नई दिल्ली, विवेक तिवारी ।  देश के बड़े शहरों में चमचमाती बिल्डिगों, गाड़ियों और आधुनिक सुविधाओं की संख्या पिछले कुछ सालों में काफी तेजी से बढ़ी है। लेकिन अगर राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ( एनसीआरबी ) के डेटा पर नजर डालें तो पता चलता है कि दिन दुगनी रात चौगुनी तरक्की कर रहे शहरों में रहने वाले सभी लोग बहुत खुश नहीं हैं। लोगों में असंतोष और डिप्रेशन का हाल ये है कि साल दर साल आत्महत्या करने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। एनसीआरबी के ताजा आंकड़ों के मुताबिक 2018 से 2021 के बीच देश के 53 मेगा शहरों में आत्महत्या करने वालों की संख्या तेजी से बढ़ी है। 2018 में जहां इन शहरों में 21409 लोगों ने आत्महत्या की थी वहीं इनकी संख्या 2021 में बढ़ कर 25891 तक पहुंच गई है।

रिपोर्ट के मुताबिक इन आत्महत्याओं में से 35.5 फीसदी की हिस्सेदारी देश के चार बड़े मेट्रो शहरों दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु और चेन्नई की है। दिल्ली में जहां 2021 में 2760 लोगों ने आत्महत्या की वहीं चेन्नई में 2699, बेंगलुरु में 2292 और मुंबई में 1436 लोगों ने आत्महत्या की। एनसीआरबी की रिपोर्ट की मानें तो 2021 में दिल्ली में आत्महत्या करने वालों की संख्या 2020 की तुलना में कम रही। जबकि चेन्नई में आत्महत्या करने वालों की संख्या में 11 फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया। बेंगलुरु में आत्महत्या के मामलों में 4.4 फीसदी का इजाफा देखा गया वहीं मुंबई में 12 फीसदी का इजाफा रहा।

पारिवारिक टेंशन और बीमारी बड़ी वजह

शहरों में इन लोगों के आत्महत्या करने की सबसे बड़ी वजह पारिवारिक टेंशन को बताया गया है। इसकी हिस्सेदारी करीब 34.7 फीसदी की है। वहीं बीमारियों की वजह से लगभग 17.4 फीसदी लोगों ने डिप्रेशन में आ कर जान दे दी। इन 53 बड़े शहरों में लगभग 1,032 लोगों ने शादी में आ रही दिक्कतों के चलते जान आत्महत्या कर ली।

सामूहिक आत्महत्या के मामले बढ़े

2021 में 12 राज्यों में लोगों ने सामूहिक आत्महत्या की। सामूहिक हत्या के कुल 131 मामले दर्ज किए गए। इन आत्महत्याओं में, 197 विवाहित व्यक्तियों और 143 अविवाहित व्यक्तियों सहित कुल 340 व्यक्तियों ने अपनी जान गंवाई। तमिलनाडु में सामूहिक या पारिवारिक आत्महत्याओं के अधिकतम मामले दर्ज किए गए (33 मामले)। 2021 के दौरान राजस्थान (25 मामले), आंध्र प्रदेश (22 मामले), केरल (12 मामले) और कर्नाटक (10 मामले) द्वारा तमिलनाडु में कुल 80 व्यक्ति, राजस्थान में 67 व्यक्ति, आंध्र प्रदेश में 56 व्यक्ति, कर्नाटक में 31 व्यक्ति और केरल में 26 व्यक्तियों ने आत्महत्या की।

समय न होना बड़ा कारण

मनोचिकित्सक डॉक्टर रवि सिंह रसोड़ा कहते हैं कि मेट्रो शहरों में लोगों की लाइफ बड़ी व्यस्त है। लोगों को अपने लिए समय ही नहीं मिलता है। वहां लोग न खुद के लिए समय निकाल पा रहे हैं और न परिवार के लिए। काम के दबाव का असर उनकी पारिवारिक जिंदगी पर भी पड़ रहा है। छोटी सी बात पर गुस्सा करना, चिढ़ जाना ये सभी बातें व्यक्ति को धीरे- धीरे डिप्रेशन की ओर ले जाती हैं। वहीं समाज में प्रतिस्पर्धा की वजह से भी लोगों पर दबाव बढ़ा है। सोशल मीडिया भी लोगों में डिप्रेशन बढ़ने का बड़ा कारण है। सोशल मीडिया पर जिंदगी बड़ी सुहानी लगती है। लोगों को लगने लगता है की सभी घूमने जा रहे हैं महंगी चीजें ले रहे हैं बस हम नहीं ले पा रहे हैं।

कड़ी प्रतिस्पर्धा और नशे की लत ने बढ़ाई परेशानी

एंपावरिंग माइंडस सोसाइटी फॉर रिसर्च एंड डेवलपमेंट की निदेशक और क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉक्टर रिचा मोहन कहती हैं कि युवाओं में कड़ी प्रतिस्पर्धा और नशे की लत के चलते डिप्रेशन तेजी से बढ़ा है। कोविड के के चलते युवाओं के लिए काफी मेहनत करने पर भी बेहतर रोजगार के अवसर पाना मुश्किल हुआ है। ऐसे में उनकी मानसिक स्थिति पर भी असर पड़ा है। मेट्रो शहरों में लोग अपनी लाइफस्टाइल को काफी महत्व देते हैं। ऐसे में छोटे शहरों से आए युवाओं के लिए इस प्रतिस्पर्धा में सामंजस्य बनाए रख पाना मुश्किल हो जाता है। कई बार वो जितना कमाते हैं उससे ज्यादा अपनी लाइफस्टाइल मैनेज करने के लिए खर्च करने लगते हैं। ऐसे में वो ऐसे जाल में फंस जाते हैं जिससे उन पर दबाव बढ़ता है जिससे डिप्रेशन की स्थिति पैदा होती है। ये दबाव बहुत अधिक बढ़ने पर आत्महत्या जैसी स्थिति उत्पन्न होती है।  ETI की सीईओ सुकृति चौहान का कहना है कि छात्रों और युवाओं को समर्थन और सुरक्षित स्थानो की आवश्यकता है। हेल्पलाइन अनिवार्य हैं और तनाव से जुड़े संकेतों को पहचानना भी महत्वपूर्ण है। जब तक हम सर्वांगीण विकास को प्रोत्साहन नहीं देंगे, तब तक आत्महत्याओं से होने वाली मौतों के दुर्भाग्यपूर्ण उदाहरण मौजूद रहेंगे। हमें समाधान प्रदान करने और युवा छात्रों को सुनने की सख्त जरूरत है।

पॉलिसीमेकर फोरम फॉर मेंटल हेल्थ के प्रेसीडेंट डा. दलबीर सिंह कहते हैं कि अनुभव से यह पता चलता है कि परीक्षा और समकक्ष दबाव तनाव को काफ़ी बढ़ाता है। वर्तमान में परीक्षा प्रणाली को व्यवहारिक समीक्षा की सख़्त ज़रुरत है यदि हम विश्व में आत्महत्या से प्रभावित राष्ट्र की युवा पीड़ी को बचाना चाहते है।

मारीवाला हेल्थ इनिशिएटिव के सीईओ प्रीती श्रीधर बताती है कि हमें इन उच्च दबाव परीक्षाओं पर फिर से विचार करने और काम करने की आवश्यकता है। शिक्षा प्रणाली के कारण छात्र अधिखतम तनाव अनुभव कर रहे है। यह किसी एक छात्र की विफलता या चिंता नहीं है बल्कि हमारी शिक्षा प्रणाली की विफलता है। हमें यह समझने की जरूरत है कि छात्रों के लिए क्या काम नहीं कर रहा है। एक समुदाय के रूप में छात्र किन तनावों का अनुभव करते हैं? हमें युवाओं में आत्महत्या द्वारा मौतों को रोकने के लिए राष्ट्रीय स्तर की रणनीति की जरूरत है।