हजारों लोगों का मुफ्त इलाज कर रही है।

गौरतलब है कि फूड प्रोसेसिंग खाद्य सामग्री और पेय पदार्थों को कई रूपों में सहेजने की एक बेहतर प्रक्रिया है। इस क्षेत्र में स्वरोजगार अच्छे करियर के लिए एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। फूड प्रोसेसिंग में डिप्लोमा, सर्टिफिकेट कोर्सेज के अलावा डिग्री भी प्राप्त की जा सकती है।

इस क्षेत्र से स्नातक डिग्री में प्रवेश पाने के लिए केमिस्ट्री, फिजिक्स, मैथमेटिक्स या बायोलॉजी आदि विषयों में 12वीं में कम से कम 50 प्रतिशत अंक जरूरी हैं। एमएससी कोर्स करने के लिए फूड टेक्नोलॉजी से संबंधित विषयों में स्नातक की डिग्री आवश्यक है।

फूड प्रोसेसिंग में 3 साल के कोर्सेज में बीएससी इन फूड टेक्नोलॉजी, बीएससी इन फूड न्यूट्रीशियन एंड प्रिजरर्वेशन हैं। 4 साल में बीटेक इन फूड इंजीनियरिंग और 2 साल में एमएससी इन फूड टेक्नोलॉजी के कोर्स कराए जाते हैं।


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